‘हृदय परिवर्तन’ निश्चित रूप से स्वागत योग्य

punjabkesari.in Thursday, May 16, 2024 - 05:15 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नवीनतम बयान कि ‘‘मैं जिस दिन हिंदू-मुसलमान करूंगा न, उस दिन मैं सार्वजनिक जीवन में रहने योग्य नहीं रहूंगा और मैं ङ्क्षहदू-मुसलमान नहीं करूंगा, यह मेरा संकल्प है।’’ कई लोगों के लिए एक बड़ा सुखद आश्चर्य और उनके अंध भक्तों के लिए एक बड़ा झटका है, जो इतने समय से सांप्रदायिक आख्यान का सहारा ले रहे थे।एक टी.वी. चैनल के साथ साक्षात्कार के दौरान मोदी को यू-टर्न लेने के लिए किस बात ने प्रेरित किया, इस पर लंबे समय तक बहस होगी लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि उनके अनुयायियों सहित अधिकांश लोगों को इस बयान पर विश्वास नहीं होगा। शायद यह आशंका थी कि निरंतर सांप्रदायिक अभियान अनुत्पादक साबित हो रहा था या शायद यह अहसास था कि इस अभियान से ‘दाल नहीं पक रही’। यह भी हो सकता है कि नैरेटिव बदलने की जरूरत हो। 

वर्तमान चुनाव को, इतिहास में किसी भी अन्य से अधिक, भारतीय जनता पार्टी के अभियान द्वारा नस्लवाद के खुले प्रदर्शन के साथ सांप्रदायिक बनाने के प्रयासों के लिए याद किया जाएगा। कुछ ही दिन पहले, प्रधानमंत्री ने राजस्थान के बांसवाड़ा में एक भाषण के दौरान कहा था, ‘‘पहले जब उनकी सरकार थी, उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। इसका मतलब, ये संपत्ति इकट्ठी करके किसको बांटेंगे? जिनको ज्यादा बच्चे हैं उनको बांटेंंगे, घुसपैठियों को बांटेंगे।’’ एक बच्चे के लिए भी यह स्पष्ट है कि संदर्भ मुसलमानों की ओर था। एक अन्य भाषण में उन्होंने दावा किया था कि कांग्रेस के घोषणापत्र में कहा गया है कि वे माताओं और बेटियों के सोने का हिसाब लेंगे और फिर उनकी संपत्ति वितरित करेंगे... वे मेरी माताओं और बहनों के मंगलसूत्र को भी नहीं छोड़ेंगे।’’ एक अन्य भाषण में उन्होंने कहा कि कांग्रेस का घोषणापत्र ‘मुस्लिम लीग की छाप रखता है’। कांग्रेस ने आरोपों का खंडन किया और कहा है कि पार्टी के घोषणापत्र में कहीं भी संपत्ति के पुनर्वितरण या सोना छीनने का कोई जिक्र नहीं है। हालांकि, भाजपा नेताओं और उम्मीदवारों द्वारा दिए गए भाषण जहर उगल रहे थे और सत्तारूढ़ दल की सोशल मीडिया सेना इस बात को फैला रही थी।

किसी भी आलोचना या किसी भिन्न दृष्टिकोण का मीडिया ‘कार्यकत्र्ता’ की ओर से तीव्र आक्रामकता और यहां तक कि सामाजिक तौर पर दुव्र्यवहार का सामना करना पड़ा, जो या तो भुगतान प्राप्त करते हैं या पार्टी की कहानी में विश्वास करते हैं। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी हिंदू-मुस्लिम पर अपने रुख को लेकर कभी भी माफी मांगने वाली या शॄमदा नहीं रही। ऐसे कई मौके आए, जब उसने अपना रुख स्पष्ट किया। निवर्तमान सरकार की मंत्रिपरिषद में कोई मुस्लिम नहीं था, न ही इसने किसी मुस्लिम उम्मीदवार को पार्टी का टिकट दिया या किसी शीर्ष पद पर इस धर्म के किसी सदस्य को नियुक्त किया। जहां मोदी ने सिर पर पगड़ी या कोई अन्य चीज बांधने में कोई झिझक नहीं दिखाई, एकमात्र टोपी जिसे उन्होंने पहनने से इंकार किया, वह मुसलमानों की टोपी है। 

मौजूदा चुनाव के दौरान भाजपा नेताओं के लगभग सभी भाषणों में सांप्रदायिकता की बू आ रही है। फिर भी, पार्टी ने भारतीय चुनाव आयोग द्वारा भेजे गए नोटिस के जवाब में न केवल प्रधानमंत्री के भाषणों को सही ठहराया, बल्कि कांग्रेस पर हिंदू धर्म को बदनाम करने का आरोप लगाया है। यहां तक कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल न होकर कांग्रेस ने ‘पाप’ किया है। भारतीय जनता पार्टी की पृष्ठभूमि वाली टीमें भी मुसलमानों से ‘खतरे’ का दावा करने के लिए पुरानी या पक्षपाती रिपोर्टें खोजकर आग में घी डालने का काम कर रही थीं। एक पुरानी रिपोर्ट को ठीक समय पर जारी करने में, वास्तव में यह एक रिपोर्ट भी नहीं है, बल्कि प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अलावा किसी और द्वारा तैयार किया गया एक ‘वर्किंग पेपर’ है, जिसमें कहा गया कि भारत में 1950 और 2015 के बीच हिंदू आबादी का हिस्सा 7.82 प्रतिशत कम हो गया जबकि मुसलमानों की संख्या में 43.15 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 

‘वर्किंग पेपर’ ने दावे के स्रोत को उद्धृत नहीं किया, जिससे दो प्रमुख बिंदू आसानी से छूट गए- एक यह कि विकास प्रतिशत एक मिथ्या नाम है क्योंकि 1950 में हिंदू आबादी लगभग 84.68 प्रतिशत थी जबकि मुस्लिम आबादी 9.84 प्रतिशत। 
2011 की जनगणना के अनुसार, उपलब्ध अंतिम जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, जनगणना 2021 में कोविड के कारण आयोजित नहीं की गई थी और बिना किसी वैध कारण के अब तक स्थगित कर दी गई है, हिंदू आबादी का 79.8 प्रतिशत, जबकि मुस्लिम 14.2 प्रतिशत है। मुसलमानों की जनसंख्या में तुलनात्मक रूप से तेज वृद्धि के कई कारण हैं, जिनमें गरीबी और साक्षरता की कमी भी शामिल है।

दूसरा और इससे भी अधिक महत्वपूर्ण तथ्य, जिसे भाजपा नेता और समर्थक नजरअंदाज कर देते हैं, वह है हिंदू और मुस्लिम महिलाओं के बीच वर्तमान प्रजनन दर। यह क्रमश: 2.1 और 2.2 है। इसका मतलब यह होगा कि मुस्लिम महिलाओं में प्रजनन दर केवल .1 प्रतिशत अधिक है और दोनों समुदायों के बीच जनसंख्या वृद्धि की वर्तमान दर को देखते हुए, मुस्लिम आबादी को हिंदू आबादी के करीब आने में हजारों साल लगेंगे। हालांकि, ‘वर्किंग पेपर’ की रिपोर्ट के कारण समाचार पत्रों के अलावा सोशल मीडिया और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर भी अभियान की बाढ़ आ गई, जिसमें निकट भविष्य में मुस्लिम आबादी के हिंदुओं पर हावी होने के ‘आसन्न खतरे’ के बारे में प्रचार किया गया। 

हालांकि इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री के यू-टर्न को स्वीकार करने वाले कम ही लोग होंगे लेकिन हृदय परिवर्तन निश्चित रूप से स्वागत योग्य है। यह और भी बेहतर होगा यदि उनके अंध अनुयायी और समर्थक भी सीख लें और जहर फैलाने से बचें तथा बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे आम आदमी को प्रभावित करने वाले वास्तविक मुद्दों पर बात करना शुरू करें।-विपिन पब्बी
 


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