तिब्बत को अपना अटूट अंग समझता है चीन

punjabkesari.in Monday, Apr 10, 2023 - 04:55 AM (IST)

हम खुद से एक सवाल पूछते हैं कि हम अपने देश के प्रति किस हद तक प्रतिबद्ध हैं और हम इसकी भलाई, प्रगति के लिए क्या त्याग करने को तैयार हैं। उदाहरण के लिए यूक्रेन की आबादी करीब 43 मिलियन है। इसमें से एक चौथाई से अधिक मुख्य रूप से महिलाएं, बच्चे और वृद्ध हैं जो युद्ध के कारण आंतरिक या बाहरी रूप से विस्थापित हुए हैं। 

एक अनुमान के अनुसार डेढ़ लाख से अधिक लोग मारे गए या घायल हुए हैं जिनमें 30 हजार से अधिक नागरिक शामिल हैं। यह गिनती अभी भी जारी है। जब तक यूक्रेनी रूसियों को उनके क्षेत्र से बाहर निकालने में सफल नहीं हो जाते, तब तक वे लडऩे के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। भले ही इसमें कितना भी समय क्यों न लगे। 

इसके विपरीत हमने लद्दाख में अपने सम्प्रभु क्षेत्र के रूप में अपने द्वारा दावा किए गए एक हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक का क्षेत्र खो दिया। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि हमारी सरकार ने किसी भी कारण से अभी तक इस नुक्सान को सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया है। इसके बजाय हमें सार्वजनिक रूप से यह कहते हुए विदेश मंत्री की बदनामी का सामना करना पड़ा है कि चीन का सामना करना हमारे लिए जोर आजमाईश का काम है। 

पूरी तरह से ईमानदार होने के लिए चीनी आक्रामकता के सामने झुकने वाली यह अकेली सरकार नहीं है। इंदिरा गांधी के पहले कार्यकाल को छोड़कर नेहरू के समय से यह पुनरावृति  होती रही है। यह उनके समय में था कि हमने न केवल नाथू-लॉ में पी.एल.ए. को खूनी टक्कर दी बल्कि भारत-सोवियत समझौते पर हस्ताक्षर करके उन्हें बेअसर कर दिया। जिसने हमें बिना किसी हस्तक्षेप के 1971 में बंगलादेश को मुक्त करने के लिए कार्रवाई की स्वतंत्रता दी। बेशक फील्ड मार्शल मानेकशॉ के सर्दियों में हमला करने के फैसले में हमारे लिए लाभ को भी कम कर दिया। 

अपनी मातृभूमि पर चीन के कब्जे के बाद यहां शरण लेने वाले तिब्बती प्रवासियों के साथ हमने जिस तरह से व्यवहार किया है उससे हमारी पराजयवादी मानसिकता का पता चलता है। चीनी सेना के कब्जे के समय से मिले हर अवसर पर न केवल हमने उन्हें नीचा दिखाया बल्कि उनके लिए खड़े न होकर आज भी ऐसा करना जारी रखा है। हम जिसे समझने या अनदेखा करने में विफल रहे हैं  वह सरल भू-राजनीतिक सत्य है। जिसे केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन के प्रमुख डाक्टर लॉबसांग सांगे ने कई अवसरों पर स्पष्ट रूप से समझाया है। वे बताते हैं कि चीनी कब्जे वाले तिब्बत को चीन अपनी हथेली के रूप में देखता है। जो तभी पूर्ण होगी जब वह इसकी पांच उंगलियों अरुणाचल प्रदेश, भूटान, सिक्किम, नेपाल और लद्दाख को नियंत्रित करेंगे। 

कुछ शिक्षाविदों और शोधकत्र्ताओं का सुझाव है कि हम पूरी तस्वीर से अवगत नहीं हैं और सरकार के पास सत्ता के अन्तर को देखते हुए बहुत कम विकल्प है क्योंकि कोई अन्य देश हमारी सहायता के लिए नहीं आएगा जब टकराव की स्थिति पैदा होगी। यह केवल बजट का आकार नहीं है जो मायने रखता है बल्कि सैनिकों की गुणवत्ता, उनके अनुभव और संख्या भी मायने रखती है। मामले की सच्चाई यह है कि सरकार के शब्द एक मिनट के लिए भी यह नहीं बताते हैं कि चीनियों को धोखा देने और उन्हें संतुष्ट करने के लिए हमारे पास कोई चतुर रणनीति मौजूद है। हम अपने स्वयं के चयन और स्थान पर चीन का सामना करने के लिए तैयार नहीं हैं। 

इसके बजाय यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा यह दिखता है, बस कायरता। शब्द हमारे वीर पुरुषों का अपमान भी करते हैं जिन्होंने गलवान घाटी में अपना अंतिम बलिदान दिया और चीनी नेतृत्व को हमारे क्षेत्र में आगे बढऩे को रोके रखा। इतिहास के बारे में हमारा दृष्टिकोण बताता है कि हम जयचंद और मीरजाफर जैसे गद्दारों के गुलाम थे जिन्होंने महत्वपूर्ण मौकों पर हमें निराश किया लेकिन जो अधिक संभावना प्रतीत होती है वह कहीं अधिक अप्रिय संभावना है कि हम उन सभी से अलग नहीं हैं जिन्हें अवमानना में रखते हैं। सच्चाई यह है कि हमने राणा सांगा, छत्रपति शिवाजी महाराज या नेता जी सुभाष चन्द्र जैसे मुट्ठीभर सच्चे बहादुर पैदा किए। जैसा कि किसी ने बार-बार इंगित किया है कि शासन का एक मात्र पहलू जो हमने अपने ब्रिटिश आकाओं से सीखा है वह था फूट डालो और शासन करो और हमने अब इसे एक कला बना लिया है।-दीपक सिन्हा


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