चीन में आने वाली है वर्ष 1929 से भी बड़ी आर्थिक मंदी

Monday, Nov 21, 2022 - 07:16 AM (IST)

चीन एक बड़े आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहा है, ऐसा मानना है विश्व के बड़े अर्थशास्त्रियों का, उनका यह भी कहना है कि जिस आर्थिक संकट  में चीन घिरता जा रहा है वह वर्ष 1929 में अमरीका में आई महामंदी से भी बड़ा संकट होगा जिसने पूरे यूरोप को अपनी चपेट में ले लिया था। आने वाले समय में चीन के अंदर 50 करोड़ लोग अपनी नौकरियों से हाथ धो बैठेंगे और इतने ही लोग भूख से परेशान होंगे क्योंकि लंबी और भीषण गर्मी के कारण किसान अपनी फसल नहीं बचा पा रहे हैं। चीन ने अपने पर्यावरण को इतना नुक्सान पहुंचाया है कि अब वहां पर मौसम बदलने लगा है।

इस वजह से लम्बी और भीषण गर्मी से वहां की नदियां, झीलें और तालाब सूखते जा रहे हैं। इससे किसानों की फसल बर्बाद हो रही है। बड़े-बड़े हाइड्रो प्रोजैक्ट के लिए पानी नहीं मिल रहा जिससे बिजली की कमी हो गई है और इसका खराब असर चीन के विनिर्माण क्षेत्र में साफ देखा जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ चीन का रीयल एस्टेट बुलबुला फूट चुका है, इसके चलते चीन की आम जनता मकान खरीदने के लिए जो पैसे बैंकों को चुका रही थी वह चुकाना अब बंद कर चुकी है, इससे चीन के बैंकों की कमाई खत्म हो रही है और वे  दिवालिया हो रहे हैं।

कई लोगों ने बैंकों के खिलाफ विद्रोह कर दिया है क्योंकि वे अपने द्वारा जमा किए गए पैसे बैंकों से निकाल नहीं पा रहे हैं। चीन की अर्थव्यवस्था पर इन सबका मिला-जुला असर इतना खराब पड़ा है कि सकल घरेलू उत्पाद मात्र 0.4 प्रतिशत की रफ्तार पर सिमट गई है जबकि सरकार ने वर्ष 2022 में इसके 5.5 प्रतिशत की रफ्तार से बढऩे की घोषणा की थी। चीन का ऋण संकट भी फूटने की कगार पर है, इस संकट के कारण चीन के 8 खरब डालर डूब चुके हैं।

इंस्टीच्यूट ऑफ इंटरनैशनल फाइनांस की रिपोर्ट के अनुसार चीन के ऊपर इस समय कार्पोरेट, घरेलू और सरकारी ऋण उसके सकल घरेलू उत्पाद का 303 फीसदी से भी अधिक हो गया है, पूरे विश्व के ऋण का यह 15 फीसदी है। चीन में वर्ष 2018 की पहली तिमाही की तुलना में यह 297 प्रतिशत अधिक है। वहीं जुलाई महीने में आंकी गई युवा बेरोजगारी दर इस समय सबसे अधिक यानी 20 प्रतिशत है, यह कोविड का असर है। पिछले 3 दशकों से चीन का रीयल एस्टेट चीन की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बना हुआ है, वर्ष 2022 में भी चीन की अर्थव्यवस्था में इसका योगदान 30 प्रतिशत रहा है जो अमरीका की 15 प्रतिशत से दोगुना है और पूरे यूरोप के रीयल एस्टेट अर्थव्यवस्था का तीन गुना से अधिक है।

चीन के निवेशक अपनी बचत का 70 प्रतिशत हिस्सा रीयल एस्टेट में लगाते हैं। कुछ वर्ष पहले तक चीन में प्रापर्टी बाजार इतना गर्म था कि बिल्डर जमीन पर इमारत का ढांचा खड़ा किए बिना ही लोगों से पैसे निवेश करवाने लगे जिससे प्रापर्टी बाजार का बुलबुला एक दिन फूट गया और लोगों का भरोसा इस क्षेत्र से उठ गया, इसके बाद लोगों ने प्रापर्टी बाजार में निवेश करना बंद कर दिया जिससे मांग खत्म हो गई और दाम नीचे आ गिरे।

अब मकानों के दाम इतना नीचे आ गए थे कि चीन की जनता बैंकों को इससे अधिक पैसे दे चुकी थी, इससे ज्यादा पैसे नहीं देना चाहती थी, उसने बिल्डरों को और पैसे देने से मना कर दिया, लोग चीन के 99 शहरों में मॉर्टगेज पैसे देने से मना कर चुके थे और आंदोलन पर उतर आए जिसका असर चीन की 320 नई परियोजनाओं पर पड़ा। एक रिपोर्ट के अनुसार इस आंदोलन से अब तक चीन के बैंकों को 350 अरब डालर का नुक्सान हो चुका है।

लोगों ने जब और पैसे देने से मना कर दिया तो बिल्डरों को अपने आधे-अधूरे मकानों को गिराकर जमीन बेचनी पड़ी जिससे वे अपना कर्जा उतार सकें। इस समय चीन में 6 करोड़ 50 लाख  मकान खाली पड़े हैं, यह इतनी बड़ी संख्या है कि इन मकानों में पूरे फ्रांस की जनसंख्या रह सकती है। इसके अलावा हजारों की संख्या में अधूरी बनी इमारतें खाली पड़ी हैं। इसकी वजह से जल्दी ही चीन की 20 प्रतिशत भवन निर्माण कंपनियां दिवालिया हो जाएंगी।

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