कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की पार्टी का भाजपा में विलय दोनों पक्षों के लिए निराशा

Thursday, Sep 22, 2022 - 05:36 AM (IST)

पूरे एक साल की अटकलों के बाद पंजाब लोक कांग्रेस(पी.एल.सी.) के संस्थापक और कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह जिन्होंने साढ़े 9 साल तक पंजाब पर शासन किया, आखिरकार भाजपा में शामिल हो गए। किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसे पंजाब के सबसे बड़े राजनीतिक नेताओं में से एक माना जाता है, उसकी पार्टी के विलय समारोह ने उसे निराश ही किया होगा, क्योंकि यह कोई बड़ा धमाका नहीं था। उनके साथ कोई बड़ा कांग्रेसी नेता भगवा खेमे में शामिल नहीं हुआ, जैसा कि उनके द्वारा दावा किया जा रहा था। 

इससे भी बदतर तो यह रहा कि समारोह में, न तो भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, और न ही गृहमंत्री अमित शाह उनका सम्मान करने के लिए मौजूद थे, भले ही वे कथित तौर पर पास के एक कमरे में मौजूद थे। थके हुए दिखने वाले कैप्टन अमरेन्द्र सिंह और उनकी पी.एल.सी. का भाजपा में स्वागत भाजपा के दो मंत्रियों नरेंद्र सिंह तोमर और किरण रिजिजू ने किया। शाह और नड्डा के साथ फोटो सैशन बाद में हुआ जब अमरेंद्र सिंह उनसे मिलने गए। 

यह देखने के बाद दर्द और गहरा हो जाता है कि भगवा पार्टी के साथ उनके लंबे समय से संबंध थे, जिसके कारण वास्तव में कांग्रेस ने उन्हें पिछले साल सी.एम. की कुर्सी से बाहर कर दिया था। वे लिंक अब और अच्छी तरह से एवं सही मायने में उजागर हुए हैं। इसके अलावा, कैप्टन को कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने भाजपा में शामिल कराया और स्वागत किया। यह साबित करता है कि जब वह मुख्यमंत्री थे तब वह भाजपा के साथ मिलकर काम कर रहे थे।

उनके अपने एक पूर्व सहयोगी और कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने ट्वीट किया ‘जिस व्यक्ति ने 3 कृषि कानूनों को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और पंजाब के किसानों से सबसे ज्यादा नफरत करता है, भाजपा ने उस व्यक्ति को पार्टी में अमरेंद्र सिंह का स्वागत करने का काम दिया है। भाजपा क्या संकेत देना चाहती है? तो, आइए देखें कि वास्तव में सोमवार को क्या हुआ जब उन्होंने अपनी पी.एल.सी. का भाजपा में विलय कर दिया। पिछले कई दिनों से यह चर्चा थी कि वह कांग्रेस और अन्य जगहों के कई अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ भाजपा में शामिल होंगे जिससे नई पार्टी में उनका राजनीतिक वजन बढ़ जाएगा। 

जिन लोगों को उनके साथ शामिल होना था, उनमें से एक पूर्व स्पीकर और कांग्रेस के दिग्गज राणा के.पी. सिंह थे, जिन्होंने कुछ पत्रकारों को यह बताया भी था कि वह भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं। लेकिन आखिरी वक्त में कुछ हुआ और वह पीछे हट गए। संभवत: वरिष्ठ कांग्रेसियों ने उन्हें यह कदम नहीं उठाने के लिए मना लिया था। उनके दिमाग में यह रहा होगा कि पंजाब में कैप्टन अमरेंद्र सिंह और हाल के महीनों में भाजपा में शामिल हुए कुछ अन्य नेताओं की मदद से पंजाब में अपने पैर पसारने की पूरी कोशिश के बावजूद आम पंजाबी भगवा पार्टी को अच्छी नजर से नहीं देखता है। 

हालांकि धारणा यह है कि भाजपा में शामिल होने के बाद राजनेता केंद्रीय जांच ब्यूरो या प्रवर्तन निदेशालय के डर से मुक्त हो जाता है। लेकिन, जो राजनेता अपना भविष्य देखता है वह भगवा पार्टी में जाने का जोखिम नहीं उठाना चाहता क्योंकि पंजाब में उसके राजनीतिक करियर का अंत हो सकता है। 

दरअसल, पंजाब की राजनीति में भाजपा की सच्चाई यह है कि वह स्थानीय पार्टी अकाली दल के साथ गठबंधन के बावजूद केवल कुछ सीटें ही जीत पाती है। वर्तमान में 117 सदस्यीय विधानसभा में इसके केवल तीन विधायक हैं। इसलिए, उन नेताओं की सेना, जो कैप्टन के साथ भाजपा में शामिल होने वाली थी, हवा के झोंके की तरह गायब हो गए। यह एक पारिवारिक मामला था, क्योंकि इसमें शामिल होने वालों में उनके बेटे रणइंद्र सिंह, बेटी जय इंदर कौर, उनके पूर्व सलाहकार बी.आई.एस. चहल थे। उनकी पत्नी परनीत कौर ने कांग्रेस के साथ रहना ही ठीक समझा। 

वहीं पंजाब विधानसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर अजैब सिंह भट्टी, पूर्व सांसद अमरीक सिंह अलीवाल, पूर्व विधायक हरचंद कौर, हरिंद्र सिंह ठेकेदार, प्रेम मित्तल और मजदूर नेता केवल सिंह भी भाजपा में शामिल हो गए। दिलचस्प बात यह है कि उनके कभी करीबी सहयोगी रहे और गुरु हरसहाय के पूर्व विधायक राणा सोढी, जो कई महीने पहले भाजपा में शामिल हुए थे, अपने पूर्व बॉस का स्वागत करने के लिए नहीं पहुंचे, न ही मनजिंद्र सिंह सिरसा और इकबाल सिंह लालपुरा जैसे पंजाब के वरिष्ठ भाजपा नेता कार्यक्रम में मौजूद थे। 

यह स्पष्ट है कि जब से भाजपा ने अकाली दल से गठबंधन तोड़कर पंजाब में अकेले जाने का फैसला लिया है, वह सिख चेहरों की मदद से अपने पदचिह्न का विस्तार करने की कोशिश कर रही है। 2024 में होने वाले लोक सभा चुनाव को दिमाग में रखते हुए,भाजपा कम से कम 50 प्रतिशत सिखों को अपने पदाधिकारियों के रूप में स्थापित करने की योजना बना रही है। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को अपने पक्ष में करना एक प्रमुख सिख चेहरा पाने और समुदाय में स्वीकार्यता हासिल करने का एक प्रयास है। लेकिन किसी अन्य प्रमुख चेहरे को अपने साथ लाने में विफलता और पंजाब की राजनीति में चले हुए तोप कैप्टन अमरेन्द्र सिंह का भाजपा में प्रवेश दोनों पक्षों के लिए निराशाजनक है। 

इसके अलावा, पूर्व महाराजा, जो कभी पंजाब की सत्ता पर काबिज थे और महल में बैठकर अपने सहयोगियों की मदद से शासन करते थे, को भी एक राजनीतिक दल-पी.एल.सी.- चलाने और बनाए रखने के कार्य से मुक्त कर दिया। उन्होंने पिछले साल कांग्रेस छोडऩे के बाद पी.एल.सी. का गठन किया था, लेकिन उनकी पार्टी राज्य विधानसभा चुनावों में एक भी सीट जीतने में नाकाम रही। वह खुद पटियाला अर्बन की अपनी सीट हार गए।-चंदर सुता डोगरा (मीडिया एवं संचार प्रमुख, ‘आप’)

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