प्रवासी भारतीयों के बच्चे भूले अपना देश

punjabkesari.in Tuesday, Mar 28, 2023 - 05:51 AM (IST)

पिछले सप्ताह मेरी एक सहेली दिल्ली में अपनी मां की अंतिम किरया करने के लिए पहुंची। उसकी मां अपने सुनहरी वर्षों के दौरान अमरीका में बस गई थी। मेरी सहेली और उसका पति पिछले 30 वर्षों से अमरीका में रह रहे हैं और उनके बेटे वहीं पर पले-बढ़े हैं। 

बच्चे अपनी भारतीय जड़ों के कारण (पंजाबी और तमिल मिश्रण) गर्व महसूस करते हैं। मगर फिर भी अपने आपको वे अमरीकी ही समझते हैं। इसी कारण मैंने साधारण तौर पर एक अनिवार्य आश्चर्य की बात की। मैंने अपनी सहेली से कहा कि क्योंकि अब आंटी इस दुनिया में नहीं हैं तो क्या वह हर वर्ष की तरह भारत आती रहेगी। मेरी सहेली ने खुलासा किया कि भारत में पूर्व सहपाठियों ने मेरे से यही सवाल पूछा। अब उसके मिश्रित विचार हैं। 

उसके माता-पिता जोकि तमिल हैं और चेन्नई में बसते हैं उनसे उसके बेटे बेहद लगाव करते हैं। क्या इसका मतलब यह है कि वे दिल्ली को छोड़ सीधा चेन्नई जाना पसंद करेंगे। एक के बाद एक परिवार और मेरी पीढ़ी के दोस्त यह महसूस करने लगे हैं कि माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी या अन्य रिश्तेदारों के गुजरने के बाद भारत को छोड़ देना चाहिए। उनके बिना भारत के साथ गठजोड़ तुच्छ-सा लगेगा। भारत में उसकी स्कूल, कालेज और उत्सवों से संबंधित कई बेशकीमती यादें हैं मगर यह भी महसूस किया जाता है कि ये सब अब अतीत की बातें हैं। 

कोलकाता के एक प्रसिद्ध स्टोर के तीसरी पीढ़ी के मालिक के साथ हाल ही में बातचीत हुई। उसने कहा कि 1960 के दशक में जो भारतीय पश्चिम की ओर चले गए वे प्रत्येक वर्ष यहां आते हैं और इसी स्टोर से वस्तुएं खरीदते हैं। हालांकि वास्तविक प्रवासी अब यहां से दूर हो रहे हैं क्योंकि या तो वे बूढ़े हो गए हैं या फिर यात्रा करने के काबिल नहीं रहे। उनके बच्चे अब भारत में आना पसंद नहीं करते। 

मेरे परिवार में मेरी एक उम्रदराज मौसी भारत आती हैं। मेरी दूसरी कजिन अपनी मां के गुजरने के बाद भी भारत लौटती है। मामा और मामी की आयु 90 वर्ष की हो चुकी है। वे अब अमरीका से हर साल नहीं आ पाते। उनकी बेटी तथा उनके पोते का अब भारत के प्रति कम झुकाव है। व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से ही पारिवारिक सदस्यों के बीच बातचीत होती है मगर यह उम्मीद बहुत कम है कि अगली पीढ़ी भारत से जुड़ी रह पाएगी। 

अगले कुछ दशकों में प्रवासी भारतीयों का भारत और भारतीयों के प्रति एक नया चरण देखने को मिलेगा। कैरेबियन, अफ्रीका और दक्षिणी पूर्व एशिया के भारत मूल के लोग जोकि भारत को एक सदी पहले छोड़ गए थे, उनकी आदत, पहरावा, त्यौहार और संस्कृति भारत से अभी भी जुड़ी हुई है। सांस्कृतिक रूप से वे लोग अभी भी उस देश से जुड़े हैं जिसमें उनके पूर्वज बसते थे। भारत के प्रति उनका लगाव तो है मगर कोई जबरदस्त लिंक नहीं रहा। 

प्रवासी भारतीय अब विदेशों में रह कर वहीं के उत्सव मनाना पसंद करते हैं। फिर चाहे सेंट पैट्रिक्स डे हो या फिर बन्र्स नाइट मगर अब उनका ज्यादातर अपने परिवारों से कोई भावनात्मक संबंध नहीं है जब वे अपने पूर्वजों के देश लौटते हैं तो वे बतौर एक यात्री के तौर पर आते हैं मूल निवासी के तौर पर नहीं और यदि वे लोग किसी ऊंचे राजनीतिक पदों पर बैठे हों (जैसे ऋषि सुनक, लियो वराडकर और कमला हैरिस) तो वे भारत को एक जीवन का नजरिया मानते हैं, अपना देश नहीं। 

भारत को केवल एक देश के रूप में नहीं बल्कि जीवन के तरीके के रूप में पेश करना चाहिए। अब मेरी दोस्त भारत के साथ अपने रिश्तों को खोज रही है क्योंकि उसकी मां अब दुनिया में नहीं है। वह भारत को अपनी पुण्य भूमि मानती है जिसमें अभी भी आकर्षण है। जब कभी भी अमरीका में उसका कार्य और जीवन उसको अनुमति प्रदान करेगा तो वह और उसका पति भारत के पवित्र स्थलों की यात्रा करना चाहेंगे मगर उनके बेटों का क्या होगा?-रेशमी दासगुप्ता


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