मानव-पलायन का कारण है जलवायु परिवर्तन

Wednesday, Jan 31, 2024 - 07:06 AM (IST)

उत्तर -पूर्व  के सबसे बड़े राज्य असम में ब्रह्मपुत्र नदी की तेज धाराओं के बीच स्थित माजुली द्वीप को दुनिया की सबसे बड़ी नदी खा जाती है। सन् 1951 में यह द्वीप लगभग 1250 वर्ग किलोमीटर में फैला था और आबादी 81,000 थी। अगले 60 वर्षों के दौरान, जनसंख्या दोगुनी से भी अधिक बढ़कर 1,67,000 हो गई, लेकिन द्वीप दो-तिहाई कम हो गया था। 1950 और 2016 के बीच, माजुली के 210 गांवों में से 107 गांव आंशिक रूप से या पूरी तरह से नदी की भेंट चढ़ गए। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि हिमालय से पिघलते ग्लेशियरों के साथ-साथ ब्रह्मपुत्र में तीव्र होते जलप्लावन के चलते 2040 तक माजुली लुप्त  हो सकता है। 

यहां से हर साल कई हजार लोग पलायन करते हैं- पहले इसी द्वीप के किसी सुरक्षित स्थान पर फिर गुवाहाटी-कोलकाता या उससे भी आगे। जलवायु परिवर्तन, किस तरह भारत में एक भीषण मानव-पलायन का कारण है, इसकी सशक्त बानगी माजुली और राज्य के वे जिले हैं जहां तेजी से नदियां अपने किनारों को खा रही हैं और खेती पर निर्भर लोग देखते ही देखते  भूमि-हीन हो जाते हैं और फिर किसी सस्ते श्रम की भट्टी में इस्तेमाल होते हैं। 

दुर्भाग्य है कि हमारे देश में अभी तक  जलवायु-पलायन शब्द को ले कर कोई नीति बनी नहीं, जी-20 सम्मेलन में भी इस विषय पर कोई ठोस चर्चा नहीं हुई। मानवीय पलायन महज मानव-श्रम का हस्तांतरण नहीं होता, उसके साथ बहुत-सा लोक-ज्ञान, मानव सभ्यता, पारम्परिक जैव विविधता का भी अंत हो जाता है। 

देश के सबसे बड़े म्रेंग्रोंव् और रॉयल बंगाल टाइगर के पर्यावास के लिए मशहूर सुंदरबन के सिमटने और उसका असर गंगा नदी के समुद्र में मिलन स्थल-गंगा-सागर तक पडऩे की सबसे भयानक त्रासदी  कई हजार साल से बसे लोगों का अपना घर-खेत छोडऩे पर मजबूर होना है। सुंदरबन का लोहाचारा द्वीप 1999 में गायब हो गया, जबकि बंगाल की खाड़ी से लगभग 30 किलोमीटर उत्तर में घोरमारा में पिछले कुछ दशकों में अभूतपूर्व क्षरण देखा गया। यह 26 वर्ग किलोमीटर से घटकर लगभग 6.7 वर्ग किलोमीटर रह गया है। पिछले 4 दशकों के दौरान कटाव तेजी से हुआ है, 2011 में यहां की आबादी 40,000 के आसपास थी, जो अब केवल 5,193 रह गई है। 

हमारे तटीय क्षेत्र, जहां लगभग 17 करोड़  लोग रहते हैं, बदलते जलवायु की मार में सबसे आगे हैं । यहां उन्हें समुद्र जल स्तर में वृद्धि, कटाव और उष्णकटिबंधीय तूफान और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। बंगाल की खाड़ी में अभी तक के सबसे शक्तिशाली तूफान-चक्रवात अम्फान -आया, जिससे कई लाख लोगों को घर खाली करने के  लिए मजबूर होना पड़ा। सबसे अधिक खतरनाक कटाव समुद्री किनारों का है, जो गांव के गांव उदरस्थ कर रहा है। 

यह किसी से छिपा नहीं है कि जलवायु परिवर्तन का कुप्रभाव हमारे यहां चरम मौसम, चक्रवातों के बढ़ती संख्या, बिजली गिरने, तेज लू और इससे जुड़े खेती में बदलाव,  आवास-भोजन  जैसी दिक्कतों के रूप में सामने आ रहा है। वैश्विक रूप से चरम मौसम से पलायन का सबसे अधिक खामियाजा महिलाओं और बच्चों को भोगना होता है। भारत में बाढ़ और तूफान ने बीते 6 सालों में 67 लाख बच्चों को घर से बेघर कर दिया है। ये बच्चे स्कूल छोडऩे के लिए भी मजबूर हुए हैं। 

यूनिसेफ तथा इंटर्नल डिस्प्लेसमैंट मॉनिटरिंग सैंटर के वर्ष 2016 से 2021 तक किए गए अध्ययन से यह खुलासा हुआ है। भारत, चीन तथा फिलीपींस में 2.23 करोड़ बच्चे विस्थापित हुए हैं। इन देशों में बच्चों के बेघर होने के पीछे भौगोलिक स्थिति जैसे मानसून की बारिश, चक्रवात और मौसम की बढ़ती घटनाएं भी हैं। भारत में बाढ़ के कारण 39 लाख, तूफान के कारण 28 लाख तथा सूखे के कारण 20 हजार बच्चे विस्थापित हुए हैं। 

भारत में, 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 45 करोड़ लोग प्रवासित हुए, जिनमें से 64 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र से थे। प्रवासियों का एक बड़ा हिस्सा कम आय वाले राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार से है (राज्य से बाहर होने वाले कुल प्रवास का 36 प्रतिशत) रहा। ये दोनों राज्य दक्षिण एशिया के सबसे अधिक खेती वाले गांगेय क्षेत्र से आते हैं। घर छोड़ कर जाने वाले कुछ लोग तो महज थोड़े दिनों के लिए काम करने गए लेकिन अधिकांश का पलायन स्थायी हुआ। यह आबादी मुख्य रूप से हाशिए पर रहने वालों की थी जो कृषि पर निर्भर थे। 

समझना होगा कि गांगेय क्षेत्र भारत का सबसे घनी आबादी वाला क्षेत्र है जहां लगभग 64 करोड़ लोग गरीबी में रहते हैं। हाल के दशक के दौरान इन क्षेत्रों से पलायन की गति तेज हो गई है और यह प्रवृत्ति भविष्य में भी जारी रहने की संभावना है। बढ़ता तापमान कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिससे सीमांत कृषि पर निर्भर ग्रामीण आबादी की असुरक्षा बढ़ जाती है। इस प्रकार, जलवायु परिवर्तन ऐसे गरीब लोगों के लिए विकल्प  की तलाश में घर-गांव छोडऩे के लिए मजबूर करता है।-पंकज चतुर्वेदी
 

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