चीन, ताइवान और आगे का रास्ता

Saturday, Jan 20, 2024 - 05:36 AM (IST)

चीन में सी.पी.सी. के संस्थापक माओ त्से तुंग को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की जहां भविष्य में ताइवान को मुख्य भूमि चीन के साथ एकीकृत करने की देश की दीर्घकालिक इच्छा की आवाज को दोहराया गया। 

भू-राजनीति में ताइवान एक अहम मुद्दा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक अर्थव्यवस्था में भी इसके स्थान को देखते हुए नियमित आधार पर इस मुद्दे के विकास पर नजर रखने की गहरी समझ की आवश्यकता है। चीन की हालिया घोषणा को महज शब्द कह कर खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि वैश्विक वास्तविकताएं बदलती रहती हैं। भारतीय अर्थशास्त्रियों से लेकर अंतर्राष्ट्रीय चर्चाओं में इस बात पर विचार किया जा रहा है कि भविष्य में कोई घटना होने पर इस समस्या से कैसे निपटा जाए। आर.बी.आई. के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का मानना है कि ऐसी संभावना है कि चीन  ताइवान पर कोई कदम उठा सकता है। 

वह इसे राजनीतिक व्यवस्था की प्रकृति से जोड़ते हैं क्योंकि वहां लोकतंत्र का अभाव है और उन्होंने कहा कि अधिक सत्तावादी देशों के साथ प्रमुख समस्या होती है कि यह सब नेता के दिमाग से संबंधित होता है। वास्तविकता के गहरे पक्ष को समझने के लिए, इतिहास, भौगोलिक स्थिति, समकालीन आर्थिक परिदृश्य को समझना महत्वपूर्ण है।  ताइवान की कड़ी भी इसी विचार का भाग है। ताइवान एक द्वीप है, जो दक्षिण-पूर्व चीन के तट से लगभग 100 मील दूर है। यह अमरीकी विदेश नीति के लिए महत्वपूर्ण है। इतिहास के कई पहलू होते हैं।  नियंत्रण और वर्चस्व को अलग-अलग तरीके से देखा जाता है। ताइवान में भी यह मुद्दा है। 

चीन इस इतिहास की ओर इशारा करते हुए कहता है कि ताइवान मूल रूप से एक चीनी प्रांत था। लेकिन ताइवानी यह तर्क देने के लिए उसी इतिहास की ओर इशारा करते हैं कि वे कभी भी आधुनिक चीनी राज्य का हिस्सा नहीं थे। इसे चीन में अधिनायकवाद की बड़ी तस्वीर के भीतर समझना होगा। ताइवान की विवादित स्थिति चीनी गृह युद्ध से संबंधित है। अब किसी भी राष्ट्र के लिए सत्ता और राष्ट्रीय हित बहुआयामी हैं। 

समकालीन वैश्विक अर्थव्यवस्था के कारण भी यह जटिल कहानी और भी विवादित हो जाती है। कोई भी युद्ध को एक विकल्प के रूप में खारिज नहीं कर सकता है। यूक्रेन से अफगानिस्तान तक की पिछली घटनाओं में अनिश्चितता दिखाई देती है और निहित स्वार्थ अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की पहचान हैं, जहां मानवता की चिंता नगण्य है। ताइवान में संघर्ष समाधान की दिशा में किसी भी प्रयास की शुरूआत चीनी आक्रामकता को रोकने से होनी चाहिए। भावी कार्यशैली के लिए राजनीति से लेकर अर्थव्यवस्था तक एक संतुलित कार्य योजना की आवश्यकता होती है।

यदि संभावित विवाद पर और विचार करें तो यह भू-राजनीतिक के साथ आर्थिक संकट भी होगा। वैश्विक सैमीकंडक्टर  उद्योग और मैन्युफैक्चरिंग में ताइवान बेहद महत्वपूर्ण है। युद्ध अब अपनी प्रकृति में पूर्ण हो गए हैं। इसीलिए संघर्ष समाधान के लिए सभी हितधारकों के प्रयासों की आवश्यकता होगी। संपत्तियों, बौद्धिक संपदा और कर्मचारियों की सुरक्षा अभ्यास में  ताइवान को सभी देशों को एक साथ लाना होगा। 

चीन का मुकाबला करने की अमरीका की रणनीति एशिया प्रशांत के साथ संबंधों को गहरा और विस्तारित करने का प्रयास रही है। इसराईल, अफगानिस्तान, यूक्रेन के संघर्षों से पता चला है कि ‘महाशक्ति’ का विचार उपयुक्त नहीं है। संयुक्त राज्य अमरीका के संदर्भ में चीन को समझाने की कोशिश करने वाले किसी भी विश्लेषण के लिए यह चिंता का कारण है। जवाबी घेरा नीति का उद्देश्य नौसैनिक अड्डों का विस्तार करके चीन को घेरना भी महत्वपूर्ण है। इस संबंध में विभिन्न देश  ताइवान के साथ जुड़े हुए हैं। इस संबंध में विभिन्न देशों के बीच सही सहयोग होना महत्वपूर्ण है। आक्रामकता को रोकने और सैन्य संतुलन बनाए रखने के लिए एकजुट दृष्टिकोण उपयोगी होगा। 

समसामयिक परिदृश्यों को देखते हुए, दुनिया एक और लंबे संघर्ष से नहीं निपट सकती। इस पर बहस करना आसान है कि इतिहास का सही पक्ष कौन सा है, लेकिन वास्तविक अर्थों में आम लोगों को परेशानी होती है। किसी भी राष्ट्र के आक्रामक रुख को रोकने के लिए मजबूत गठबंधनों और सांझेदारियों की आवश्यकता होती है।-डा. आमना मिर्जा 
 

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