क्या भागवत की मुसलमानों से मुलाकात के बाद बदल सकता है संघ

punjabkesari.in Sunday, Oct 02, 2022 - 04:22 AM (IST)

भाऊराव देवरस : मुसलमानों का बाबर से कोई संबंध क्यों होना चाहिए? वह तो मध्य एशिया से आया था। 
प्रश्र : आपके पूर्वज भी मध्य एशिया से आए थे-आर्य भी मध्य एशिया से आए थे? 
देवरस : इसको लेकर कुछ विवाद है। अब इसका विरोध किया जा रहा है। बहुत सारी किताबें हैं जो इसका खंडन करती हैं।
प्रश्र: आपका मतलब आर्य कहीं से नहीं आए?
देवरस : नहीं, हमने नहीं किया। 
प्रश्र : तो वे बस यहीं पैदा हुए और यहीं पर अंकुरित हो गए?
देवरस : हां, आर्य और आदिवासी शब्द सब क्या है? इसे तो अंग्रेजों ने बनाया है (पूरा साक्षात्कार)

यह राष्ट्रीय स्वयं सेवक (आर.एस.एस.) के विचारक मुरलीधर दत्तात्रेय (भाऊराव) देवरस के साथ 2 घंटे के लम्बे साक्षात्कार का बेतरतीब ढंग से उठाया गया अंश है। यह साक्षात्कार 1990 की सर्दियों में संगठन के मुख्यालय केशव कुंज, झंडेवाला में हुआ था। चूंकि उनके बड़े भाई आर.एस.एस. प्रमुख  बाला साहेब देवरस बीमार थे इसीलिए भाऊ राव आर.एस.एस. की सबसे महत्वपूर्ण आवाज थे। आर.एस.एस. के शीर्ष अधिकारियों के साथ इस ऐतिहासिक बातचीत और हाल ही में आर.एस.एस. के सरसंघचालक मोहन भागवत के साथ 5 वरिष्ठ मुस्लिम पेशेवरों की बैठक के बीच ठीक 32 वर्ष बीत चुके हैं।

ये तीन दशक आज तक साम्प्रदायिकता और जातिवाद में उछाल को परिभाषित करते हैं। वर्ष 1990 में परिस्थितियां अलग-सी थीं। अलीगढ़, मुरादाबाद, अहमदाबाद और अन्य जगहों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने संक्षिप्त अवधि के लिए अन्य पिछड़ी जातियों (ओ.बी.सी.) के लिए सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण देने वाली मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की घोषणा की। इससे दलितों, आदिवासियों और ओ.बी.सी. के लिए आरक्षण कोटा 50 प्रतिशत तक बढ़ जाता। ऊंची जातियों में इससे आग-सी लगी हुई थी।

सचमुच मुझे याद है कि कैसे एम्स के चौराहे पर दिल्ली विश्वविद्यालय के एक छात्र राजीव गोस्वामी  द्वारा आत्मदाह के प्रयास ने मंडल विरोधी आंदोलन को और भी तेज कर दिया। इसने अनिवार्य रूप से उच्च जातियों को निचली जातियों के खिलाफ खड़ा कर दिया। यह विभाजन सैंकड़ों वर्षों से एक सामाजिक वास्तविकता रहा है। मंडल के बाद जो नया था, वह चुनावी राजनीति में जाति का आक्रामक इस्तेमाल था। उत्तर प्रदेश (जो ऐतिहासिक रूप से गोविंद बल्लभ पंत, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, बिंधेश्वरी दूबे, नारायण दत्त तिवारी) में राजनीतिक सत्ता हथियाने के लिए जाति के बड़े पैमाने पर रोजगार ने प्रतिक्रिया को आमंत्रित किया।

इस मोड़ पर मुसलमान जोकि पारम्परिक रूप से कांग्रेस का वोट बैंक थे, अपने आपको कांग्रेस के साथ असहज महसूस करने लगे। इस बेचैनी का भी एक कारण था। जे.पी. आंदोलन और उसके बाद जनता पार्टी द्वारा दिल्ली से बाहर किए जाने से आहत कांग्रेस बदलने लगी। उसने भगवा रंग प्राप्त करना शुरू कर दिया। इंदिरा गांधी ने 1983 में जम्मू का चुनाव अल्पसंख्यक विरोधी तख्ती पर लड़ा था।

हालांकि उनके ध्यान में अल्पसंख्यक सिख थे,  पंजाबी सूबा के लिए आंदोलन कर रहे थे।1984 में इंदिरा जी की हत्या के बाद अभूतपूर्व तीन चौथाई बहुमत लेकर राजीव गांधी सत्ता में लौटे थे जिनकी सहानुभूति मत के रूप में व्याख्या नहीं की गई थी। इसकी बजाय इसे अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के खिलाफ ङ्क्षहदू एकत्रीकरण के रूप में देखा गया। यह भाजपा द्वारा मांगे गए एकत्रीकरण से कैसे अलग था? 

राजीव गांधी ने पहले शाह बानो के फैसले को पलट कर और सलमान रुशदी के ‘सैटेनिक वर्सेज’ पर प्रतिबंध लगाकर मुसलमानों का तुष्टीकरण किया था। हिंदू दक्षिण पंथी उनकी बांहों में थे। राजीव अयोध्या से राम राज्य की घोषणा करने के लिए पहुंचे तथा बाबरी मस्जिद में राम मंदिर के ताले खुलवाए। राम मंदिर के लिए ईंट रखने के समारोह की अनुमति के दौरान राजीव तथा उनके साथी धोखे पर वापस आ गए। उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा विवादित घोषित भूमि पर शिलान्यास की अनुमति दी।

उन्होंने मुसलमानों को एक खुला झूठ बताया कि उच्च न्यायालय की सलाह का उल्लंघन नहीं किया गया था। इस छल के कुछ ही मिनटों के भीतर विश्व ङ्क्षहदू परिषद ने एक प्रैस कांफ्रैंस में घोषणा की कि वे गांधी पर हावी हो गए हैं। शिलान्यास उसी भूमि पर किया गया था जिसकी उन्होंने मांग की थी। यही वह प्रकरण था जिसके कारण मुसलमानों ने कांग्रेस को भारी संख्या में छोड़ दिया। 6 दिसम्बर 1992 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हाराव दिन भर सोते रहे जब बाबरी मस्जिद को तोड़ा गया।

इस तरह कांग्रेस से मुसलमानों का पलायन पूरा हुआ। दहशत में रह रहे मुसलमानों को  मुलायम सिंह यादव और मायावती जैसे नेताओं ने लालच दिया। इन नेताओं ने केवल यादव और दलित हितों को आगे बढ़ाने के लिए काम किया। (मैं केवल इस कथा को सरल रखने के लिए यू.पी. पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा हूं)। भारत-पाक विभाजन के बाद से मुस्लिम कांग्रेस की गोद में अपने आपको सुरक्षित महसूस करते रहे लेकिन 2005 में सच्चर आयोग की रिपोर्ट ने जो खुलासा किया, वह तुष्टीकरण की घृणा के अलावा उन्हें अपमान मिला।

एक ऐसा अपमान जिसे आसानी से भुलाया नहीं जा सकता। आर.एस.एस.-भाजपा गठबंधन  कोई जोखिम लेने वाला नहीं था। खतरे को स्थायी रूप से दूर करने के लिए हिंदू एकीकरण ही एकमात्र तरीका था। यह हवा में केसरिया छिड़काने से ही संभव था। लव जेहाद, बीफ लिंचिंग, मस्जिदों पर लाऊड स्पीकर, घर वापसी, कथित आतंकवाद के लिए मुसलमानों की हाई-प्रोफाइल गिरफ्तारी और इसी तरह के मुद्दों ने तापमान को साम्प्रदायिक रूप से चार्ज रखा।

राष्ट्रव्यापी लामबंदी के लिए साम्प्रदायिकता को राष्ट्रवाद से जोडऩा होगा। इसके लिए कश्मीर में उथल-पुथल और पाकिस्तान के साथ संघर्षपूर्ण संबंधों की आवश्यकता होगी। सिद्धांत यह है कि 2019 के चुनाव परिणाम बालाकोट के बिना संभव नहीं हो सकते थे। यह वही दृष्टिकोण है जिसके खिलाफ आर.एस.एस. प्रमुख ने मुट्ठी भर मुस्लिम पेशेवरों के लिए अपने दरवाजे खोले हैं।-सईद नकवी


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