अपनी विदेश नीति के महत्वपूर्ण मोड़ पर है कनाडा

punjabkesari.in Tuesday, Nov 04, 2025 - 05:37 AM (IST)

कनाडा अपनी विदेश नीति के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। प्रधानमंत्री मार्क कार्नी और विदेश मंत्री अनीता आनंद के नेतृत्व में, ओटावा एक व्यावहारिक और दूरदर्शी दिशा अपना रहा है। एक ऐसी दिशा जो दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे प्रभावशाली अर्थव्यवस्थाओं भारत और चीन के साथ संबंधों को सामान्य और मजबूत बनाने का प्रयास करती है। यह केवल कूटनीति का मामला नहीं है, यह कनाडा की भविष्य की समृद्धि और वैश्विक महत्व के लिए एक रणनीतिक अनिवार्यता है।

लेकिन आनंद और कार्नी इस जिम्मेदार विदेश नीति का पालन कर रहे हैं। खालिस्तानी चरमपंथी समूह इसे कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। ये समूह, जिन्हें कनाडा सरकार पहले हिंसक या आतंकवादी गतिविधियों से जोड़ चुकी है, कनाडा की भारत नीति पर वीटो लगाने की कोशिश कर रहे हैं। उनके तरीके शांतिपूर्ण विरोध से कहीं आगे निकल गए हैं। वे जनप्रतिनिधियों, जिनमें मंत्री आनंद भी शामिल हैं, को सिर्फ इसलिए धमकियां और डराने-धमकाने का सहारा ले रहे हैं क्योंकि वे उनके विभाजनकारी एजैंडे के आगे झुकने से इंकार करते हैं। यह अभियान और भी जघन्य है क्योंकि यह अनीता आनंद की पहचान को निशाना बना रहा है। एक गौरवान्वित हिंदू और भारतीय-कनाडाई आनंद इस देश की बहुसांस्कृतिक और समावेशी भावना की प्रतीक हैं। फिर भी, अतिवादियों ने उनके धर्म और विरासत को उनके खिलाफ  हथियार बना लिया है। वे सिख गुरुओं के मूल संदेश जो सार्वभौमिक भाईचारे, करुणा और न्याय का उपदेश देता है, को भूल गए हैं या जानबूझकर अनदेखा कर रहे हैं।

हाल ही में वेंकूवर में, इन अतिवादियों ने हिंसक तस्वीरें प्रदर्शित कीं, जिनमें सुश्री आनंद और पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पोस्टरों पर बंदूकें तानी हुई दिखाई गईं जो एक भयावह हत्याकांड का प्रतीक था। यह आनंद के खिलाफ  हिंसा को उचित ठहराने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास था। यह ‘सक्रियता’ नहीं है, यह राजनीतिक धमकी है। कनाडा की लोकतांत्रिक संस्थाओं और मूल्यों पर सीधा हमला है। मैं सांसद रणदीप सराय के खुले और सिद्धांतवादी रुख की सराहना करता हूं जिन्होंने इस धमकी के खिलाफ  आवाज उठाई और अपने सहयोगी का बचाव किया। उनका साहस कनाडाई लोकतंत्र की सर्वश्रेष्ठता का प्रतिनिधित्व करता है , जब सबसे ज्यादा जरूरत हो, तब बोलने का साहस। लेकिन यह बेहद निराशाजनक है कि उनके कई साथी सांसद चुप रहे हैं। अगर 21 पंजाबी सांसद अपने ही साथियों को खुली धमकियों से बचाने के लिए आवाज नहीं उठा सकते तो जनता को यह पूछने का पूरा हक है कि क्या ऐसे नेता भविष्य में आम कनाडाई लोगों के लिए खड़े होंगे? नेतृत्व के लिए साहस की जरूरत होती है, सुविधा की नहीं।

कनाडा को ऐसी धमकियां बर्दाश्त नहीं करनी चाहिएं। निर्वाचित प्रतिनिधियों को धमकाना अभिव्यक्ति की आजादी नहीं, यह एक अपराध है। सरकार को कानून की पूरी ताकत से जवाब देना चाहिए। राजनीतिक हिंसा  चाहे वह विचारधारा, धर्म या राष्ट्रवाद से प्रेरित हो, का शांति, सहिष्णुता और आपसी सम्मान पर आधारित लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है।

प्रधानमंत्री कार्नी और विदेश मंत्री आनंद ने कनाडा के हितों को सर्वोपरि रखकर सही किया है। वे समझते हैं कि भारत और चीन के साथ रचनात्मक संबंध व्यापार, तकनीक, जलवायु कार्रवाई और वैश्विक स्थिरता के लिए जरूरी हैं। किसी भी सीमांत आंदोलन को इस राष्ट्रीय एजैंडे पर कब्जा करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। अब समय आ गया है कि सभी पृष्ठभूमि के कनाडाई लोग धमकियों और डर को नकारें और देश की भलाई के लिए काम करने वालों का समर्थन करें। अनीता आनंद हमारे सम्मान और सुरक्षा की हकदार हैं, डर की नहीं। कनाडा की सच्ची भावना नफरत का सामना करने के लिए साहस और शांति की खोज में एकता की मांग करती है।-मनिंदर गिल(रेडियो इंडिया, सरे, बी.सी.)


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