रासायनिक खेती मानव और पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक

punjabkesari.in Thursday, Feb 03, 2022 - 06:17 AM (IST)

भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि की महत्वपूर्ण भूमिका है। कृषि न केवल हमारी आॢथक उन्नति की राह को सुगम बनाती है, बल्कि हमारी सामाजिक व आध्यात्मिक उन्नति का भी साधन है। कृषि हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में मानव के बढ़ते लालच ने इसमें विष घोल दिया है।

एक समय था जब हरित क्रांति के दौर में रसायनों ने कृषि में चार चांद लगा दिए थे। लेकिन मानव की बढ़ती महत्वाकांक्षा व सीमित भूमि में अधिक उत्पादन के लालच के चलते रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग शुरू कर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि आज वातावरण प्रदूषित हो चला है। मानव ने मिट्टी, जल यहां तक कि हवा को भी जहरीला बना दिया है। 

रसायनों के बढ़ते प्रयोग से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से न केवल मानव जीवन प्रभावित हुआ है, बल्कि पशु-पक्षी और जलीय जीव-जंतु भी संकट के दौर से गुजर रहे हैं। जो फल-सब्जियां सेहत का खजाना मानी जाती हैं, आज उनमें जहर घुल गया है। कैमिकल के बढ़ते प्रयोग से न केवल हमारी वर्तमान पीढ़ी बल्कि आने वाली पीढ़ी भी बीमारियों की चपेट में आ गई है। आज बड़े पैमाने पर कीटनाशक फसलों के कीड़े मारने के लिए उपयोग किए जा रहे हैं, जिससे पक्षियों की कई प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं। इतना ही नहीं, मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने वाले जीव भी इन खतरनाक रसायनों की चपेट में आकर नष्ट हो गए हैं। 

एक अध्ययन से यह पता चला है कि कीटनाशक के अत्यधिक प्रयोग से कैंसर का खतरा बढ़ गया है। यहां तक कि हमारे हार्मोन, प्रोटीन सैल व डी.एन.ए. को क्षति पहुंच रही है, जिससे असमय थकान,  संक्रमण, बीमारियों का खतरा, उम्र से पहले बुढ़ापे जैसी समस्याएं भी बढ़ गई हैं। 

भारत में कीटनाशकों और रसायनों के बेजा इस्तेमाल के कारण नेपाल ने हमारे फलों-सब्जियों पर रोक तक लगा दी थी। इसके अलावा दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सब्जियों में कीटनाशकों के इस्तेमाल से संबंधित जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कहा था कि फलों को पकाने के लिए कीटनाशक व रसायनों का प्रयोग उपभोक्ता को जहर देने के समान है। 

आज भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कीटनाशक उत्पादक देश है। वहीं देश में बड़े पैमाने पर प्रतिबंधित कीटनाशकों का भी धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा है। आंकड़ों की मानें तो 2019-2020 में देश में 60,599 टन कैमिकल कीटनाशकों का छिड़काव किया गया। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, हरियाणा व पंजाब में रसायनों का सर्वाधिक इस्तेमाल किया जा रहा है। खेती को लाभ का सौदा बनाने के लिए किसान ने खेती में जहर घोल दिया है। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, कृषि विशेषज्ञ, पर्यावरणविद् यहां तक कि सरकार भी इसे रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रही। 

देश में 86 प्रतिशत किसान छोटे व मध्यम श्रेणी के हैं जिनके अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। उन्हें सरकार द्वारा उर्वरक सबसिडी का लाभ तक नहीं मिल पाता। किसान कर्ज के बोझ तले दब जाता है। पर हमारी रहनुमाई व्यवस्था को तो हर मुद्दे पर सिर्फ राजनीति ही करनी है। यही वजह है कि समय-समय पर किसान आंदोलनों के नाम पर तमाम राजनेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने से बाज नहीं आते। हमारे देश में खेती को सदैव पूजनीय माना जाता है। यहां तक कि हमारे वेदों-पुराणों में भी खेती का जिक्र मिलता है। त्रेता युग में मिथिला के महाराज जनक के द्वारा खेत में हल चलाने की बात कही गई है। 

वहीं द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम भी हल धारण कर हलधर कहलाए। यह सच है कि कृषि सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला साधन है। यहां तक कि हमारे देश के कई बड़े कारखाने कृषि उत्पाद पर आधारित हैं। आज भले ही कृषि भूमि बढ़ते शहरीकरण से कम हो रही है, लेकिन इसका यह मतलब तो कतई नहीं कि कैमिकल का अंधाधुंध इस्तेमाल कर फसल की पैदावार बढ़ाई जाए। 

विश्व जलवायु परिवर्तन का दौर चल रहा है। हमारा देश विविधताओं से भरा है। यहां न केवल प्रकृति और जैव विविधता मौजूद है, बल्कि समाज में जाति-धर्म में भी विविधता विद्यमान है। एक ओर समाज का एक बड़ा तबका विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा है, तो दूसरी तरफ एक तबका दो जून की रोटी को तरस रहा है। 

अमीरी-गरीबी की खाई दिन दूनी बढ़ती चली जा रही है। कहने को हम कृषि प्रधान देश हैं, लेकिन आज भी हमारे देश में लोग भूख से मर रहे हैं और अधिक पैदावार के लिए किसान रसायनों का जबरदस्त इस्तेमाल मुनाफे के लिए करते जा रहे हैं। ऐसे में सरकार को भी सोचना चाहिए कि कैसे बिना रासायनिक उर्वरकों के खेती को लाभ का धंधा बनाया जाए, क्योंकि कीटनाशक इस्तेमाल करने वाले क्षेत्रों में खुदकुशी ज्यादा मात्रा में किसान ही करते हैं। ऐसा हम नहीं आंकड़े कहते हैं। 

खेती सिर्फ पैसे के लिए नहीं, बल्कि आहार के लिए भी होती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक  बङ्क्षठडा ‘कैंसर सिटी’ बन गया है। इतना ही नहीं, आंकड़ों के मुताबिक कीटनाशक का 30 फीसदी  ही छिड़काव के दौरान फसल पर असर दिखाता है, जबकि 70 फीसदी हवा में ही रह जाता है। जिसकी चपेट में आकर कैंसर जैसी बीमारियों को किसान सबसे पहले बुलावा देता है। ऐसे में अब इसे लेकर सरकार और किसान दोनों को सचेत होना चाहिए।-सोनम लववंशी
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए