‘म्यांमार में सैन्य शासन से चीन को ज्यादा लाभ होगा’

punjabkesari.in Sunday, Feb 21, 2021 - 04:19 AM (IST)

म्यांमार में आंग सान सू की से सत्ता छीनने के बाद सेना ने देश की कमान अपने हाथों में ले ली है और अगले एक वर्ष के लिए पूरे देश में आपातकाल लागू कर दिया है। लेकिन म्यांमार का कामगार वर्ग सेना के सामने सिर झुकाने को तैयार नहीं दिखता और न ही विद्यार्थी वर्ग दिखता है। विद्यार्थी देश के कई इलाकों में अलग अलग जगहों पर आम लोगों के साथ प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहे हैं। म्यांमार में इस अशांति और सैन्य तख्तापलट के पीछे जानकार चीन का हाथ बता रहे हैं। 

दरअसल रणनीतिक तौर पर देखा जाए तो म्यांमार में सैन्य शासन से चीन को ज्यादा लाभ होगा, पहला लाभ यह होगा कि चीन म्यांमार के सैन्य शासन को अपने इशारों पर आसानी से नचा सकता है, दूसरा अगर म्यांमार में लोकतंत्र रहा तो वहां पर निर्माण और व्यापारिक कार्यों में दूसरे देश भी आ सकते हैं लेकिन सैन्य शासन में म्यांमार के हर निर्माण कार्य, व्यापार और म्यांमार के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने पर चीन का एकाधिकार होगा। म्यांमार में सैन्य शासन लागू होने के बाद यहां पर भी चीन की तर्ज पर देश के अंदर शासन के खिलाफ़ आंदोलन को दबाने में आसानी होती है। 

दरअसल चीन हिन्द महासागर में अपना दखल चाहता है और इसके लिए चीन ने कोशिश भी बहुत की, भारत को घेरने के लिए चीन ने श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह में बड़ा निवेश कर श्रीलंका को अपने कर्ज के जाल में फंसाकर 99 वर्ष के लिए हम्बनटोटा बंदरगाह को अपने कब्जे में ले लिया लेकिन स्थानीय लोगों के दखल और चीन विरोधी आंदोलन के शुरू होने के बाद चीन को अपनी योजना में बदलाव करना पड़ा। 

मालदीव में भी चीन ने बहुत प्रयास किए लेकिन वहां पर भी सत्ता विरोधी गुट के हाथों में आने के बाद चीन को मालदीव से पीछे हटना पड़ा, इसके बाद चीन ने थाईलैंड में क्रा इस्तमुस क्षेत्र में स्वेज और पनामा नहर की तर्ज पर भूमि का कटान कर एक नहर निकालने की योजना बनाई और थाईलैंड से इस बारे में चर्चा भी की लेकिन थाईलैंड को इसमें दो खतरे नजर आए। पहला, थाईलैंड दूसरे देशों की तरह चीन के कर्ज के मकडज़ाल में फंसना नहीं चाहता था और दूसरा कारण इससे भी ज्यादा गंभीर है। 

दरअसल थाईलैंड के चार दक्षिणी प्रांतों में इस्लामिक आतंकवाद और अलगाववाद पनप रहा है, याला, पत्तानी, सातुन और नाराथिवात में मुस्लिम आबादी अधिक है और चारों दक्षिणी राज्यों को थाईलैंड में इस्लामिक आतंकवाद की नर्सरी कहा जाता है, अगर चीन क्रा इस्तमुस में नहर बना देता तो थाईलैंड के दो टुकड़े हो जाते और ऐसे में थाईलैंड के लिए दक्षिणी राज्यों पर काबू पाना मुश्किल हो जाता। जब चीन का प्लान थाईलैंड में भी खटाई में पडऩे लगा तब चीन ने म्यांमार की तरफ अपना ध्यान लगाया और म्यांमार के रास्ते चीन हिन्द महासागर में पहुंचना चाहता है। 

म्यांमार का सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह सितवे है जहां से चीन भारत के रणनीतिक स्थानों चांदीपुर, बालासोर, कलाम द्वीप, श्री हरिकोटा और अंडमान निकोबार द्वीप समूह तक अपनी पहुंच बनाना चाहता है। जाहिर-सी बात है कि जब तक म्यांमार में लोकतांत्रिक सरकार है चीन ऐसा करने की सोच भी नहीं सकता लेकिन सैन्य शासन में जरूर ऐसा कर सकता है और म्यांमार की सैन्य कमान चीन के हाथों में है। लेकिन जिस तरह से म्यांमार में सैन्य शासन के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं इसे देखते हुए लगता है कि चीन की चाल उसी पर उल्टी पड़ गई है। चीन अब किसी भी तरह से सैन्य सरकार को चलाने के लिए भरसक प्रयास कर रहा है। लेकिन म्यांमार की जनता न सिर्फ़ विरोध प्रदर्शन कर रही है बल्कि इस बात को लेकर आश्वस्त है कि जल्दी ही वो लोग मिलकर सैन्य सरकार को उखाड़ फैंकेंगे।


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