एक कमजोर ‘ओली’ को बचाने के चीनी प्रयास हुए असफल

Thursday, Jan 28, 2021 - 04:17 AM (IST)

नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कुमार दहल ‘प्रचंड’ की अध्यक्षता  वाली सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी नेपाल के एक प्रमुख गुट ने आखिरकार कार्यवाहक प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के खिलाफ प्रहार किया है, जिन्हें संगठन की प्राथमिक सदस्यता से हटा दिया गया है। यह चीन को एक बड़ा झटका है क्योंकि ओली ड्रैगन के समर्थक हैं वहीं भारत को यह बात एक राहत प्रदान करती है। 

यह कार्रवाई ओली द्वारा संसद भंग करने के अपने फैसले को न उलटने के लिए अपनाए गए अडिय़ल रवैये के बाद की गई है। इसलिए उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई है। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के प्रतिद्वंद्वी गुट के नेताओं ने ओली को पार्टी से निष्कासित करने की धमकी दी थी क्योंकि दिसम्बर 2020 को संसद को भंग करने के उनके फैसले के विरोध में ये नेता एक महीने से भी कम समय में दूसरी बार सड़कों पर उतरे थे। प्रचंड गुट राजनीतिक अशांति के बीच अप्रैल तथा मई में नए चुनावों को करवाने का आह्वान कर रहा है। 

कम्युनिस्ट पार्टी नेपाल (सी.पी.एन.) के साथ-साथ सीधे टकराव के कारण सत्ता में आने की महत्वाकांक्षा रखने वाली सर्वोच्च इकाई के तर्कहीन निर्णय के कारण के.पी.एस. ओली ने संसद को भंग कर दिया था जिसने देश को उथल-पुथल में धकेल दिया है। वह भी उस समय जब देश में कोविड-19 से निपटने में सरकार असफल हुई है। कम्युनिस्ट पार्टी नेपाल में पुष्प कुमार दहल ‘प्रचंड’ के नेतृत्व में एक प्रभावशाली ग्रुप को संसद में अधिकतम सांसदों का समर्थन प्राप्त है। 

सर्वोच्च निकाय के अधिकांश सदस्य तथा स्थायी समिति उनके प्रति निष्ठा का सम्मान करते हैं इसलिए ओली असहाय अल्पसंख्यक हो गए हैं। इसी कारण उन्होंने मुखर रूप से विघटन का विकल्प चुना है। ओली के सदन भंग होने के कारण नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में फूट पैदा हो गई है तथा प्रचंड के नेतृत्व वाले गुट ने पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल को बतौर चेयरमैन नियुक्त किया है और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी को वैध करार दिया है। उन्होंने ओली के सदन को भंग करने के निर्णय को असंवैधानिक कदम करार दिया है और इसकी बहाली की मांग की है। 

सुप्रीमकोर्ट देगी ऐतिहासिक निर्णय : मुख्य न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा के नेतृत्व में अदालत की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ वर्तमान में मामले की सुनवाई कर रही है तथा राष्ट्रपति तथा सरकार के कार्यालय को सदन के विघटन के बारे में अपने फैसले की मूल प्रति पेश करने के लिए कहा है। अनुच्छेद 85 में कहा गया है कि सदन का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा। जब तक कि इसे संविधान के अनुसार पहले भंग न कर दिया जाए। अनुच्छेद 76 (7) संविधान के तहत एकमात्र प्रावधान है जो सदन को भंग करने की परिकल्पना करता है। अनुच्छेद 76 के अंतर्गत राष्ट्रपति को सरकार बनाने के सभी प्रयासों को समाप्त करना होता है। 

अब पाला सर्वोच्च न्यायालय के पास है क्योंकि सदन के विघटन की सिफारिश करने के लिए पी.एम. के अधिकार को चुनौती देने के लिए 13 याचिकाएं दर्ज की गई हैं। हालांकि आम चुनाव 7 दिसम्बर 2022 को होने वाले थे। अदालत की 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ जिसका नेतृत्व चोलेंद्र शमशेर राणा कर रहे हैं, ने राष्ट्रपति और सरकार से भी कहा है कि वह सदन को भंग करने के संबंध में अपने फैसले के मूल प्रति पेश करें। 

पंचायत शासन के 30 वर्षों के बाद 1990 में लोकतांत्रिक ताकतों द्वारा बड़े संघर्ष के बाद लोकतंत्र बहाल किया गया था। अगले वर्ष चुनाव आयोजित हुए थे जिसमें नेपाली कांग्रेस प्रमुख पार्टी के तौर पर उभर कर सामने आई थी। मगर अंतर्पक्षीय दरार के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोईराला ने 1994 में संसद को भंग कर दिया था।  उच्चतम न्यायालय ने इस आधार पर अपने फैसले का समर्थन किया कि एक पी.एम. जो संसद में बहुमत प्राप्त करता है, वह एक नए जनादेश के लिए जा सकता है। 

1995 में प्रधानमंत्री मनमोहन अधिकारी ने अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया। लेकिन इस बार भी सुप्रीमकोर्ट ने उनके कदम को इस दृष्टिकोण से खारिज कर दिया कि अभी भी एक वैकल्पिक सरकार बनने की संभावना है। नेपाली राजनीति में नाटकीय घटनाक्रमों के चलते चीनी हितों को झटका लगा है। चीन नेपाल के आंतरिक मामलों में दखलअंदाजी कर रहा था जिसके चलते अन्य देशों विशेषकर भारत के साथ रिश्तों में खटास आ रही थी। एक कमजोर ओली को बचाने के चीनी प्रयास असफल हुए क्योंकि प्रचंड ने उन्हें हटाने के लिए अपने प्रयास किए। प्रचंड ने 16 पन्नों के दस्तावेजों में दर्शाया है कि ओली प्रशासन चलाने में असफल हुए हैं इसके साथ-साथ वह भ्रष्टाचार मामलों में भी संलिप्त हैं। इसी कारण प्रचंड ने ओली का तत्काल इस्तीफा मांगा था।-के.एस. तोमर
 

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