चुनौतियां : बेरोजगारी, खपत, बचत तथा निवेश की

punjabkesari.in Sunday, Jan 30, 2022 - 07:31 AM (IST)

31 जनवरी को संसद बजट सत्र के लिए बैठेगी। जैसा कि पारिभाषिक शब्द सुझाता है कि यह सत्र आमतौर पर केंद्र सरकार तथा भारतीय अर्थव्यवस्था के आम स्वास्थ्य के वित्तीय खर्चों को जांचने के प्रति समर्पित है क्योंकि सरकार के खर्चे ज्यादा हैं और उन्हें लाल रंग में उद्धृत किया गया है। सरकारी राजस्व तथा खर्चों में एक मंद अंतर होता है जोकि बोलचाल की भाषा में राजकोषीय घाटा कहलाता है। अर्थव्यवस्था की यह ऐसी हालत है जोकि चिंताजनक बनी हुई है। 

प्रत्येक अर्थव्यवस्था 4 बुनियादी ढांचों जैसे रोजगार, खपत, बचत तथा निवेश पर चलती है। अर्थव्यवस्था का यही चक्र है। भारतीय अर्थव्यवस्था 4 बुनियादी बातों पर किस प्रकार खड़ी हुई है। भारतीय अर्थव्यवस्था की निगरानी के लिए केंद्र (सी.एम.आई.ई.) ने 21 जनवरी 2022 को बेरोजगार की दर को 7 प्रतिशत आंका। 

शहरी बेरोजगारी की दर 8.5 प्रतिशत जबकि ग्रामीण दर 6.3 रही। आंकड़ों की यह गिनती सुझाती है कि  भारत में 53 मिलियन या फिर यूं कहें कि 5.3 करोड़ लोग बेरोजगार हैं जिनमें से 8 मिलियन महिलाएं शामिल हैं। 53 मिलियन में से 35 मिलियन लोग क्रियाशील होकर अपनी आजीविका चला रहे हैं जबकि 17 मिलियन लोग उपलब्ध कार्यों के सहारे अर्थव्यवस्था में अपनी हिस्सेदारी देने को तैयार हैं। 

बेरोजगारी की इतनी बड़ी दर इस बात से भी दिखाई पड़ती है कि मनरेगा की गिनती भी काफी ऊंची है। नव बर और दिस बर 2021 में क्रमश: 21.1 मिलियन तथा 24.7 मिलियन घरेलू लोग इस कार्यक्रम के तहत काम की मांग कर रहे थे। 

वल्र्ड बैंक द्वारा रखे गए आंकड़ों के अनुसार 2020 में महामारी के दौरान वैश्विक बेरोजगारी दर 55 प्रतिशत पर खड़ी थी जबकि 2019 में 58 प्रतिशत यह दर थी। 2020 में भारत के लिए यह दर न्यूनतम स्तर पर 43 प्रतिशत पर थी। सी.एम.आई.ई. हालांकि यह अनुमान लगाती है कि भारत की बेरोजगारी दर 38 प्रतिशत को छुएगी। इसलिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए बजट में चुनौती 60 प्रतिशत भारतीय जनसंख्या के लिए रोजगार खोजने की है। 187.5 मिलियन अतिरिक्त लोगों के लिए रोजगार के मौके तलाशने होंगे। वर्तमान में रोजगार की गिनती करीब 406 मिलियन या फिर यूं कहें कि 40.6 करोड़ पर खड़ी है। 

उपभोग का स्तर भी काफी नीचे गिरा है क्योंकि कोविड-19 की तीन लहरों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। भारत ने अपना पहला लॉकडाऊन 24 मार्च 2020 को लागू किया। इसने उपभोग के स्तर को धराशायी किया है। इसका सबसे स्पष्ट निष्कर्ष यह है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजैक्ट दुर्भाग्यवश ज्यादा रोजगार के मौके नहीं ढूंढ रहे। लोगों की खर्च करने की शक्ति पर इसने नकारात्मक के साथ-साथ उथल-पुथल मचाने वाले प्रभाव छोड़े हैं। भविष्य में भी ऐसा ही कुछ नजर आ रहा है। निजी क्षेत्र की पूंजी संरचना भी ठीक नहीं दिखाई देती। जी.डी.पी. वृद्धि आंकड़ों के लिए यह चुनौतियां बढ़ाने वाले हैं। सरकार अकेले ही खर्च कर रही है। 

वैश्विक आर्थिक संभावनाओं पर वल्र्ड बैंक की नवीनतम भविष्यवाणी कुछ अच्छा संकेत नहीं देती। वैश्विक वृद्धि जोकि 2021 में 5.5 प्रतिशत थी वह 2022 में 4.1 प्रतिशत हो गई और इसके 2023 में 3.2 प्रतिशत होने की संभावना दिखाई पड़ती है। भारतीय निर्यात पर भी इसका सीधा असर दिखाई पड़ता है। 

यहां तक कि बचत की दर भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। महामारी में फंसे लोगों के लिए बचत के लिए कुछ बचाना मुश्किल था। भारत की बचत दर 15 वर्ष के न्यूनतम स्तर को छू रही है। वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान कुल घरेलू बचत जी.डी.पी. के  30.9 प्रतिशत पर खड़ी थी। 2012-13 के वित्तीय वर्ष के दौरान यह दर अपनी अधिकतम ऊंचाई  34.6 प्रतिशत पर थी। हालांकि वल्र्ड बैंक का अनुमान है कि ग्रॉस डोमैस्टिक सेविंग्स (जी.डी.पी. का प्रतिशत) ज्यादा गहरी थी। 

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ.डी.आई.) 2021-22 की जुलाई -सित बर तिमाही में तेजी से 42 प्रतिशत तक गिरा। एक वर्ष पहले यह 23.4 बिलियन अमरीकी डालर थी जो गिर कर अब 13.5 बिलियन अमरीकी डालर है। हालांकि देश में वास्तविक समस्या असमान और अन्यायपूर्ण है। हाल ही में जारी हुई ऑक्सफेम रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि भारत में अरबपतियों की गिनती जोकि 2020 में 102 थी वह बढ़कर 2021 में 142 हो गई। भारत खतरनाक तरीके से एक गंभीर सामाजिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। कुछ ही लोगों के हाथों में भारत का अपार धन है।-मनीष तिवारी   


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