योजनाओं के साथ पी.एम. का नाम जोड़ने की अपनी सनक छोड़े केंद्र

punjabkesari.in Thursday, Jul 18, 2024 - 05:15 AM (IST)

हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों के नतीजों से एक संदेश यह मिला कि केंद्र सरकार या प्रधानमंत्री को सबको साथ लेकर चलना चाहिए और केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी और राज्यों में गैर-भाजपा दलों के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के बीच भेदभाव नहीं करना चाहिए। पिछले एक दशक में देश में प्रधानमंत्री पर ध्यान केंद्रित करने की प्रवृत्ति बढ़ रही थी और कई पुरानी योजनाओं को मोदी योजनाओं या इसके भिन्न रूप ‘नमो’ योजनाओं या फिर पी.एम. योजनाओं के रूप में बदल दिया गया था। यह जुनून नियमित और सामान्य योजनाओं में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है जो लंबे समय से क्रियान्वयन में थीं। केवल कुछ बदलाव करके उनका नाम बदलकर मोदी या पी.एम. योजना कर दिया गया। यह जुनून तब हास्यास्पद स्तर पर पहुंच गया जब कोविड टीकाकरण प्रमाणपत्रों पर भी मोदी की तस्वीर छपी थी। इसी तरह केंद्रीय कल्याणकारी योजनाओं के तहत दिए जाने वाले मुफ्त राशन के बैग पर प्रधानमंत्री की तस्वीर छपी थी। 

मोदी सरकार ने गैर-भाजपा राज्यों के साथ भेदभाव को भी नहीं छिपाया और वास्तव में यह दावा करके वोट मांगने की कोशिश की कि ‘डबल इंजन की सरकार’ राज्य के लोगों के हित में है। इसका स्पष्ट रूप से तात्पर्य यह था कि राज्यों में गैर-भाजपा सरकारों के साथ भेदभाव किया जाएगा। ऐसा नहीं है कि केंद्र की सरकारों ने विपक्षी दलों के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के साथ भेदभाव नहीं किया है। दुर्भाग्य से मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने डंडा चलाना जारी रखा है और अगर योजनाओं के नामकरण में मोदी या पी.एम. का नाम शामिल नहीं किया जाता है तो केंद्र से मिलने वाले फंड को रोक दिया जाता है। इस तरह का ताजा उदाहरण पश्चिम बंगाल, पंजाब और दिल्ली जैसे गैर-भाजपा शासित राज्यों को केंद्रीय फंड रोकना है, क्योंकि स्कूलों को अपग्रेड करने के लिए फंड देने वाली एक योजना में पी.एम. उपसर्ग का उपयोग नहीं किया गया था। 

इस लागत को केंद्र और राज्यों के बीच 60:40 के अनुपात में वहन किया जाना है, लेकिन केंद्र ने इन राज्यों को इन स्कूलों के बाहर साइनबोर्ड पर पी.एम. श्री (प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) शब्द का उपयोग न करने के कारण धन देना बंद कर दिया है। इन राज्यों के स्कूल, अन्य राज्यों की तरह, समग्र शिक्षा योजना के तहत केंद्रीय धन प्राप्त कर रहे थे। यह योजना बच्चों के नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार (आर.टी.ई.) अधिनियम, 2009 के कार्यान्वयन का समर्थन करती है। अब केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने फैसला किया है कि सभी स्कूल, जिन्हें एस.एस.एस. योजना के लिए धन मिल रहा था, उन्हें धन नहीं मिलेगा यदि वे इस योजना को लागू नहीं करते हैं जिसका उद्देश्य नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को ‘प्रदर्शन’ करने और अन्य स्कूलों के लिए एक उदाहरण बनने के लिए 14,500 स्कूलों को विकसित करना है। यह योजना सरकार द्वारा चलाए जा रहे मौजूदा स्कूलों के लिए है न कि नए स्कूल खोलने के लिए। 

पंजाब ने कहा है कि वह पहले से ही अपने ‘उत्कृष्ट स्कूलों’ के तहत राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू कर रहा है। इसी तरह पश्चिम बंगाल और दिल्ली पहले से ही नई शिक्षा नीति को लागू कर रहे हैं। समग्र शिक्षा योजना के तहत निधि के प्रावधानों में कुछ शर्तें भी जोड़ी गई हैं, जैसे कि पक्का भवन, बाधा रहित प्रवेश और लड़के-लड़कियों के लिए कम से कम एक शौचालय। इसमें यह भी अनिवार्य किया गया है कि चयनित स्कूलों के नाम के आगे पी.एम. श्री लगाना अनिवार्य है। इसका नतीजा यह हुआ है कि केंद्र ने इन राज्यों को एस.एस.एस. योजना के तहत मिलने वाली निधि रोक दी है, जिसके कारण पिछले कुछ महीनों से कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल पा रहा है और इसका असर छात्रों पर पड़ रहा है। 

हालांकि यह तर्क दिया जा सकता है कि ये राज्य अनावश्यक रूप से पी.एम. श्री के नाम के इस्तेमाल के खिलाफ सख्त रुख अपना रहे हैं, लेकिन केंद्र सरकार को किसी व्यक्ति को महिमामंडित करने के उद्देश्य से योजनाओं के नाम ‘पी.एम.’ या ‘मोदी’ या ‘नमो’ रखने की अपनी सनक छोडऩी चाहिएं। केंद्र और राज्य सरकारों, खासकर गैर-भाजपा शासित सरकारों को सबसे पहले लाभार्थियों के कल्याण के बारे में सोचना चाहिए। किसी भी पक्ष को प्रतिष्ठा के लिए नहीं खड़ा होना चाहिए और छात्रों के हितों को सबसे आगे रखना चाहिए। हालांकि केंद्र को अब नाम बदलने और प्रधानमंत्री का नाम जोडऩे की अपनी सनक पर लगाम लगाने की जरूरत है। केन्द्रीय योजना जैसे शब्द अधिक उपयुक्त होंगे।-विपिन पब्बी
 


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