बंद करंसी नोटों की गिनती का झमेला अभी भी बरकरार

Friday, Aug 04, 2017 - 03:19 AM (IST)

8 नवम्बर, 2016 को नोटबंदी लागू होने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक के पास बड़े नोट कितनी मात्रा में वापस लौटे हैं? हर कोई जानना चाहता है लेकिन इसका उत्तर सभी को गच्चा दिए जा रहा है। 25 जुलाई को वित्त मंत्री ने राज्यसभा को एक लिखित उत्तर में बताया है कि किसी प्रकार की गलतियों को टालने के लिए रिजर्व बैंक अभी नोटों की गिनती कर रहा है।

उन्होंने यह भी कहा कि आर.बी.आई. को नोट गिनने के लिए अधिक मशीनें उपलब्ध करवाई जा रही हैं। कितनी अविश्वसनीय बात है कि यह काम अब किया जा रहा है। फिर भी उत्तर जल्दी उपलब्ध होने की संभावना नहीं। इस विलम्ब के अनेक परिणाम होंगे। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार जनवरी 2017 के प्रारम्भिक दिनों तक बंद हुए करंसी नोटों में से 90 प्रतिशत से भी अधिक नोट बैंकों में लौट आए थे। सार्वजनिक रूप में प्रवाहित मुद्रा पर आर.बी.आई. के आंकड़ों से यह संकेत मिलता है कि 98.8 प्रतिशत प्रतिबंधित नोट बैंकों में लौट आए। ऐसे में अब पीछे आखिर कितनी मुद्रा बची है जिसकी गिनती और छानबीन करनी है? क्या यह काम करने के लिए नोट गिनने वाली नई मशीनों की सचमुच में जरूरत है?

कहीं ऐसा तो नहीं कि बैंकों को सौंपे गए नोटों की गणना में पहले गलतियां हो गई हों और अब उनकी नए सिरे से गिनती की जा रही हो? लेकिन यह पुन: गणना आखिर कैसे हो सकेगी जबकि नवम्बर 2016 में ही यह समाचार आ गया था कि जितने भी प्रतिबंधित नोट बैंकों में लौटे हैं  उन सभी को मशीन की सहायता से कतर दिया जाएगा और ये कतरन केरल की एक कम्पनी को सौंपी जाएंगी जो इससे छोटे आकार की ईंटें तैयार करेगी। यदि प्रतिबंधित नोटों की कतराई की प्रक्रिया चल रही थी तो इनकी गणना का कोई तुक ही नहीं रह जाता। नोटों की कतराई सरकार ने कब रोकी थी और इनकी पुन: गिनती कब शुरू हुई थी? कतराई से अभी तक बचे हुए नोटों की गणना करके क्या हासिल किया जा सकता है?

नोटों की पुन: गिनती आर.बी.आई. के लिए काफी परेशानी पैदा कर रही है क्योंकि बैंक के गवर्नर ने 13 जुलाई को राज्यसभा की समिति के समक्ष पेश होकर यह कहा था कि पुन: गिनती जारी है और शीघ्रातिशीघ्र ही इस संबंध में जानकारी जारी कर दी जाएगी। उनके डिप्टी गवर्नर ने समिति को सूचित किया कि वर्तमान में आर.बी.आई. के पास नोट गणना के लिए 59 मशीनें हैं और 7 मशीनें इसने किराए पर ले रखी हैं जबकि अधिक मात्रा में अधिक मशीनें खरीदने के लिए निविदाएं जारी की गई हैं। रिपोर्टों के अनुसार जेतली ने यह भी बताया कि नोटों की गणना में विलंब न तो नेपाल से आए नोटों के कारण हो रहा है और न ही सहकारी बैंकों के पास जमा नोटों के कारण, जिन्हें कि प्रारम्भिक दौर में आर.बी.आई. के पास नोट जमा करवाने की अनुमति नहीं दी गई थी। 

13 जनवरी, 2017 तक केवल 18,000 करोड़ राशि के नोट ही रिजर्व बैंक में लौटने बाकी थे। रिपोर्टों से यह पता चलता है कि सहकारी बैंकों के पास 8 हजार करोड़ रुपए मूल्य के प्रतिबंधित नोट जमा हैं जो वे अब आर.बी.आई. को सौंप सकते हैं। इसके अलावा 1 जनवरी से लेकर 31 मार्च के बीच नागरिकों की कुछ विशेष श्रेणियों को अपने पुराने नोट जमा करवाने की अनुमति दी गई थी। इस तरह हम देखते हैं कि जनता के पास उच्च कीमत के 15.44 लाख करोड़ राशि के प्रतिबंधित नोटों में से शायद अब 10 हजार करोड़ से भी कम राशि के नोट आर.बी.आई. के पास लौटने बाकी हैं जोकि कुल संख्या का मात्र 0.6 प्रतिशत ही बनते हैं। क्या यह छोटी-सी राशि सरकार को परेशान कर रही है? इसका तात्पर्य यह है कि काले धन के छुपे हुए जखीरों में से अधिकतर बैंकिंग तंत्र में लौट आए और संभवत: इन्हें नई मुद्रा में बदल दिया गया है। 2000 के नए नोटों की उपलब्धता के चलते काले धन को छुपा कर रखना पहले से भी आसान हो गया है।

उल्लेखनीय है कि बैंकिंग तंत्र में वापस लौटने वाले प्रतिबंधित नोटों के साथ-साथ नए जारी होने वाले नोटों के बारे में भी 12 दिसम्बर, 2016 तक नियमित रूप में आंकड़े जारी किए जाते थे। ऐसे में आर.बी.आई. आसानी से ये आंकड़े उपलब्ध करवा सकता था कि कितने नोट बैंकिंग तंत्र में वापस लौटे हैं और कितनों की गिनती होनी शेष है। आप्रवासी भारतीयों तथा जनता के कुछ विशेष वर्गों के लिए प्रतिबंधित नोट जमा करवाने की तारीख 31 मार्च, 2017 तक बढ़ाई गई थी जोकि पहले ये पैसा जमा नहीं करवा सके थे। क्या इन वर्गों द्वारा पैसा जमा करवाने के फलस्वरूप आर.बी.आई. के पास इतने नोट लौट आए हैं जितने कि उसने जारी नहीं किए थे? यह सचमुच ही सरकार के लिए परेशानी का काम हो सकता है क्योंकि इसने तो यह सोच रखा था कि 20-30 प्रतिशत प्रतिबंधित नोट बैंकिंग तंत्र में नहीं लौटेंगे, फिर भी यह कैसे संभव हो गया कि जितने नोट जारी किए गए थे उससे अधिक नोट अर्थव्यवस्था में लौट आए? 

ऐसी अटकलें भी लगाई गई हैं कि भारी मात्रा में जाली करंसी भी बैंकों में जमा करवाई गई जबकि वे काम के अतिरिक्त बोझ के कारण इन राशियों के बारे में न तो जांच-पड़ताल कर सके और न ही इन पर नियंत्रण कर सके। निश्चय ही इस काम में बैंक अधिकारियों की मिलीभगत संभव है। यह पता लगाना कोई आसान नहीं होगा कि किन बैंकों या उनकी शाखाओं ने जाली मुद्रा स्वीकार करने में सांठगांठ की थी क्योंकि प्रतिबंधित मुद्रा के लौटने का सिलसिला एक बाढ़ का रूप ग्रहण कर गया था। कितनी जाली मुद्रा प्रचलन में थी? सरकार द्वारा प्रायोजित एक अध्ययन की रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की गई जिसमें बताया गया था कि 400 करोड़ रुपए की जाली करंसी प्रचलन में है। अपनी वार्षिक रिपोर्टों में आर.बी.आई. हर वर्ष जाली करंसी का उल्लेख करता है और समूचे मुद्रा प्रवाह की तुलना में जाली मुद्रा का आकार बहुत छोटा होता है परन्तु यह भी संभव है कि पकड़ी गई जाली मुद्रा की तुलना में परिचालित जाली मुद्रा का आकार कई गुणा अधिक हो।

शायद बुजुर्ग और बीमार लोगों के पास अभी भी एक हजार करोड़ रुपए के प्रतिबंधित नोट घर पर पड़े हों और उन पर अपनी खून-पसीने की कमाई खोने का खतरा मंडरा रहा है। लेकिन सवाल पैदा होता है कि यदि यह छोटी-सी राशि बैंकिंग तंत्र में नहीं लौटती तो नोटबंदी की योजना असफल कैसे हो सकती है? क्या सरकार केवल फजीहत से बचने के लिए ही पारदर्शिता को ताक पर रख रही है और इस तरह अपनी विश्वसनीयता खोए जा रही है? लेकिन यह सिलसिला कितनी देर तक चल पाएगा?

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