मनोरंजन तथा जानकारी प्राप्त करने का सस्ता साधन रेडियो
punjabkesari.in Thursday, Feb 13, 2020 - 04:17 AM (IST)
एक समय ऐसा भी था जब रेडियो अपनी बुलंदियों पर था। लोग अक्सर बी.बी.सी. लंदन तथा आल इंडिया रेडियो पर उर्दू में प्रसारित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों को बड़ी दिलचस्पी से सुनते थे। आल इंडिया रेडियो की उर्दू सर्विस से प्रसारित होने वाले फरमाइशी गीतों के कार्यक्रम तो जैसे कामकाजी लोगों के लिए एकमात्र मनोरंजन का साधन थे। मोहम्मद रफी तथा लता मंगेशकर जैसे गायकों के गीत आज भी रेडियो से किसी गली-मोहल्ले में से निकलते हुए कानों में पड़ जाते हैं। इससे रूह प्रसन्न हो जाती है।
टैलीविजन के आने तथा इसमें आने वाले अनेकों चैनलों की भरमार ने रेडियो की लोकप्रियता में काफी हद तक कमी ला दी। इसमें कोई दो राय नहीं है कि जिस स्तर तथा संस्कृति को रेडियो आज तक सम्भाल कर बैठा है, उस कसौटी पर टी.वी. चैनल नहीं उतरते। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी ज्यादातर वृद्ध लोग रेडियो सुनते देखे जा सकते हैं।
रेडियो से प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों का सबसे बड़ा लाभ यह था कि उसके कार्यक्रमों को सुनते हुए लोगों के कार्यों में विघ्न नहीं पड़ता। जबकि टी.वी. को देखते समय लोग उसके साथ बंध कर रह जाते हैं। उल्लेखनीय है कि अमरीका, इंगलैंड इत्यादि देशों में आज भी लोगों के बीच रेडियो का वही मियार तथा आदर कायम है जो हमारे यहां 3-4 दशकों पहले हुआ करता था। 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इससे पहले यूनैस्को ने 2011 में प्रत्येक वर्ष 14 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाने का फैसला लिया था जिसके तहत विश्व रेडियो दिवस की शुरूआत 2012 में हुई।
अब हम रेडियो के शुरूआती इतिहास पर नजर दौड़ाते हैं। इसका इतिहास तकनीक का इतिहास है जो उन रेडियो यंत्र का इस्तेमाल करता है जो रेडियो वेव इस्तेमाल करते हैं। शुरू-शुरू में रेडियो डिवैल्पमैंट को ‘वायरलैस टैलीग्राफी’ के तौर पर शुरू किया गया था। इतालवी खोजकत्र्ता गुगलीलोमो मार्कोनी ने अपनी कई वर्षों की अनथक मेहनत के बाद वर्ष 1894 से एयरहोबरन हार्टजियन वेव्स (रेडियो प्रसारण) पर आधारित प्रथम सम्पूर्ण, व्यापारिक सफलता के साथ वायरलैस टैलीग्राफी सिस्टम बनाया। यहां पर वर्णनीय है कि मार्कोनी ने रेडियो संचार सेवाएं तथा साजो-सामान के विकास तथा प्रसार के लिए एक कम्पनी शुरू की। इसके बाद 1901 में मार्कोनी ने प्रथम सफल ट्रांसलाटैंटिक प्रयोगात्मक संचार शुरू किया। 1904 में यू.एस. पेटैंट आफिस ने इसके फैसले को उलटा दिया। मार्कोनी को रेडियो की खोज के लिए एक पेटैंट अवार्ड दिया गया।
1954 में रिजैंसी ने स्टैंडर्ड 22.5 वाई बैटरी द्वारा चलाए गए एक पाकेट ट्रांजिस्ट्रिक रेडियो, टी.आर.-1 पेश किया। 1960 के दशक के शुरू में वी.ओ.आर. सिस्टम आखिर में जहाज के नेवीगेशन के लिए व्यापक हो गया। इससे पूर्व हवाई जहाज ने नेवीगेशन हेतु व्यापारिक ए.एम. रेडियो स्टेशनों का इस्तेमाल किया। अब जबकि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रेडियो पर ‘मन की बात’ की शुरूआत की है तो इस कार्यक्रम का लोगों को फायदा हुआ कि नहीं, यह अलग बहस का विषय है पर मन की बात कार्यक्रम का इतना जरूर फायदा हुआ है कि इसके चलते रेडियो को भूल चुके दिमाग ने इसे फिर से सजीव कर दिया।-मोहम्मद अब्बास धालीवाल
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