चीन की नजर अफगानिस्तान में 1 ट्रिलियन मूल्य की खनिज संपदा पर
punjabkesari.in Wednesday, Sep 20, 2023 - 05:05 AM (IST)

मध्ययुगीन मानसिकता, महिला विरोधी तानाशाही, आतंकवादियों को शरण देने की प्रवृत्ति आदि के लिए बदनाम और कुख्यात तालिबान की छवि से निडर होकर, चीन भारत और अमरीका के लिए परेशानी पैदा करने के लिए नई रणनीति और दीर्घकालिक योजना अपनाने के लिए तैयार है, जो उसके काबुल में तत्काल प्रभाव से नया मिशन खोलने के हालिया निर्णय से स्पष्ट है। चीन ने अफगानिस्तान में पूर्णकालिक राजदूत के रूप में झाओ झाओहुई की नियुक्ति की घोषणा की है, जो सीधे संबंध स्थापित करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। काबुल में भारत सहित कई देशों के दूतावास थे लेकिन तालिबान द्वारा इस अशांत देश पर कब्जा करने के बाद स्थिति बदल गई। भारत ने काबुल में अपना परिचालन निलंबित कर दिया था, लेकिन एक साल बाद 2022 में कामकाज फिर से शुरू कर दिया।
चीन की नजर अफगानिस्तान में 1 ट्रिलियन मूल्य की खनिज संपदा पर है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन ने तालिबान के साथ आधिकारिक राजनयिक संबंध रखने के लिए वैश्विक राय को नजरअंदाज कर दिया। पूर्णकालिक राजदूत की नियुक्ति मान्यता के बराबर है और ऐसा कदम पड़ोसी पाकिस्तान द्वारा भी नहीं उठाया गया, जो काबुल शासन के उद्धारकत्र्ता होने का दावा करता था। चीन तालिबान के प्रति नरम नीति अपना रहा है, जिसका उद्देश्य विशाल खनिज संपदा का दोहन करने के लिए नए शासन को अपने कर्ज के जाल में फंसाना है। चीन की कंपनी गोचिन ने 13 अप्रैल, 2023 को अफगानिस्तान के लिथियम भंडार में 10 बिलियन अमरीकी डालर का निवेश करने की इच्छा व्यक्त की, जिसकी पुष्टि तालिबान के खान और पैट्रोलियम मंत्रालय ने की थी। चीनी कंपनी ने तालिबान शासन को आश्वासन दिया है कि वह इस देश में 10 लाख अप्रत्यक्ष और 1,20,000 प्रत्यक्ष नौकरियां पैदा करेगी।
इसी तरह, झिंजियांग सैंट्रल एशिया पैट्रोलियम एंड गैस कंपनी (कापेइक) ने जनवरी 2023 में उत्तरी अफगानिस्तान के अमु दरिया बेसिन से तेल निकालने के लिए 540 मिलियन डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो लगभग एक ट्रिलियन मूल्य की विशाल खनिज संपदा के बड़े शिकार के लिए भविष्य की योजना के तहत है। आंकड़ों के अनुसार, अफगानिस्तान में विशाल खनिज संपदा का अब तक दोहन नहीं हुआ है, जिसमें सोना (तक्कर और गजनी... आदि 2698 किलोग्राम), तांबा (काबुल और लोगर...12.34 मिलियन किलोग्राम), एल्युमीनियम (बाबुल और बाघलान... 4.5 मिलियन), लोहा (बदख्शां और कंधार... 2.26 मि./ बामियान और बघलान 178 मि.), ग्रेफाइट (बदख्शां... 5 के) शामिल हैं।
पाकिस्तान की इच्छा के मद्देनजर, दुनिया को यह बताने की कोशिश की गई कि वह तालिबान शासन को निर्देशित करेगा, इसलिए उसने भारत को दोहा वार्ता से बाहर रखने की चालाकी की, जिसने अफगानिस्तान से अमरीकी सैनिकों की वापसी का रोडमैप तैयार किया। लेकिन पाकिस्तान और तालिबान के उथल-पुथल और तनावपूर्ण संबंधों ने पूरे परिदृश्य को बदल दिया है। 2021 में जब तालिबान ने काबुल में सत्ता संभाली, तब से पाकिस्तान सबसे आगे था लेकिन भारत पर कब्जा करने की उसकी ‘खुशी’ ‘अल्पकालिक’ साबित हुई क्योंकि तालिबान ने पाकिस्तान पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टी.टी.पी.) को बढ़ावा और समर्थन करने का आरोप लगाया है, जिसने 2022 में पाकिस्तान में 179 लोगों की हत्या कर दी। टी.टी.पी. ने जनवरी, 2002 में मस्जिद पर हमले में 100 से अधिक लोगों की हत्या कर दी, जो इस आतंकवादी समूह की सबसे घातक कार्रवाइयों में से एक थी और इसने पाकिस्तान के लोगों और सेना को हिलाकर रख दिया था।
भारत को खनिज क्षेत्र में चीन के प्रवेश को रोकने के लिए जवाबी रणनीति अपनानी होगी। नई दिल्ली में जी-20 की शानदार सफलता से चिढ़कर चीन तालिबान को पकडऩा चाहता है, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करने में विफलता के बाद किसी संरक्षक की सख्त जरूरत थी, हालांकि 15 अगस्त, 2021 को काबुल में सत्ता संभालने के बाद से दो साल बीत चुके हैं। जी-20 में शी की अनुपस्थिति से कोई खास फर्क नहीं पड़ा और भारत ने सर्वसम्मति से दिल्ली घोषणा पत्र पेश किया, जिससे विश्व राजनयिक क्षेत्र में उसका कद बढ़ गया।
विभिन्न परियोजनाओं, शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र में लगभग 22,350 करोड़ रुपए के भारी निवेश के कारण, चीन द्वारा बिछाए गए जाल में फंसने पर भारत को तालिबान से निपटने की अकल्पनीय चुनौती का सामना करना पड़ेगा। दूसरा, अफगानिस्तान में चीन की सक्रिय भागीदारी के बाद भारत का उत्तर-दक्षिण-गलियारा प्रभावित हो सकता है। तालिबान ने अतीत में अफगानिस्तान में भारत के निवेश की सराहना की लेकिन भविष्य के निवेश के बारे में कुछ भी निश्चित नहीं है।
चीन दुनिया को यह संदेश देना चाहता है कि वह महाशक्ति बनने की अपनी महत्वाकांक्षा के तहत अमरीका जैसे अन्य देशों में अपना प्रभाव फैला सकता है। इसका इरादा अफगानिस्तान के माध्यम से अपने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का विस्तार करने का है, जो कई पड़ोसियों के लिए सुरक्षा ङ्क्षचता पैदा कर सकता है। चीन अफगानिस्तान में अमरीका विरोधी भावनाओं का फायदा उठाकर तेल की खोज शुरू कर सकता है, जो आर्थिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
विश्लेषकों का मानना है कि ‘साम्राज्यों की कब्रगाह’ कहे जाने वाले और अमरीका सहित कई देशों की हार का गवाह रहे अफगानिस्तान में सफलता हासिल करना आसान नहीं होगा। सोवियत संघ 20वीं सदी में हार गया था, हालांकि चीन का प्रवेश खनिजों के दोहन की उसकी नीति पर आधारित है, इसलिए वह भारी राजस्व अर्जित करने के अलावा अफगानिस्तान के लोगों को नौकरी के क्षेत्र में लाभ पहुंचाने की धारणा बनाने की कोशिश कर रहा है। प्रासंगिक बने रहने के लिए तालिबान का बेताब प्रयास भी चीन के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित करने में एक सहायक कारक है, जिसने इस दुर्लभ अवसर पर धावा बोल दिया है। चीन अपनी बैल्ट एंड रोड पहल का विस्तार करने के लिए अफगानिस्तान को लक्षित करेगा, जिसमें अरबों अमरीकी डॉलर का निवेश शामिल है और तालिबान इसे रोजगार पैदा करने और विकास के मार्ग की संभावित पद्धति के रूप में स्वीकार कर सकता है, जो एक मृगतृष्णा साबित हो सकता है।-के.एस. तोमर