बच्चों में सामाजिक कौशल विकसित करने के लिए पाठ्यक्रम में हो बदलाव

punjabkesari.in Thursday, Feb 02, 2023 - 04:52 AM (IST)

तीन साल पहले 30 जनवरी, 2020 को भारत ने अपना पहला कोविड-19 मामला दर्ज किया था। संक्रमण की तीन लहरों के बाद, जिसने आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 5.3 लाख लोगों की जान ले ली और शायद इससे भी अधिक, जिनकी रिपोर्ट नहीं की गई थी, महामारी अब थम गई प्रतीत होती है। पिछले कुछ महीनों से नगण्य संख्या में मामले सामने आए हैं और उम्मीद है कि सबसे बुरा वक्त बीत चुका है। 

उन लाखों प्रवासियों, जिनके पास 23 मार्च, 2020 को अचानक घोषित किए गए लॉकडाऊन के बाद अपने गांवों को लौटनेे के अलावा बहुत कम विकल्प रह गए थे, को अकारण दुख पहुंचाने के अलावा, महामारी ने जान गंवाने और नौकरियों के नुक्सान दोनों मामलों में बहुत तबाही मचाई। जबकि पूर्ण सामान्य स्थिति को बहाल किया जाना बाकी है क्योंकि कई छोटे उद्योगों ने अभी भी व्यवसाय को फिर से शुरू करना है, कोविड 19 के लंबे समय तक चलने के कई परिणाम हैं, जिन्हें हम खोजना जारी रखे हुए हैं। 

इनमें से एक, पी.जी.आई. जैसे चिकित्सा संस्थानों द्वारा किए गए अध्ययनों के अनुसार, उन युवा व्यक्तियों की अचानक मृत्यु की उच्च दर है, जो कोविड के गंभीर दौर से उबर चुके थे। अक्सर ऐसे मामलों के बारे में सुनने को मिलता है, जहां युवा व्यक्ति, जिनका कोविड का गहन उपचार हुआ था, या तो नींद में मर गए या जिनका दिल का दौरा पड़ने का कोई पूर्व संकेत दिए बिना अचानक निधन हो गया। जिन लोगों को कोविड हुआ था, उनमें से कुछ का कम प्रतिरक्षा स्तर चिंता का कारण बना हुआ है। 

पिछले तीन वर्षों में महामारी ने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है लेकिन एक क्षेत्र, जहां इसने स्थायी प्रभाव छोड़ा, वह शिक्षा है। शिक्षा मंत्रालय द्वारा उच्च शिक्षा पर जारी नवीनतम अखिल भारतीय सर्वेक्षण (ए.आई.एस.एच.ई.) के अनुसार, विभिन्न स्नातक कार्यक्रमों में ङ्क्षलग अंतर को समाप्त करने में हासिल किए गए महत्वपूर्ण लाभ को कोविड अवधि के दौरान नुक्सान पहुंचा है। सर्वेक्षण से पता चला कि शैक्षणिक वर्ष 2020-21 में विभिन्न स्नातक कार्यक्रमों में नामांकित प्रत्येक 100 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या में गिरावट आई है। 

उदाहरण के लिए, 2019 में बी.कॉम में दाखिला लेने वाली महिलाओं का प्रतिशत लगभग पुरुषों के बराबर ही था लेकिन 2020-21 में यह अनुपात पुरुषों के पक्ष में 94:100 पर आ गया। यह प्रवृत्ति नॄसग से लेकर कानून और चिकित्सा शिक्षा तथा विज्ञान व ललित कला तक लगभग सभी स्नातक कार्यक्रमों में परिलक्षित हुई। शिक्षा की स्थिति पर वाॢषक रिपोर्ट (ए.एस.ई.आर.) ने भी सीखने के स्तर में गिरावट के बारे में सबसे खराब आशंकाओं की पुष्टि की है- पढ़ाई और गणित के मूलभूत कौशल, जिसका दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है। महामारी ने उन लोगों का आकर्षण भी छीन लिया, जो स्कूलों से बाहर निकल कर जीवन बनाने के लिए कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में जा रहे थे। 

फिर भी सबसे ज्यादा पीड़ित बच्चे थे, जिन्हें अभी नर्सरी स्तर और प्राथमिक शिक्षा में कदम रखना था। यह सर्वविदित है कि इस अवस्था में छोटे बच्चों का मस्तिष्क और बुद्धि बहुत तेजी से विकसित होती है, जो जीवन भर प्रभाव छोड़ती है। यह अवस्था सामाजिक कौशलों और साथ-साथ सीखने के विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चे 5 साल की उम्र तक मस्तिष्क के विकास की एक महत्वपूर्ण अवधि का अनुभव करते हैं। इस चरण के दौरान किसी व्यक्ति के जीवन में किसी अन्य समय की तुलना में मस्तिष्क का विकास अधिक होता है। 

बच्चे के शुरूआती अनुभव और शिक्षा की गुणवत्ता बच्चे की जीवन भर के लिए सीखने और सफल होने की क्षमता को आकार देते हैं। यद्यपि ये रिश्ते घर से शुरू होते हैं, साथियों और शुरूआती शिक्षकों के साथ बच्चे की बातचीत तक फैल जाते हैं। लॉकडाऊन ने इन छोटे बच्चों को अपने आयु वर्ग के बच्चों के साथ बहुत कम या कोई बातचीत नहीं करने के लिए घरों की चारदीवारी में रहने के लिए मजबूर कर दिया। अतीत में समान आयु वर्ग के अन्य लोगों की तुलना में कई लोग मोबाइल फोन के आदी हो गए थे। 

कई मामलों में संशोधन करने में बहुत देर हो सकती है, लेकिन यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि सरकार प्राथमिक विद्यालयों को निर्देश देने पर विशेष जोर दे कि वे युवाओं के सामाजिक और सॉफ्ट स्किल्स को विकसित करने पर जोर देने के लिए सामान्य पाठ्यक्रम में बदलाव करें। यह उन्हें किताबी ज्ञान प्रदान करने की बजाय अधिक सामाजिक मेलजोल और बाहरी अनौपचारिक गतिविधियों का आयोजन करके किया जा सकता है। यह महत्वपूर्ण है कि विशेषज्ञ प्राथमिक विद्यालयों के लिए मॉडल दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए मिलकर काम करें। उम्मीद है कि कोविड खत्म हो गया है, लेकिन हमें इसके बाद हुए नुक्सान की भरपाई करने की कोशिश करनी चाहिए।-विपिन पब्बी


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