‘विदेश व्यापार समझौतों में संभावनाओं के साथ चुनौतियां भी’

punjabkesari.in Friday, Jan 15, 2021 - 04:48 AM (IST)

यकीनन नए वर्ष 2021 में भारत प्रमुख मित्र देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों तथा दूसरी ओर दुनिया के प्रमुख देशों व आर्थिक एवं कारोबारी संगठनों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (एफ.टी.ए.) को अंतिम रूप देते हुए दिखाई दे सकता है।

गौरतलब है कि पिछले माह 21 दिसंबर को भारत और वियतनाम के बीच वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान रक्षा, पैट्रो रसायन और न्यूक्लियर ऊर्जा समेत सात अहम समझौतों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वियनताम के प्रधानमंत्री नुयेन शुआन फुक के द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं। दोनों ही देश 15 अरब डॉलर यानि करीब 1110 अरब रुपए के व्यापारिक लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध हैं। वस्तुत: वियतनाम के साथ भारत के इन नए द्विपक्षीय समझौतों की अहमियत इसलिए भी है, क्योंकि विगत 15 नवंबर को दुनिया के सबसे बड़े ट्रेड समझौते रिजनल कांप्रिहैंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसेप) ने 15 देशों के हस्ताक्षर के बाद जो मूर्तरूप लिया है, भारत उस समझौते में शामिल नहीं हुआ है। 

वस्तुत: भारत का मानना है कि आरसेप समझौते में शामिल होने से राष्ट्रीय हितों को भारी नुक्सान पहुंचता और आरसेप भारत के लिए आर्थिक बोझ बन जाता। इस समझौते में भारत के हित से जुड़ी कई समस्याएं थीं और देश के संवेदनशील वर्गों की आजीविका पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ता।

पिछले काफी समय से घरेलू उद्योग और किसान इस समझौते का भारी विरोध कर रहे थे क्योंकि उन्हें चिंता थी कि इसके जरिए चीन और अन्य कई आसियान के देश भारतीय बाजार को अपने माल से भर देंगे। उल्लेखनीय है कि विभिन्न आसियान देशों ने यह अनुभव किया है कि पिछले कुछ सालों में भारत ने आॢथक मोर्चे पर काफी कामयाबी हासिल की है। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत में डिजिटलीकरण, बुनियादी ढांचा, विनिर्माण, शहरी नवीनीकरण और स्मार्ट शहरों पर बल दिया जा रहा है। आसियान देशों को भी चमकते हुए मध्यम वर्ग के भारतीय बाजारों में तेजी से आगे बढऩे का मौका मिला है। 

आसियान देशों के लिए विशेष तौर पर कुछ ऐसे क्षेत्रों में निवेश करने के लिए अच्छे मौके हैं जिनमें भारत ने काफी उन्नति की है। ये क्षेत्र हैं- डिजिटलीकरण, ई-कॉमर्स, सूचना प्रौद्योगिकी, बायोटैक्नोलॉजी, फार्मास्युटिकल्स, पर्यटन और आधारभूत क्षेत्र। आसियान देशों में इस बात को समझा गया है कि कोविड-19 के बीच भारत के प्रति बढ़ा हुआ वैश्विक विश्वास, आधुनिक तकनीक, बढ़ते घरेलू बाजार, व्यापक मानव संसाधन, वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में दक्षता जैसी अहमियत भारत को आर्थिक ऊंचाई दे रही है।

इस समय वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय दुनिया के ऐसे विकसित देशों के साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौते (एफ.टी.ए.) को तेजी से आगे बढ़ाने की रणनीति पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिन्हें भारत जैसे बड़े बाजार की जरूरत है और जो बदले में भारत के विशेष उत्पादों के लिए अपने बाजार के दरवाजे भी खोलने के लिए उत्सुक हों। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि कोरोना काल ने एफ.टी.ए. को लेकर सरकार की सोच बदल दी है। सरकार बदले वैश्विक माहौल में अब एक साथ तीन बड़े कारोबारी साझेदार देशों अमरीका, यूरोपीय संघ (ई.यू.) और ब्रिटेन के साथ सीमित दायरे वाले व्यापार समझौते के लिए आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रही है। 

ज्ञातव्य है कि सीमित दायरे वाले ट्रेड एग्रीमैंट के पीछे वजह यह है कि ये मुक्त व्यापार समझौते की तरह बाध्यकारी नहीं होते  यानि अगर बाद में किसी खास कारोबारी मुद्दे पर कोई समस्या होती है तो उसे दूर करने का विकल्प खुला होता है। भारत ने पूर्व में जिन देशों के साथ एफ.टी.ए. किए हैं, उनके अनुभव को देखते हुए इस समय सीमित दायरे वाले व्यापार समझौते ही बेहतर हैं। वस्तुत: विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) के तहत विश्व व्यापार वार्ताओं में जितनी उलझनें खड़ी हो रही हैं उतनी ही तेजी से विभिन्न देशों के बीच एफ.टी.ए. बढ़ते जा रहे हैं। यह एक अच्छी बात है कि डब्ल्यू.टी.ओ. कुछ शर्तों के साथ सीमित दायरे वाले एफ.टी.ए. की इजाजत भी देता है।

एफ.टी.ए. ऐसे समझौते हैं जिनमें दो या दो से ज्यादा देश आपसी व्यापार में कस्टम और अन्य शुल्क संबंधी प्रावधानों में एक-दूसरे को तरजीह देने पर सहमत होते हैं। दुनिया में इस समय लगभग 250 से ज्यादा एफ.टी.ए. हैं। निश्चित रूप से आरसेप की जगह द्विपक्षीय समझौते और एफ.टी.ए. भारत के लिए लाभप्रद होंगे। 

नि:संदेह भारत के लिए विदेश व्यापार समझौतों की नई डगर पर जहां संभावनाएं दिखाई दे रही हैं, वहीं चुनौतियां भी कम नहीं हैं। विगत दिनों ई.यू.और चीन ने नए निवेश समझौते को अंतिम रूप दे दिया है। चीन ने ई.यू. के साथ निवेश समझौते को अंतिम रूप देकर भारत के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ा दी है। ऐसे में यूरोपीय कंपनियों के समक्ष भारत को बेहतर प्रस्ताव रखना होगा। चूंकि विगत दिनों 31 दिसंबर 2020 को ब्रिटेन ई.यू. के दायरे से बाहर हो गया है। ऐसे में ब्रिटेन के साथ भी भारत को उपयुक्त एफ.टी.ए. के लिए अधिक प्रयास करने होंगे। इसी तरह अमरीका में जो बाइडेन के  राष्ट्रपति बनने के बाद अमरीका के साथ भारत के एफ.टी.ए. की वार्ताओं को अंतिम रूप देने के लिए अधिक कारगर प्रयास करने होंगे।-डा. जयंतीलाल भंडारी
 


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