एकजुटता तोड़ने के लिए साम्प्रदायिक ताकतें तरकीबें भिड़ा रहीं

Saturday, Jul 30, 2022 - 05:28 AM (IST)

इतिहास अपने आप को फिर से दोहरा रहा है। पंजाब में गत दिनों घटी धार्मिक बेअदबी की घटनाओं पर विभिन्न दलों की प्रतिक्रियाएं उपरोक्त तथ्यों का प्रमाण हैं। जब भी जनसाधारण अपने जीवन की समस्याओं के समाधान हेतु कोई संयुक्त योजनाबंदी तथा संघर्ष की रूप-रेखा तैयार कर रहे होते हैं तो सत्ता पर बैठे कुछ स्वार्थी लोग एकता के इस पौधे को जड़ से उखाडऩे का कार्य तुरन्त शुरू कर देते हैं। 

1977 में जब श्रीमती इंदिरा गांधी ने एमरजैंसी को जबरदस्ती थोपा तो कांग्रेस पार्टी को लोकसभा के भीतर और बाहर बहुत से विधानसभा चुनावों में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। तब लोकतंत्र के पक्ष में हुए इस बदलाव से नई ऊर्जा को हासिल कर लोग आंदोलनों की राह पर चल पड़े। इस तरह के प्रयासों से ही राजनीतिक परिवर्तन लाया जा सकता है। 

पंजाब के लोगों ने उस समय की राज्य सरकार के खिलाफ बड़े हुए बस किराए को वापस लेने की मंशा से पंजाब विधानसभा का ऐतिहासिक घेराव किया था। इसके अलावा भी विभिन्न वर्गों के लोगों ने कई संघर्ष किए। राज्य के भीतर खालिस्तानी लहर का काला दौर आरंभ किया गया जिससे हुए जान माल के नुक्सान से सभी भली-भांति वाकिफ हैं। बेशक इस त्रासदी के लिए साम्प्रदायिक ताकतें तथा सत्ताधारी दल जो अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए खालिस्तानी लहर में घुसपैठ कर चुके थे, के गलत मंसूबे जिम्मेदार हैं। मगर ऐसी गलतियों की सजा पंजाब सहित समस्त भारतीय लोगों को झेलनी पड़ी। 

आज फिर से पंजाब के लोग धर्म, जाति तथा राजनीतिक मंतव्यों से ऊपर उठ कर किसानी मोर्चे की सफलता से नई दिशा और ऊर्जा हासिल कर इंसाफ हेतु नए संघर्षों की रूप-रेखा तैयार कर रहे हैं तो फिर से एक बार लोगों की एकता को तोड़ने के लिए विभिन्न रंगों के शरारती तत्व बेअदबी की घटनाओं तथा भड़काऊ नारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। भड़काने वाले पोस्टर धार्मिक स्थलों पर चिपकाए जाते हैं। क्या यह साजिश नहीं तो और क्या है? एक तरफ श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के अंगों की बेअदबी की जाती है तथा दूसरी ओर मंदिरों में मूर्तियों का अपमान किया जाता है। यदि एक शरारती तत्व खालिस्तान के नारे को लगाता है तो दूसरा हिंदू धर्म को होने वाले खतरे की भविष्यवाणी करने लग जाता है। हमारे आदरणीय धार्मिक और राजनीतिक नेताओं के बुतों को तोडऩा भी ऐसे ही षड्यंत्रों का हिस्सा है। 

शहीद-ए-आजम भगत सिंह को एक सिख नेता द्वारा आतंकी बताया जा रहा है जिन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ लड़ते हुए देश की आजादी के लिए फांसी का फंदा हंसते-हंसते चूमते हुए गले में डाल लिया। यह सब कुछ सरकारी एजैंसियों की शरारती तत्वों के साथ मिलीभगत के बिना होना संभव नहीं। भारत के वर्तमान सत्ताधारी लोग हर कीमत पर देश के धर्मनिरपेक्ष तथा लोकतांत्रिक ताने-बाने को तबाह कर एक धर्म आधारित देश का निर्माण ही नहीं करना चाहते बल्कि लोगों के दिलों से बराबरी वाले तथा लोकतांत्रिक सरकारों को खत्म कर ऐसी विचारधारा के क्षेत्र का निर्माण करने के लिए अडिग नजर आते हैं। 

पंजाब की तरह दूसरे राज्यों में भी ऐसी घटनाएं विभिन्न रूपों में देखी जा सकती हैं। जब भारत के पड़ोसी मुल्क श्रीलंका में भूखे लोग रोटी के लिए सड़कों पर निकल कर अपने गुस्से का इजहार कर रहे थे तो इस घटनाक्रम का असर भारतीय समाज पर पडऩा लाजिमी है। एक ओर भारतीय खजाने में से विदेशी मुद्रा का भंडार कम हो रहा है और साथ ही रुपए की कीमत डालर के मुकाबले कम हो रही है तो दुनिया भर में मेहनतकश लोगों की ओर से आंदोलनों का नया दौर शुरू हो चुका है जिससे हमारे देश के लोग भी अनभिज्ञ नहीं सकते। लोगों के दिमाग में यह बात बार-बार उठ रही है कि जिस पूंजीवादी विकास माडल के गीत गाए जा रहे हैं वह तो अपने लोगों को पेट भर भोजन, सेहत सेवाएं तथा जीवन की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति भी नहीं कर सकता। 

इंगलैंड, फ्रांस, स्पेन, न्यूजीलैंड तथा पड़ोसी देश श्रीलंका में लूट वाले ऐसे प्रशासन के खिलाफ लोग उतर कर एक नया इतिहास रच रहे हैं। अब विचारने का समय आ गया है कि हम किसी ऐसे विकास माडल की तलाश  करें जो आर्थिक रूप से बढ़ रही खाई को कम करने की कोशिश करे। लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए नए-नए रोजगारों का सृजन किया जाए। क्या हम ऋणमुक्त वाले आर्थिक ढांचे का सृजन नहीं कर सकते? लोगों की जिंदगी चंद कार्पोरेट घरानों तथा मुनाफाखोरों पर पाबंदी लगाकर यकीनी तौर पर सुधारी जा सकती है।

ऐसा आर्थिक प्रबंध संभव है और भारतीय लोग लम्बे समय से ऐसे ढांचे के लिए प्रयत्नशील हैं। ऐसे प्रबंध के लिए लोगों में आपसी एकता तथा संयुक्त संघर्ष की जरूरत है। लोगों की एकजुटता को तोडऩे के लिए एक बार फिर से साम्प्रदायिक ताकतें नई-नई तरकीबें भिड़ा रही हैं। बिना किसी संशय के सरकारी एजैंसियां भी इसमें बड़ी भूमिका अदा कर रही हैं। हमें किसी भी घटना की निशानदेही करने के समय यह बात ध्यान में रखने की जरूरत है कि ऐसा कार्य किस दल के हितों की पूर्ति करता है?-मंगत राम पासला 

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