पाकिस्तान की अंदरूनी कलह से चीन को 60 अरब डॉलर की चपत

punjabkesari.in Tuesday, May 24, 2022 - 05:22 AM (IST)

चीन ने सी.पी.ई.सी. परियोजना में जो 60 अरब डॉलर का निवेश किया था, वह अब पूरी तरह से डूबता नजर आ रहा है। इसके पीछे की वजह पाकिस्तान का राजनीतिक तौर पर कमजोर होना बताया जा रहा है। 22 मई, 2013 को चीन ने भारत को घेरने के लिए पाकिस्तान के साथ चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे यानी सी.पी.ई.सी. की स्थापना की थी, लेकिन इसके पीछे बहाना यह था कि उसने पाकिस्तान की ग्वादर बंदरगाह से अपने सामानों को अरब सागर के जरिए खाड़ी के देशों, उत्तरी अफ्रीका और पूर्वी यूरोपीय बाजारों तक पहुंचाने के लिए शिनच्यांग के काशगर शहर से ग्वादर तक करीब 3000 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण करवाने की महत्वाकांक्षी परियोजना बनाई है, जो अभी तक पूरी नहीं हुई। इसके पीछे पाकिस्तान में चल रही राजनीतिक उठा-पटक तो है ही, लेकिन इससे भी बड़ा कारण चीन का कम हो रहा खजाना भी है। 

चीन ने दुनिया भर के कई देशों और क्षेत्रों में अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत अरबों डॉलर का निवेश किया, लेकिन चीन में बड़े पैमाने पर फैले भ्रष्टाचार के चलते ये परियोजनाएं पूरी न हो सकीं। इसके साथ चीन ने जिन देशों को आसान शर्तों पर कर्ज दिया था, वह उसे वापस नहीं मिला तो चीन ने उन देशों की बंदरगाह, खनिजों से भरी खदानें, हवाई पट्टियां, विशेष आर्थिक जोन को 99 वर्ष के लिए पट्टे पर ले लिया, लेकिन उनसे भी चीन के निवेश की भरपाई नहीं हुई, जिसका असर चीन की बैल्ट एंड रोड परियोजना पर दिखने लगा। 

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना चीन ने 60 अरब डॉलर के निवेश के साथ शुरू की थी, लेकिन पाकिस्तान में समय-समय पर होने वाले आतंकी हमलों ने इस परियोजना पर अपना बुरा असर दिखाना शुरू कर दिया है। यह परियोजना अपने तय कार्यक्रम के तहत सम्पन्न नहीं हो पाई। इसे 2017 तक पूरा होना था लेकिन 2022 तक इस परियोजना का 20 प्रतिशत काम भी पूरा नहीं हो पाया। वहीं इससे जुड़े दूसरे प्रोजैक्ट्स भी अभी तक पूरे नहीं हो सके हैं।

अभी तक सी.पी.ई.सी. की 15 में से सिर्फ 3 परियोजनाएं ही पूरी हो पाई हैं। अगर कीमत की बात करें तो 3 परियोजनाओं की लागत सिर्फ 30 करोड़ डॉलर है, जबकि पूरी परियोजना 60 अरब डॉलर की है। इस बीच पाकिस्तान में रहने वाले चीनियों की सुरक्षा को लेकर बड़ी चिंता शरू हो गई है। अभी हाल ही में 26 अप्रैल को कराची विश्वविद्यालय के बाहर एक बलोच आत्मघाती महिला हमलावर ने खुद को बम से उड़ा लिया था, जिससे उस समय एक वैन में यूनिवर्सिटी आ रहे 3 चीनी नागरिकों और एक पाकिस्तानी ड्राइवर की मौके पर ही मौत हो गई थी। 

पाकिस्तान मुस्लिम लीग के नेता और इस्लामाबाद के सांसद मुशाहिद हुसैन ने भी कहा है कि कराची हमले के बाद चीन का पाकिस्तानी सुरक्षा बलों और तंत्र पर से विश्वास कम हुआ है। कराची हमला वर्ष 2022 में पाकिस्तान में चीनी लोगों पर तीसरा बड़ा हमला था, जिसे लेकर हुसैन ने पाकिस्तानी संसद में कहा कि ऐसी घटनाओं को लेकर चीन में गहरी चिंता है। इसी बीच सूत्रों से यह जानकारी भी मिल रही है कि कराची हमले के बाद पाकिस्तान में रहने वाले चीनी नागरिक बड़ी संख्या में वापस चीन जाने लगे हैं। लेकिन पाकिस्तान के सुरक्षा अधिकारी और वहां के मीडिया ने ऐसी किसी भी खबर को गलत बताया है और कहा है कि पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठनों व गतिविधियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। लेकिन इससे चीन कहीं से भी आश्वस्त होता नहीं दिखता। हालांकि चीन ने भी इस घटना पर लीपा-पोती करते हुए कहा है कि कोई भी आतंकी घटना चीन-पाकिस्तान रिश्तों पर असर नहीं डालेगी। 

एक तरफ पाकिस्तान चीनी लोगों को सुरक्षा का भरोसा दिला रहा है तो वहीं कुछ पाकिस्तानी रिपोर्ट्स यह दावा जरूर कर रही हैं कि पाकिस्तान में रहने वाले चीनियों में अब डर साफ तौर पर देखा जा सकता है और वे किसी न किसी बहाने पाकिस्तान छोड़ रहे हैं। अगर ये हालात जारी रहते हैं तो पाकिस्तान में चलने वाली चीनी परियोजना को बड़ा झटका लगना तय है। चीन ने पाकिस्तान में अपनी सी.पी.ई.सी. परियोजना के जरिए भारत को घेरने और अपना सामान कम समय में खाड़ी के देशों तक पहुंचाने का जो सपना देखा था, वह अब टूटता नजर आ रहा है। 

दरअसल सी.पी.ई.सी. परियोजना का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत से हो कर गुजरता है। यहां के लोगों में पाकिस्तान के खिलाफ खासा रोष देखने को मिलता है, क्योंकि पाकिस्तान ने बलूचिस्तान पर वर्ष 1948 में अपनी सेना के जरिए जबरन कब्जा कर लिया था, जबकि बलूचिस्तान एक आजाद देश बना रहना चाहता था। पाकिस्तान की अंदरूनी लड़ाई में उसके सबसे करीबी और खास दोस्त चीन का बड़ा नुक्सान हो रहा है। शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी परियोजना बिना रणनीतिक सूझबूझ के शुरू कर दी गई, लेकिन अब पाकिस्तान की आंतरिक लड़ाई चीन के न सिर्फ 60 अरब डॉलर डुबोएगी, बल्कि भविष्य में चीन के आसान रास्ते से खाड़ी देशों, उत्तरी अफ्रीकी देशों तक अपना तैयार सामान पहुंचाने के सपने को भी चकनाचूर करेगी।


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