कांग्रेस में बदलाव भीतर से ही आना है

Tuesday, Oct 05, 2021 - 05:48 AM (IST)

कुछ वर्ष पहले कांग्रेस के एक दूरदृष्टा नेता ने भविष्यवाणी की थी कि एक सामान्य कार्यकत्र्ता अपने सबके अस्तित्व के लिए पार्टी को बचाएगा जब उन्हें लगेगा कि उनके नेता अप्रभावी हो गए हैं। ऐसा दिखाई देता है कि जैसे वह पल अब आ गया है। पार्टी हांफ रही है और इसे मजबूत नेतृत्व से ऑक्सीजन की जरूरत है लेकिन यही वह चीज है जिसका अभाव है। इसलिए छोटी खुराकों के साथ कार्यकत्र्ताओं को बदल बनना होगा। 

यद्यपि यह विचार कि एक ऐसी पार्टी जो मुश्किल से सांस ले पा रही है, अचानक आगामी आम चुनावों में सत्ताधारी भाजपा का मुकाबला करने के लिए तैयार हो जाएगी, लगभग एक चमत्कार जैसा होगा। इसके बीच बहुत से किन्तु-परंतु हैं लेकिन यह मजबूत नेतृत्व के साथ संभव है। एक अन्य महत्वपूर्ण चीज यह कि कांग्रेस को खुद से बचाना है। कांग्रेसी आमतौर पर कहते हैं कि कांग्रेस को केवल कांग्रेसियों द्वारा ही पराजित किया जा सकता है। 

धड़ेबंदी तथा क्षरण से पीड़ित वैभवशाली प्राचीन पार्टी अब वैंटीलेटर पर है। यह गांधी परिवार के बिना अथवा उनके साथ कार्य करने में अक्षम है। शीर्ष पर खालीपन ने क्षेत्रीय क्षत्रपों को राष्ट्रीय नेतृत्व पर प्रश्न उठाने को प्रोत्साहित किया है। 2014 की पराजय के बाद से पार्टी अपना सिर उठाने के काबिल नहीं है। पार्टी ने 2014 के बाद से न केवल 2 लोकसभा तथा कई राज्य विधानसभा चुनाव हारे हैं बल्कि उन राज्यों में भी सत्ता बनाए रखने में असफल रही है जहां इसने सरकारें बनाई थीं। जब 1977 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी नीत कांग्रेस की निर्णायक पराजय हुई थी तब दक्षिण भारतीय राज्य इसके साथ खड़े रहे थे। अब तो दक्षिण ने भी पार्टी को छोड़ दिया।

वर्तमान में पार्टी केवल तीन राज्यों में सत्ता में है-छत्तीसगढ़, पंजाब तथा राजस्थान। झारखंड तथा महाराष्ट्र में यह सरकार में गठबंधन सांझीदार है। मगर कड़वी सच्चाई यह है कि पार्टी नए राजनीतिक परिदृश्य से बुरी तरह से दूर है। इससे भी खराब बात यह कि आगे देखने की बजाय यह पीछे की ओर देख रही है। यह हर किसी की पार्टी बनने का प्रयास कर रही है जबकि वास्तव में यह किसी  की भी पार्टी नहीं। पीढ़ी दर बदलाव की लड़ाई में नेतृत्व का संकट भी अब जाहिर है। 

यह हमें इस प्रश्न की ओर ले आता है कि क्या वैभवशाली प्राचीन पार्टी कांग्रेस शासित राज्यों में इतने अधिक नाटकों के साथ अपना अस्तित्व बनाए रख पाएगी, मुख्य रूप से सभी तीन राज्यों में गांधी भाई-बहन ने मुख्यमंत्री के खिलाफ अपने पसंदीदा लोगों के साथ विद्रोहियों को प्रोत्साहित किया है। पंजाब इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह एक ऐसा राज्य था जहां पार्टी आसानी से जीत सकती थी। अमरेंद्र सिंह को बड़े अटपटे ढंग से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया जिससे राज्य में अस्थिरता पैदा हो गई। कयामत की भविष्यवाणी करने वालों का कहना है कि पार्टी बहुत जल्दी राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो जाएगी। हालांकि कांग्रेस संभवत: इतनी जल्दी नहीं मरेगी। यदि प्रत्येक गांव में एक कांग्रेसी होगा चाहे वह आखिरी हो, पार्टी अपने ‘समाप्त’ के दर्जे के साथ जीवित रहेगी। 

इसका मतलब यह नहीं है कि पार्टी किसी अंत:विस्फोट का सामना नहीं कर रही। अफसोस की बात यह है कि कांग्रेस पार्टी को अब खतरा कांग्रेसी विद्रोहियों से है न कि सत्ताधारी भाजपा से। कांग्रेस की समस्याओं में जिन चीजों ने वृद्धि की है वे हैं दल-बदल तथा कुछ प्रभावशाली नेताओं द्वारा पार्टी छोडऩा जैसे कि ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद तथा सुष्मिता देव, सभी टीम राहुल से हैं। राहुल की व्यक्तियों तथा मुद्दों को लेकर समझ पूरी तरह से गलत साबित हुई है। उनके पार्टी के पुन:गठन के प्रयोग भी असफल रहे हैं। गांधी भाई-बहन ने गलत घोड़ों पर दाव लगाए जिसके परिणामस्वरूप पार्टी में और अधिक दुविधा तथा अफरा-तफरी पैदा हो गई। 

इन परिस्थितियों में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का काम सुगम नहीं होगा मगर फिर भी एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर कांग्रेस के लिए जगह बनी रहेगी। ऐसा तब होगा जब यह अपने वैचारिक घाट पा ले, अपने अतीत से प्रेरणा ले। युवाओं के साथ कदम ताल करके चले तथा एक स्वीकार्य नेरेटिव तलाशे। इन सबके लिए अच्छे नेतृत्व की जरूरत है। सोनिया गांधी 2004 तथा 2009 में दो बार पार्टी को सत्ता में ला सकीं लेकिन वह अब लगभग सेवानिवृत्त हैं। गांधी भाई-बहनों ने अपनी वोट आकर्षित करने की क्षमता  नहीं दिखाई है। वे अपनी दादी इंदिरा गांधी की नकल करना चाहते हैं, बिना उनके नेतृत्व वाले गुणों के। 

गांधियों को समस्या की जानकारी है लेकिन उनके पास भाजपा का सामना करने के लिए रणनीति नहीं है। उन्हें यह बताया गया है कि वे केवल चुपचाप बैठे रहें और सत्ता खुद-ब-खुद उनके पास आ जाएगी क्योंकि अन्य कोई विकल्प नहीं है। बदलाव भीतर से ही आना है। कोई भी निर्णय लेने से पहले परिवार को अन्य से सलाह-मशविरा करना होगा। आखिरकार कांग्रेस कार्य समिति जैसी निर्णय लेने वाली शीर्ष इकाइयां हैं जो अधिकाधिक बैठकें आयोजित कर सकती हैं। वरिष्ठ नेताओं को या तो खुड्डे लाइन लगा दिया गया है अथवा उनका युग समाप्त हो रहा है। अगले वर्ष फरवरी से शुरू होकर 2 वर्षों के दौरान 16 राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे। इन 16 राज्यों में से 9 में भाजपा की सीधी दावेदारी है तथा 3 में गठबंधन सरकारें हैं। कांग्रेस के 3 तथा टी.आर.एस. के पास एक राज्य है। विधानसभा चुनाव 2024 के लोकसभा युद्ध के लिए मैदान तैयार करेंगे। राष्ट्रीय स्तर पर ताकत के लिए दौड़ में कांग्रेस एकमात्र अन्य घोड़ा है, हालांकि कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितनी दूर है।-कल्याणी शंकर 
  

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