चिराग पासवान भी बनना चाहते हैं सी.एम.

Monday, Aug 17, 2020 - 03:48 AM (IST)

बिहार विधानसभा चुनावों  की तिथियों की घोषणा नहीं हुई मगर सभी राजनीतिक पार्टियां तैयारियों में जुटी हैं तथा आभासी मुहिम चला रही हैं। मगर विपक्षी दलों की तुलना में सत्ताधारी जदयू ज्यादा सक्रिय नजर आ रही है। ऐसे मौके पर गठबंधन सहयोगी एक-दूसरे से लड़ रहे हैं। विशेष तौर पर राम विलास पासवान की लोजपा तथा जदयू। जबकि गठबंधन में जदयू लोजपा को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है तथा सांसद चिराग पासवान राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आलोचना कर रहे हैं और वह कोविड-19 के खत्म होने तक विधानसभा चुनाव नहीं चाहते। 

इसके विपरीत नीतीश कुमार समय पर चुनाव चाहते हैं। इस दौरान भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है कि नीतीश बाबू गठबंधन का चेहरा होंगे। चिराग पासवान भी मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं और उन्होंने घोषणा की है कि भाजपा ने उन्हें यकीन दिलाया है कि लोजपा 42 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। बिहार में कुल सीटें 243 हैं। हालांकि चिराग पासवान निरंतर तौर पर नीतीश की आलोचना कर रहे हैं फिर चाहे यह कोरोना का मामला हो या फिर कानून-व्यवस्था हो मगर नीतीश कुमार ने कभी भी चिराग की आलोचना के ऊपर कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की मगर जदयू नेता के.सी. त्यागी ने कहा है कि लोजपा का भाजपा के साथ समझौता है। इस कारण उन्हें भाजपा से अपनी पार्टी के लिए सीटों की मांग करनी चाहिए तथा अपने ही गठबंधन सरकार विशेष तौर पर मुख्यमंत्री की आलोचना नहीं करनी चाहिए। इस दौरान पता चला है कि भाजपा महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेेंद्र फड़णवीस को बिहार विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा का प्रभारी बनाने जा रही है। 

राज्यसभा में खडग़े हो सकते हैं विपक्ष के नेता
मध्यप्रदेश तथा राजस्थान के बाद अब पंजाब, महाराष्ट्र तथा झारखंड में कांग्रेस सरकारों की बारी है। जब कि पंजाब अच्छी स्थिति में है क्योंकि भाजपा का यहां कोई खास अस्तित्व नहीं तथा मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह की पूरी पकड़ है। मल्लिकार्जुन खडग़े की गतिविधियों पर उनकी उम्र तथा स्वास्थ्य के चलते अंकुश लगा है। महाराष्ट्र के कई नेताओं ने नए तथा अधिक क्रियाशील महासचिव की नियुक्ति के लिए कहा है। कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार आने वाले महीनों में राज्यसभा में खडग़े गुलाम नबी आजाद का स्थान ले सकते हैं। हाईकमान उन पर विश्वास जता सकता है। झारखंड में प्रभारी आर.पी.एन. सिंह के कई आलोचक हैं जिन्होंने केंद्रीय नेतृत्व को उनकी शिकायत करनी शुरू कर दी है। 

राजस्थान में कांग्रेस तथा भाजपा के बीच ‘युद्ध’
आखिरकार राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार ने विश्वासमत हासिल कर लिया। ऐसा देखा गया था कि यह युद्ध भाजपा तथा कांग्रेस में था मगर अंत में यह लड़ाई दोनों दलों के कुछ व्यक्तियों के बीच में थी। अशोक गहलोत सरकार के गठन के समय उन्होंने सचिन पायलट को अपना डिप्टी मुख्यमंत्री तथा पी.सी.सी. प्रमुख कबूल कर लिया था तथा पिछले 18 माह में गहलोत सचिन की अनदेखी कर रहे थे। जबकि गहलोत ने सरकार की ओर से 27 करोड़ रुपए अपनी पब्लिसिटी पर खर्च किए और एक भी पैसा पायलट के पोस्टरों के लिए उपलब्ध नहीं करवाया क्योंकि गहलोत ने गृह तथा वित्त मंत्रालय अपने पास रखा तथा यह यकीनी बनाया कि कोई भी फंड पायलट के मंत्रालय को नहीं दिया जाएगा। पायलट को अपना स्टाफ भी चुनने की अनुमति नहीं दी गई। इस कारण गहलोत तथा पायलट में सरकार के गठन के पहले दिन से ही जंग छिड़ गई। 

हालांकि कांग्रेस हाईकमान की दखलअंदाजी के बाद गहलोत ने सचिन पायलट को अपना लिया है मगर ऐसा उन्होंने अपने दिल से नहीं किया। इसी तरह सचिन पायलट ने भी अशोक गहलोत को एक नेता के तौर पर स्वीकार नहीं किया। दूसरी ओर भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की हाईकमान ने अनदेखी की तथा राज्य भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया तथा केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को गहलोत सरकार को गिराने की कमान दी गई। नतीजा यह हुआ कि पूनिया तथा गजेन्द्र के उठाए गए कदमों को वसुंधरा राजे ने क्षति पहुंचाई। 

इस कारण अशोक गहलोत आश्वस्त थे कि पायलट तथा उनके विधायक उनकी सरकार का समर्थन नहीं करेंगे तथा सदन में वह वसुंधरा राजे के सहयोग से बहुमत सिद्ध कर देंगे। भाजपा सूत्रों के अनुसार पार्टी के कुल 72 विधायकों में से 48 विधायक हैं जो बेहद आश्वस्त तथा वसुंधरा राजे के प्रति सर्मपित हैं। 

भाजपा के विधायकों के अनुसार यदि शिवराज सिंह चौहान को मध्यप्रदेश में तथा कर्नाटक में बी.एस. येदियुुरप्पा को मुख्यमंत्री पद देने के लिए मौका दिया जा सकता है तो वसुंधरा राजे को यह मौका क्यों नहीं दिया गया कि वह राजस्थान में अपनी सरकार बनाएं। इस कारण भाजपा गहलोत सरकार के खिलाफ एकजुट होने के लिए तैयार नहीं थी तथा पार्टी ने अपने विधायकों को गुजरात भेज दिया। दोनों दलों के 4 नेता स्वतंत्र तौर पर कांग्रेस तथा भाजपा के नाम पर अपना गेम खेल रहे थे और यह लड़ाई अंत तक जारी रहेगी। 

द्रमुक में प्रशांत किशोर को लेकर मतभेद
द्रमुक कैडर में एम.के. स्टालिन द्वारा रणनीतिकार प्रशांत किशोर को एक सलाहकार के तौर पर लेने से प्रदर्शन बढ़ रहे हैं। यह आपत्ति इसलिए भी है कि पार्टी प्रशांत किशोर से कोई आदेश नहीं लेना चाहती जोकि उत्तर से बिहार राज्य से संबंध रखते हैं। पार्टी कार्यकत्र्ताओं ने यह भी पाया कि किशोर की टीम में 700 से ज्यादा लोग राज्य से संबंधित नहीं हैं। 

जल्द ही राहुल गांधी संभाल सकते हैं पार्टी अध्यक्ष का पद
कई बैठकों के बावजूद भी कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव पर अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ। हालांकि चुनाव आयोग ने 12 अगस्त से पहले चुनाव की तिथि दी थी। पार्टी के सूत्रों के अनुसार पूरी कांग्रेस पार्टी 2 ग्रुपों में बंटी हुई है। एक है पुराने दिग्गजों का ग्रुप तथा दूसरा है युवा नेताओं का ग्रुप। युवा नेता अभी भी राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष के तौर पर देखना चाहते हैं। मगर कुछ युवा नेता राहुल गांधी की आलोचना कर रहे हैं कि वह उचित समय पर कोई निर्णय क्यों नहीं ले रहे। कुछ चाहते हैं कि राहुल गांधी को हमेशा ही नरेन्द्र मोदी की आलोचना नहीं करनी चाहिए।-राहिल नोरा चोपड़ा
 

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