कोरोना के बाद बदलते हालातों में बदलती शिक्षा

punjabkesari.in Tuesday, Nov 02, 2021 - 04:30 AM (IST)

देश को आखिरकार 34 साल बाद नई शिक्षा नीति मिली है। शिक्षा प्रणाली को काबू करने वाले सिद्धांतों, नियमों और कानूनों के समूह को शिक्षा नीति कहा जाता है।  कोरोना संकट के दौरान अचानक ही स्कूल बंद करने पड़े और जब लगा कि यह लंबे समय तक चलने वाला गतिरोध है तो आनन-फानन घर बैठे ही बच्चों को पढ़ाने की जुगत लगने लगी। बंद स्कूलों के साथ पाठ्यक्रम पूरा करने की इस दौड़ में करीब 300 दिनों में कई बच्चे बहुत पीछे छूट गए। इससे शिक्षा-तंत्र पर क्या असर हुआ?

2020 शिक्षा नीति के नियम कहते हैं कि 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त और आवश्यक शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। डॉ. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में 1948 में विश्वविद्यालय स्कूल शिक्षा आयोग का गठन किया गया था। तभी से राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण भी शुरू हुआ। कोठारी आयोग (1964-1966) की सिफारिशों के आधार पर 1968 में पहली बार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अध्यक्षता में जरूरी बदलावों के साथ एक प्रस्ताव पास किया गया था। 
1986 में भारत सरकार ने एक नई शिक्षा नीति 1986 का मसौदा तैयार किया। इस नीति की मुख्य विशेषता यह थी कि इसने पूरे देश के लिए समान शिक्षा को अपनाया और अधिकतर राज्यों ने 10+2+3 पैटर्न अपनाया। इसे राजीव गांधी के प्रधानमंत्री के तौर पर कार्यकाल के दौरान अपनाया गया था। उस समय शिक्षा मंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव नियुक्त किए गए। 

जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का दस्तावेज सामने आया तो स्कूली शिक्षा को लेकर भारत में एक नई बहस छिड़ गई, क्या डिजिटल प्लेटफार्म की कक्षाएं, वास्तविक क्लासरूम का विकल्प हो सकती हैं? नई नीति के दस्तावेज में भी मोबाइल एप, डिजिटल शिक्षा, मूल्यांकन में अधिक से अधिक इलैक्ट्रॉनिक माध्यमों के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है। नई शिक्षा नीति के तहत कई मुख्य परिवर्तन हुए हैं, जिनमें से मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय करने का निर्णय लिया गया। सहायक पाठ्यक्रम या अतिरिक्त पाठ्यक्रम के स्थान पर संगीत, खेल-कूद, योग आदि को मुख्य पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। अब शोध में जाने के लिए 3 साल की बी.ए. की डिग्री के बाद 1 साल की एम.ए. तथा  स्कूलों में 10+2+3  फॉर्मैट को 5+3+3+4 फॉर्मैट से बदला जाएगा।  सरकारी स्कूल जहां पहली कक्षा से शुरू होते थे, अब प्री-प्राइमरी के 3 साल बाद कक्षा 1 शुरू होगी। 

पहली से 5वीं तक माध्यम के रूप में मातृभाषा का प्रयोग किया जाएगा। इससे रटन विद्या को मिटाने का भी प्रयास किया गया है, जिसे आज के समय की एक बड़ी कमी माना जा रहा है। नई शिक्षा नीति पहले वर्ष में पाठ्यक्रम छोडऩे पर प्रमाण पत्र, द्वितीय वर्ष में डिप्लोमा और अंतिम वर्ष में डिग्री प्रदान करेगी। इस नीति के तहत बच्चों को स्कूल और उच्च शिक्षा के सभी स्तरों पर संस्कृत को विकल्प के रूप में चुनने का अवसर भी दिया जाएगा। 

नई शिक्षा नीति से बच्चों के सिर से बोर्ड परीक्षाओं का डर खत्म हो रहा है। इससे बच्चा अपनी पसंद का विषय चुन सकता है। बच्चे पूरी तरह से तकनीक से जुड़ सकेंगे। उन्हें कम उम्र में ही आत्मनिर्भर बनने का मौका मिलेगा।  इस नीति से जहां बच्चों का पूरी तरह से विकास होगा, वहीं शिक्षकों की नियुक्ति का आधार भी नया होगा। यह भी कहा जा सकता है कि इस शिक्षा प्रणाली को ठीक से लागू होने में 2 से 3 साल लग सकते हैं लेकिन आने वाले समय में भारत के लिए एक ऊंचे दर्जे की शिक्षा का लक्ष्य होना चाहिए।

एक मोटा अनुमान है कि अभी हमें ऐसे कोई साढ़े 6 लाख शिक्षक चाहिएं, जो सूचना-विस्फोट के युग में तेजी से किशोर हो रहे बच्चों में शिक्षा की उदासी दूर कर, नए तरीके से, नई दुनिया की समझ विकसित करने में सहायक हों। इसमें कोई दो राय नहीं कि पूरी दुनिया की नजर आज भारत पर टिकी है। बहुत सालों पहले ऑस्ट्रेलिया के दार्शनिक-चिंतक इर्विन श्रोडिंगर ने भारत की ओर देखने की बात कही थी। हाल के ही वर्षों में अमरीका के एक दार्शनिक ने भी कहा था कि हम दार्शनिक 
तबाही से बचने के लिए भारत की तरफ देख रहे हैं। ऐसे में डिजिटल साक्षरता के उद्देश्य से किए गए कुछ प्रयोग बच्चों को कुछ नया करने के उत्साह में स्कूल की ओर खींच लाएंगे। 

जरूरत है युद्ध स्तर पर डिजिटल शिक्षण की सामग्री तैयार करने, शिक्षकों को इस नई प्रणाली के लिए तैयार करने और बच्चों को डिजिटल प्लेटफार्म मुहैया करवाने की। इसमें निजी निवेश भी बड़ी भूमिका निभा सकता है। यह मुमकिन है लेकिन केवल तब, जब शिक्षा की दुनिया में तकनीक के साथ जरूरी तालमेल बनाकर पूरा विकास कर सकें।-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा
 


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