अमरीका की तुलना में चीन बेहतर मध्यस्थ

punjabkesari.in Sunday, Mar 26, 2023 - 05:14 AM (IST)

7  वर्ष पूर्व 2016 की सर्दियों में सऊदी अरब द्वारा 47 कैदियों को फांसी दिए जाने की खबर आई थी। जिन लोगों का सिर कलम किया गया उनमें से एक अल निम्र नामक शख्स था जो एक प्रमुख शिया धर्मगुरु और सऊदी अरब का आलोचक था।
प्रदर्शनकारियों ने तेहरान और मशहद में ‘डैथ टू अल सऊद’ चिल्लाते हुए सऊदी राजनयिक मिशनों को जला डाला। सऊदी ने ईरान के साथ सभी राजनयिक संबंध तोड़ लिए लेकिन 10 मार्च 2023 को एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम में दोनों देश राजनयिक संबंधों को फिर से शुरू करने पर सहमत हुए। इस मेल-मिलाप की मध्यस्थता चीन ने बीजिंग में की थी। 

2016 के बाद से 2 इस्लामिक राष्ट्रों सऊदी अरब (प्रमुख सुन्नी देश और इस्लाम के दो पवित्र स्थलों का घर) तथा ईरान (प्रमुख शिया राष्ट्र) के बीच के रिश्तों में खटास आ गई। ईरान पर सऊदी अरब की प्रमुख तेल सुविधाओं को लक्षित करने का आरोप लगाया गया था। 14 सितम्बर 2019 को बुकैक तथा खुरैस में संचालित तेल पर संस्करण सुविधाओं पर हमला करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था। यमन में होती संगठन ने जिम्मेदारी ली लेकिन अमरीका और सऊदी अरब ने ईरान को दोषी ठहराया। 

वर्तमान समझौते पर ईरान के सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव अली शामखानी और सऊदी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मुसाद-बिन-मोहम्मद-अल-एबन ने चीन के वरिष्ठतम राजनयिक वांग-यी के साथ कार्रवाई पर पैनी नजर रखते हुए हस्ताक्षर किए थे। लेकिन ये वार्ताएं वास्तव में हाल की नहीं हैं। 2021 में ईरान ने वार्ता को फिर से शुरू करने की पेशकश की जिसे सऊदी अरब ने ठुकरा दिया। ईराक को तत्कालीन प्रधानमंत्री मुस्तफा-अल-कदीमी के तहत एक मध्यस्थ के रूप में चुना गया था जो 2 प्रतिद्वंद्वियों को पुरानी बातों को दफनाने में मदद करने के लिए तैयार था। 

अल-कदीमी की बर्खास्तगी ने इस अनौपचारिक बातचीत पर विराम लगा दिया। दिलचस्प बात यह है कि जुलाई 2022 में अपनी सऊदी यात्रा के दौरान अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन चाहते थे कि सऊदी अरब अन्य जी.सी.सी. देशों के साथ ईरान द्वारा क्षेत्र के लिए उत्पन्न खतरों का मुकाबला करने के लिए काम करे। शायद मध्यपूर्व देशों को आश्वस्त करने के प्रयास में अमरीकी प्रभाव यहां रहने के लिए था। जो बाइडेन ने चुटकी लेते हुए कहा कि हम दूर नहीं चलेंगे और चीन, रूस या ईरान द्वारा भरने के लिए एक शून्य नहीं छोड़ेंगे। अफगानिस्तान से अमरीका के अपमानजनक निकास के बाद ऐसे शब्द जो बहुत आत्मविश्वास को प्रेरित नहीं करते हैं। सऊदी अरब ने आगे जो किया वह तेहरान के साथ शांति समझौते में दलाल के तौर पर चीन को शामिल करना था। एक स्पष्ट संकेत है कि अमरीका की तुलना में चीनियों को बेहतर मध्यस्थ के रूप में देखा गया था। ईरान और चीन के बीच गहरे आर्थिक संबंध हैं। 

आंशिक रूप से अमरीकी प्रतिबंधों से मदद मिली है जिसे चीनियों ने नजरअंदाज कर दिया है। ईरान के साथ अपने तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए अमरीका यहां किसी भी तरह से बिचौलियों की भूमिका नहीं निभा सकता था। दिसम्बर 2022 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की रियाद यात्रा ने वास्तव में संबंधों की मौजूदा बर्फ को पिघलाने की नींव रखी। ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी ने भी फरवरी में बीजिंग में शी जिनपिंग से मुलाकात की थी। जहां सऊदी प्रस्तावों को उनके द्वारा स्वीकार्य पाया गया था। तो दोनों पक्षों ने एक-दूसरे से क्या पूछा? सऊदी अरब लम्बे समय से चाहता था कि ईरान उसके आंतरिक मामलों में दखल देना बंद करे और उसकी धरती पर हमले बंद करे। बदले में ईरानी चाहते हैं कि सऊदी यमन में होतियों को वैध अधिकार के रूप में मान्यता दे और ईरान विरोधी आतंकवादी समूहों को धन देना बंद करे। जो ईरानियों का मानना है कि यह सब सऊदी अरब द्वारा समर्थित है। 

इस समझौते का मध्य पूर्व में व्यापक प्रभाव होगा विशेष रूप से क्षेत्रीय संघर्षों में तनाव कम होगा जहां से दोनों देश या तो प्रत्यक्ष रूप से या फिर छद्म रूप से शामिल हैं। लेकिन निश्चित रूप से बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि अगले 2 महीने कैसे आकार लेते हैं। राजदूतों के आदान-प्रदान की तैयारी के लिए दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक होने वाली है। संयुक्त बयान में दो महीने के भीतर दूतावासों को फिर से खोलने का आह्वान किया गया है। यदि समझौते का वायदा कायम रहता है तो यह संभावित रूप से ईरान को शेष क्षेत्र के करीब ला सकता है जो अब तक अमरीकी दबाव में ऐसा करने से सावधान रहा है। 

चीन के लिए यह एक बड़ी कूटनीतिक जीत है। चीन के लिए यह एक कम जोखिम वाला, उच्च ईनाम वाला प्रयास था लेकिन इस हस्तक्षेप ने चीन को मध्यपूर्व में अमरीकी प्रभाव को चुनौती देने के रास्ते पर खड़ा कर दिया है। सऊदी अरब ने भी उच्च स्तर की निपुणता का प्रदर्शन किया है। 20 सितम्बर 2020 को व्हाइट हाऊस में हस्ताक्षर किए गए। अमरीका की मध्यस्थता वाले इब्राहिम समझौते का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करने के बाद सऊदी अरब ने क्रमश: इसराईल और संयुक्त अरब अमीरात तथा बहरीन के बीच संबंधों को सामान्य किया। भारत के लिए इसका क्या मतलब है। इस डील को भारतीय नजरिए से देखने के दो तरीके हैं। सबसे पहले कोई इसे एक झटके के रूप में देख सकता है और जी.सी.सी. देशों के साथ हमारे हाल के जुड़ावों को देखते हुए खुद एक मध्यस्थ के रूप में काम करने का अवसर भारत चूक गया है। लेकिन यह दृष्टिकोण इस क्षेत्र में भारत के प्रभाव को चीनियों जितना ही महत्वपूर्ण मानता है।-मनीष तिवारी
     


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