नकद हस्तांतरण कल्याणकारी लक्ष्यों को पूरा करने का सबसे अच्छा तरीका नहीं हो सकता है

punjabkesari.in Tuesday, Jan 02, 2024 - 06:15 AM (IST)

हाल के 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में, मध्य प्रदेश को छोड़कर सभी में मौजूदा सरकारें हार गईं। ऐसे कई कारक हैं जो मतदाताओं के मतदान व्यवहार को प्रभावित करते हैं, जिनमें आॢथक प्रदर्शन महत्वपूर्ण है। इसलिए, चुनाव परिणामों के आधार पर राज्यों के सापेक्ष प्रदर्शन पर कोई निष्पक्ष निष्कर्ष निकलने की संभावना नहीं है। हालांकि, जिस तरह से अभियान चलाया गया उसमें कुछ सामान्य सूत्र हैं जो 2024 के भारत के आम चुनावों में आने वाली चीजों का अग्रदूत हो सकते हैं। 

नौकरियां, मूल्य वृद्धि और सामान्य संकट के मुद्दे विपक्ष द्वारा उठाए गए थे और कुछ हद तक मतदाताओं के बीच गूंज सकते थे, लेकिन ये निश्चित रूप से मुख्य मुद्दे नहीं थे। अभियान मुख्यत: मुख्य राजनीतिक दलों द्वारा किए गए विभिन्न लाभों के इर्द-गिर्द केंद्रित थे। अक्तूबर 2022 के भाषण में प्रधानमंत्री द्वारा ‘रेवड़ियां’ (या फ्रीबीज) संस्कृति की आलोचना करने के बावजूद, अधिकांश पार्टियां विभिन्न समूहों को अलग-अलग रूपों में इन्हें पेश करने से नहीं कतरा रही थीं। 

कुछ मायनों में, अब इस बात पर आम सहमति है कि प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण विकास, रोजगार और पुनॢवतरण के सामान्य विषयों के रूप में नीति का एक हिस्सा है। प्रत्येक पार्टी लाभ की मात्रा पर दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रही है, लेकिन नकदी हस्तांतरण के सिद्धांत पर नहीं। इससे लाभ का विस्तार हुआ है।

महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा की टिकट, पुरानी पैंशन की बहाली,सरकारी कर्मचारियों के लिए योजना, और बेरोजगार युवाओं को नकद हस्तांतरण, रसोई गैस, आवास आदि पर सबसिडी के अलावा, विवाह, जन्म आदि के लिए नकद हस्तांतरण भी शामिल हैं। इसकी तुलना राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) या राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एन.एफ.एस.ए.) के अधिनियम से पहले की बहस से करें। भले ही उनकी वांछनीयता पर आम सहमति थी, उनकी राजकोषीय लागत चिंता का कारण बनी। शुद्धतावादियों ने राजकोषीय अनुशासन पर उनके प्रभाव पर नाराजगी व्यक्त की। हालांकि, नकदी हस्तांतरण पर चर्चा में राजकोषीय विवेक का शायद ही कोई उल्लेख मिलता है, राज्य और केंद्र दोनों सरकारें ऐसे कार्यक्रमों के साथ-साथ धन की मात्रा भी बढ़ा रही हैं।

पुर्निवतरण हस्तांतरण का उपयोग नया नहीं है। जबकि इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ को एक नारे के रूप में इस्तेमाल किया था, हाल ही में मजदूरों (लाभाॢथयों) का एक वर्ग बनाने का प्रयास अलग नहीं है। इनमें से अधिकतर योजनाओं में खूबियां भी हैं। मुफ्त बस योजना ने अधिक महिलाओं को घर से बाहर काम में भाग लेने की अनुमति दी है, उनकी गतिशीलता बढ़ाई है और इस तरह वे सशक्त हुई हैं। ज्यादातर लोकतंत्रों में कामकाजी जीवन की समाप्ति के बाद लोगों के लिए पैंशन का विचार किसी भी सामाजिक अनुबंध का जरूरी हिस्सा है।  हालांकि ठोस सबूत उपलब्ध नहीं है, छोटे सर्वेक्षण और अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि ये योजनाएं मदद करती हैं। 

मुद्दा पुर्निवतरण हस्तांतरण का नहीं है, चाहे वह नकद के रूप में हो या वस्तु के रूप में (जैसे कि एन.एफ.एस.ए. के तहत मुफ्त अनाज), बल्कि निवेश और अन्य प्रमुख कार्यक्रमों, सरकारों पर सरकारी व्यय की तुलना में उनकी सापेक्ष प्राथमिकता है और राजनीतिक दल उन्हें पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें लागू करना आसान है। असुविधाजनक राजनीतिक-अर्थव्यवस्था के मुद्दों से निपटने की आवश्यकता नहीं होती है और अल्पावधि में उन्हें फायदेमंद माना जाता है। मतदाता बिना किसी नौकरशाही हस्तक्षेप के तत्काल ठोस लाभ भी देखते हैं। लेकिन इसके राजकोषीय परिणाम हैं जो तुरंत दिखाई नहीं देते हैं। किसानों को नकद हस्तांतरण कृषि निवेश में मंदी के साथ आया है। जबकि सरकारें बेरोजगारी भत्ते के लिए नकद राशि देने को तैयार हैं, नरेगा के तहत मजदूरी को बाजार स्तर तक बढ़ाने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है।

मुफ्त राशन योजना की लागत नगण्य है, लेकिन जनसंख्या में वृद्धि के बावजूद एन.एफ.एस.ए. द्वारा अनिवार्य अनुपात में इसकी कवरेज को बहाल करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। महिलाओं को नकद हस्तांतरण का स्वागत है, लेकिन मातृत्व लाभ या एकीकृत बाल विकास योजना जैसी आवश्यक योजनाओं के लिए वित्तीय आबंटन में शायद ही वहां कोई वृद्धि हुई है। लेकिन प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं में बहुत कम बदलाव हुआ है। हमारी अर्थव्यवस्था और समाज में हर समस्या के रामबाण के इलाज के रूप में नकद हस्तांतरण की होड़ जारी रह सकती है, लेकिन यह विकास को गति देने या पुनॢवतरण का सबसे अच्छा तरीका नहीं हो सकता है।-हिमांशु


सबसे ज्यादा पढ़े गए