राष्ट्र निर्माण के ‘अटल’ आदर्श की शताब्दी
punjabkesari.in Wednesday, Dec 25, 2024 - 07:17 AM (IST)
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं... लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं? अटल जी के ये शब्द कितने साहसी हैं, कितने गूढ़ हैं। अटल जी कूच से नहीं डरे... उन जैसे व्यक्तित्व को किसी से डर लगता भी नहीं था। वह यह भी कहते थे... जीवन बंजारों का डेरा आज यहां, कल कहां कूच है... कौन जानता किधर सवेरा... आज अगर वह हमारे बीच होते, तो अपने जन्मदिन पर नया सवेरा देख रहे होते। मैं वह दिन नहीं भूलता, जब उन्होंने मुझे पास बुलाकर अंकवार में भर लिया था और जोर से पीठ में धौल जमा दी थी। वह स्नेह, वह अपनत्व, वह प्रेम... मेरे जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्य रहा है।
आज 25 दिसंबर का यह दिन भारतीय राजनीति और भारतीय जनमानस के लिए एक तरह से सुशासन का अटल दिवस है। आज पूरा देश अपने भारत रत्न अटल को उस आदर्श विभूति के रूप में याद कर रहा है, जिन्होंने अपनी सौम्यता, सहजता और सुहृदयता से करोड़ों भारतीयों के मन में जगह बनाई। पूरा देश उनके योगदान के प्रति कृतज्ञ है। उनकी राजनीति के प्रति कृतार्थ है। 21वीं सदी को भारत की सदी बनाने के लिए उनकी एन.डी.ए. सरकार ने जो कदम उठाए, उन्होंने देश को एक नई दिशा, नई गति दी। 1998 के जिस काल में उन्होंने पी.एम. पद संभाला, उस दौर में पूरा देश राजनीतिक अस्थिरता से घिरा हुआ था। 9 साल में देश ने 4 बार लोकसभा के चुनाव देखे थे। लोगों को शंका थी कि यह सरकार भी उनकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाएगी। ऐसे समय में एक सामान्य परिवार से आने वाले अटल जी ने देश को स्थिरता और सुशासन का मॉडल दिया। भारत को नव विकास की गारंटी दी।
वह ऐसे नेता थे, जिनका प्रभाव भी आज तक अटल है। वह भविष्य के भारत के परिकल्पना पुरुष थे। उनकी सरकार ने देश को आई.टी., टैलीकम्युनिकेशन और दूरसंचार की दुनिया में तेजी से आगे बढ़ाया। उनके शासन काल में ही एन.डी.ए. ने टैक्नोलॉजी को सामान्य मानव की पहुंच तक लाने का काम शुरू किया। भारत के दूर-दराज के इलाकों को बड़े शहरों से जोडऩे के सफल प्रयास किए गए। वाजपेयी जी की सरकार में शुरू हुई जिस स्वर्णिम चतुर्भुज योजना ने भारत के महानगरों को एक सूत्र में जोड़ा, वह आज भी लोगों की स्मृतियों पर अमिट है। लोकल कनैक्टिविटी को बढ़ाने के लिए भी एन.डी.ए. गठबंधन की सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसे कार्यक्रम शुरू किए। उनके शासन काल में दिल्ली मैट्रो शुरू हुई, जिसका विस्तार आज हमारी सरकार एक वल्र्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजैक्ट के रूप में कर रही है। ऐसे ही प्रयासों से उन्होंने न सिर्फ आर्थिक प्रगति को नई शक्ति दी, बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों को एक-दूसरे से जोड़कर भारत की एकता को भी सशक्त किया।
जब भी सर्व शिक्षा अभियान की बात होती है, तो अटल जी की सरकार का जिक्र जरूर होता है। शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मानने वाले वाजपेयी जी ने एक ऐसे भारत का सपना देखा था, जहां हर व्यक्ति को आधुनिक और गुणवत्ता वाली शिक्षा मिले। वह चाहते थे भारत के वर्ग, यानि ओ.बी.सी., एस.सी., एस.टी., आदिवासी और महिला सभी के लिए शिक्षा सहज और सुलभ बने। उनकी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कई बड़े आॢथक सुधार किए। इन सुधारों के कारण भाई-भतीजावाद में फंसी देश की अर्थव्यवस्था को नई गति मिली। उस दौर की सरकार के समय में जो नीतियां बनीं, उनका मूल उद्देश्य सामान्य मानव के जीवन को बदलना ही रहा।
देश को अब भी 11 मई, 1998 का वह गौरव दिवस याद है, एन.डी.ए. सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण हुआ। इसे ‘ऑपरेशन शक्ति’ का नाम दिया गया। इस परीक्षण के बाद दुनियाभर में भारत के वैज्ञानिकों को लेकर चर्चा होने लगी। इस बीच कई देशों ने खुलकर नाराजगी जताई, लेकिन तब की सरकार ने किसी दबाव की परवाह नहीं की। पीछे हटने की जगह 13 मई को न्यूक्लियर टैस्ट का एक और धमाका कर दिया गया। 11 मई को हुए परीक्षण ने तो दुनिया को भारत के वैज्ञानिकों की शक्ति से परिचय कराया था, लेकिन 13 मई को हुए परीक्षण ने दुनिया को यह दिखाया कि भारत का नेतृत्व एक ऐसे नेता के हाथ में है, जो एक अलग मिट्टी से बना है। उन्होंने पूरी दुनिया को यह संदेश दिया, यह पुराना भारत नहीं है। पूरी दुनिया जान चुकी थी कि भारत अब दबाव में आने वाला देश नहीं है। इस परमाणु परीक्षण की वजह से देश पर प्रतिबंध भी लगे, लेकिन देश ने सबका मुकाबला किया। वाजपेयी सरकार के शासन काल में कई बार सुरक्षा संबंधी चुनौतियां आईं। कारगिल युद्ध का दौर आया। संसद पर आतंकियों ने कायराना प्रहार किया। अमरीका के वल्र्ड ट्रेड सैंटर पर हुए हमले से वैश्विक स्थितियां बदलीं, लेकिन हर स्थिति में अटल जी के लिए भारत और भारत का हित सर्वोपरि रहा।
जब भी आप वाजपेयी जी के व्यक्तित्व के बारे में किसी से बात करेंगे तो वह यही कहेगा कि वह लोगों को अपनी तरफ खींच लेते थे। उनकी बोलने की कला का कोई सानी नहीं था। कविताओं और शब्दों में उनका कोई जवाब नहीं था। विरोधी भी वाजपेयी जी के भाषणों के मुरीद थे। युवा सांसदों के लिए वह चर्चाएं सीखने का माध्यम बनतीं। कुछ सांसदों की संख्या लेकर भी वह कांग्रेस की कुनीतियों का प्रखर विरोध करने में सफल होते। भारतीय राजनीति में वाजपेयी जी ने दिखाया, ईमानदारी और नीतिगत स्पष्टता का अर्थ क्या है। संसद में कहा गया उनका यह वाक्य... सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी, मगर यह देश रहना चाहिए... आज भी मंत्र की तरह हम सबके मन में गूंजता रहता है।
वह भारतीय लोकतंत्र को समझते थे। वह यह भी जानते थे कि लोकतंत्र का मजबूत रहना कितना जरूरी है। आपातकाल के समय उन्होंने दमनकारी कांग्रेस सरकार का जमकर विरोध किया, यातनाएं झेलीं। जेल जाकर भी संविधान के हित का संकल्प दोहराया। एन.डी.ए. की स्थापना के साथ उन्होंने गठबंधन की राजनीति को नए सिरे से परिभाषित किया। वो अनेक दलों को साथ लाए और एन.डी.ए. को विकास, देश की प्रगति और क्षेत्रीय आकांक्षाओं का प्रतिनिधि बनाया। पी.एम. पद पर रहते हुए उन्होंने विपक्ष की आलोचनाओं का जवाब हमेशा बेहतरीन तरीके से दिया। वह ज्यादातर समय विपक्षी दल में रहे, लेकिन नीतियों का विरोध तर्कों और शब्दों से किया। एक समय उन्हें कांग्रेस ने गद्दार तक कह दिया था, उसके बाद भी उन्होंने कभी असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया।
उन में सत्ता की लालसा नहीं थी। 1996 में उन्होंने जोड़-तोड़ की राजनीति न चुनकर, इस्तीफा देने का रास्ता चुना। राजनीतिक षड्यंत्रों के कारण 1999 में उन्हें सिर्फ एक वोट के अंतर के कारण पद से इस्तीफा देना पड़ा। कई लोगों ने उनसे इस तरह की अनैतिक राजनीति को चुनौती देने के लिए कहा, लेकिन वाजपेयी जी शुचिता की राजनीति पर चले। अगले चुनाव में उन्होंने मजबूत जनादेश के साथ वापसी की। संविधान के मूल्य संरक्षण में भी उनके जैसा कोई नहीं था। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के निधन का उन पर बहुत प्रभाव पड़ा। वह आपातकाल के खिलाफ लड़ाई का भी बड़ा चेहरा बने। एमरजैंसी के बाद 1977 के चुनाव से पहले उन्होंने ‘जनसंघ’ का जनता पार्टी में विलय करने पर भी सहमति जता दी। मैं जानता हूं कि यह निर्णय सहज नहीं रहा होगा, लेकिन वाजपेयी जी के लिए हर राष्ट्रभक्त कार्यकत्र्ता की तरह दल से बड़ा देश था, संगठन से बड़ा, संविधान था।
अटल जी को भारतीय संस्कृति से भी बहुत लगाव था। भारत का विदेश मंत्री बनने के बाद जब संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण देने का अवसर आया, तो उन्होंने अपनी ङ्क्षहदी से पूरे देश को खुद से जोड़ा। पहली बार किसी ने ङ्क्षहदी में संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात कही। उन्होंने सामान्य भारतीय की भाषा को संयुक्त राष्ट्र के मंच तक पहुंचाया। राजनीतिक जीवन में होने के बाद भी, वह साहित्य और अभिव्यक्ति से जुड़े रहे। वह एक ऐसे कवि और लेखक थे, जिनके शब्द हर विपरीत स्थिति में व्यक्ति को आशा और नव सृजन की प्रेरणा देते थे। वह हर उम्र के भारतीय के प्रिय थे, हर वर्ग के अपने थे। मेरे जैसे भारतीय जनता पार्टी के असंख्य कार्यकत्र्ताओं को उनसे सीखने का, उनके साथ काम करने का, उनसे संवाद करने का अवसर मिला। अगर आज भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है तो इसका श्रेय उस अटल आधार को है, जिस पर यह दृढ़ संगठन खड़ा है।
उन्होंने भाजपा की नींव तब रखी, जब कांग्रेस जैसी पार्टी का विकल्प बनना आसान नहीं था। उनका नेतृत्व, उनकी राजनीतिक दक्षता, साहस और लोकतंत्र के प्रति उनके अगाध समर्पण ने भाजपा को भारत की लोकप्रिय पार्टी के रूप में प्रशस्त किया। श्री लाल कृष्ण अडवानी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गजों के साथ उन्होंने पार्टी को अनेक चुनौतियों से निकालकर सफलता के सोपान तक पहुंचाया।जब भी सत्ता और विचारधारा के बीच एक को चुनने की स्थितियां आईं, उन्होंने विचारधारा को खुले मन से चुन लिया। वह देश को यह समझाने में सफल हुए कि कांग्रेस के दृष्टिकोण से अलग एक वैकल्पिक वैश्विक दृष्टिकोण संभव है, जो वास्तव में परिणाम दे सकता है। आज उनका रोपित बीज एक वटवृक्ष बनकर राष्ट्र सेवा की नव पीढ़ी को रच रहा है। अटल जी की 100वीं जयंती, भारत में सुशासन के एक राष्ट्र पुरुष की जयंती है। आइए हम सब इस अवसर पर उनके सपनों को साकार करने के लिए मिलकर काम करें। हम एक ऐसे भारत का निर्माण करें, जो सुशासन, एकता और गति के अटल सिद्धांतों का प्रतीक हो। मुझे विश्वास है, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के सिखाए सिद्धांत ऐसे ही हमें भारत को नव प्रगति और समृद्धि के पथ पर प्रशस्त करने की प्रेरणा देते रहेंगे।-नरेंद्र मोदी
माननीय प्रधानमंत्री