अच्छे दिनों का पीछा, प्रधानमंत्री मोदी के स्टाइल में

Friday, Jul 16, 2021 - 06:26 AM (IST)

कोविड-19 संकट की दूसरी लहर से प्रभावपूर्ण तरीके से निपटने में अपनी असफलता के मद्देनजर वैश्विक स्तर पर अपनी धूमिल होती छवि को सुधारने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में अपने मंत्रिमंडल में कुछ उच्च योग्यता प्राप्त प्रोफैशनल लोगों को शामिल किया है जो विभिन्न जातियों तथा उप जातियों से संबंधित हैं। यह एक प्रशंसनीय कदम है। इससे निश्चित तौर पर जनता में उनकी छवि मेें सुधार होगा, बशर्ते आवश्यक सुधारों के लिए इन पर गंभीरतापूर्वक अमल करते हुए तालमेल बनाकर कार्य किया जाए। दाव पर है सभी स्तरों पर नेतृत्व की गुणवत्ता लेकिन मु य तौर पर राष्ट्रीय मामलों की कमान संभाले हुए व्यक्ति को लेकर, जो भारत के वर्तमान भाग्यविधाता नरेन्द्र मोदी हैं। 

गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री ने 2014 में अच्छे दिनों के लिए एक आशा की किरण जगाई थी, तब से कई वर्ष गुजर चुके हैं। हमारे बीच अभी भी 35-40 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं। कोविड-19 के संकट ने देश में चीजों को और भी खराब कर दिया। मुझे आशा है कि अब तक प्रधानमंत्री मोदी को भी अहसास हो गया होगा कि उनकी सरकार को किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि हम लोग उनके बेहतरी के लिए बदलाव के वायदे पर आशा लगाए बैठे हैं। कड़ी जमीनी हकीकतों की सूची ल बी है। यह जीवन तथा समाज के आधार को छू रही हैं। यह बिखराव की स्थिति को भी दर्शाती है क्योंकि आंतरिक विरोधाभास पहले के मुकाबले कहीं अधिक तीक्ष्ण दिखाई दे रहे हैं। ऐसी ही अनगिनत पेचीदगियां हैं। 

ये अधिकतम पेचीदगियां राजनीतिक तथा मानव निर्मित हैं। कोई हैरानी की बात नहीं कि हमने वास्तव में कोविड-19 प्रभावितों के लिए अत्यावश्यक स्वास्थ्य प्रणाली को लगभग धराशायी होते देखा है, अस्पतालों के भीतर तथा बाहर दोनों जगह पर। ऐसी परिस्थितियों में मैं आशा करता हूं कि नवपदोन्नत मंत्री मनसुख मांडविया स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार लाने के लिए प्राथमिकता के आधार पर आवश्यक सुधारात्मक कदम उठाएंगे। यहां विचार एक गमगीन तस्वीर बनाने का नहीं है। फिर भी प्रधानमंत्री मोदी तथा उनकी टीम को आगे की चुनावी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए जमीनी हकीकतों का खुले दिल से सामना करने की जरूरत है। 

मुझे राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं के नजदीक डेरा डाले बैठे आत्महत्या करने वाले किसानों, झोंपड़ पट्टियों में रहने वाले लटकते पेटों वाले बच्चों, छत विहीन पुरुषों तथा महिलाओं, बाल मजदूरों, बीमार ग्रामीण व्यवस्था, लड़कियों तथा युवा महिलाओं के खिलाफ भेदभाव, ‘स्मार्ट नगर’ के आधिकारिक नारों के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में आधुनिक शिक्षा सुविधाओं के अभाव तथा बुलेट ट्रेन की कड़ी हकीकतों को याद करना अच्छा नहीं लगता। 

लोगों की शिकायतों की सूची लंबी है क्योंकि जनता की सहनशीलता एक सीमा तक पहुंच गई है। फिर भी सही घटनाक्रमों के अभाव में लोगों की चुप्पी ‘गोल्डन’ दिखाई देती है। अच्छा प्रशासन एक स त काम है। मु त की चीजें बांटने की नीतियों तथा दूरदृष्टा नेतृत्व के अभाव के बीच सिस्टम में खामियां लगातार बनी हुई हैं, लेकिन इसी तरह भारत चल रहा है। भारत के डिजिटल परिदृश्य की पृष्ठभूमि में गरीब तथा पिछड़े लोग अपने सपनों में ही जी रहे हैं और सपने उन्हें वाक्पटुता के रास्ते बेचे जा रहे हैं। कौन परवाह करता है यदि ओडिशा की कोई जन-जातीय महिला अपने पुरुष बच्चों को एक नि:संतान महिला को बेच देती है ताकि अपने बड़े परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा कर सके। यह भारत है, जिसके लिए हम सभी चिंतित हैं। 

हमें विश्वास है कि आवश्यक सुधार कभी न कभी जरूर किए जाएंगे। हालांकि तुरन्त चिंता का विषय है एक विश्वसनीय आंतरिक संचार तथा शिकायत समाधान प्रणाली के अभाव का। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के  प्रो. वीर चोपड़ा का कहना है, ‘‘हम निश्चित तौर पर बेहतरी के लिए भविष्य को बदल सकते हैं, यदि हमारे पास दो चीजें हैं-इस विचार की स्पष्टता कि वास्तव में हम क्या चाहते हैं? तथा दूसरी, उस लक्ष्य को प्राप्त करने की क्षमता।’’ यहां मुख्य बिंदू है कि  भारत की सामाजिक-आॢथक तथा राजनीतिक पेचीदगियों पर काबू पाने के लिए विचारों की स्पष्टता कैसे प्राप्त की जाए? कैसे बदलाव के ड्रीम कन्सैप्ट को बिना प्रणालीगत प्रयासों के प्राप्त किया जाए ताकि विकास की प्रक्रिया को हर उस व्यक्ति तक पहुंचाना सुनिश्चित किया जा सके जिनमें समाज के सर्वाधिक निचले तबके के लोग शामिल हैं। 

दुर्भाग्य से आज भारत में जो चीज मायने रखती है वह है जोड़-तोड़ की राजनीति। बदले में इसने हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं की प्रभावशीलता को दूषित कर दिया है। मैं सुनिश्चित नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी इन अवधारणाओं को गंभीरतापूर्वक लेंगे। इसी में बेहतरी के लिए भारत बदलो के वायदे का दुखांत निहित है। कोई भी बदलाव गरीबों, पिछड़ों, वंचितों, अत्यधिक शोषित जनजातियों तथा अल्पसं यकों की ओर निर्देशित होना चाहिए जिन्हें हमारे द्वारा प्राप्त विकास के बावजूद सामाजिक-आॢथक सीढ़ी पर पीछे छोड़ दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अच्छे दिन के ड्रीम कंसैप्ट की बात करें तो मुझे आशा है कि वह भारतीय जनता के वंचित वर्गों के हितों के लिए तेजी से काम करेंगे न केवल शब्दों से बल्कि जमीन पर ठोस कार्य के साथ।-हरि जयसिंह
 

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