आज गंभीर समस्याओं के हल का सपना भी नहीं ले सकते

Saturday, Jul 10, 2021 - 06:41 AM (IST)

भारतीय लोगों की वर्तमान स्थिति किसी कमी के कारण नहीं है बल्कि हर चीजों की ज्यादा मात्रा होते हुए भी प्रशासन वर्ग की लोक विरोधी नीतियां भी इसके लिए जि मेदार हैं। देश के कुल प्राकृतिक साधनों तथा मानवीय स्रोतों के उपयोग से सभी लोगों को रोटी, रोजी, मकान, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा तथा सामाजिक सुरक्षा मुहैया करवाई जा सकती है।

आबादी का ज्यादा होना एक समस्या है परन्तु लोगों का आर्थिक तथा सामाजिक स्तर ऊंचा उठाकर भी किसी हद तक इसके ऊपर काबू पाया जा सकता है। वैसे तो जनसं या नियंत्रण हेतु संविधान के अनुसार कानूनी कदम भी उठाए जा सकते हैं। ज्यादा जनसंख्या का बहाना बनाकर आप लोग लोगों की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति करने से हट नहीं सकते। 

यदि देश के अंदर सरकारों की ओर से स्वास्थ्य सेवाओं का योग्य प्रबंधन किया होता तो कोरोना महामारी के दौर में 4 लाख मौतों की संख्या को कम करना संभव था। वैसे तो सरकारें कोरोना से मरने वालों की गिनती बहुत कम दर्शा रही हैं।

पंजाब के भीतर बिजली कटों के कारण हाहाकार मची हुई है। यह सब अकाली दल-भाजपा सरकार के बिजली विभाग के निजीकरण तथा सरकारी थर्मल प्लांटों पर ताला लगाने से निजी क पनियों के साथ किए गए लोक विरोधी समझौतों की देन है। कांग्रेस सरकार ने यह सिद्ध कर दिया है कि उसकी नीतियां बादल सरकार से अलग नहीं हैं। करोड़ों बच्चों को जिनके मां-बाप आॢथक तंगी के कारण उनको बेहतर शिक्षा नहीं दे पा रहे, उन्हें नि:शुल्क तथा सस्ती परन्तु उच्च स्तरीय शिक्षा देकर देश के आर्थिक विकास में भागीदार बनाया जा सकता है। 

कांग्रेस तथा गैर-कांग्रेसी केंद्रीय और राज्य सरकारों की 1947 से लेकर आज तक की कार्यशैली तसल्लीब श नहीं रही। इसके विपरीत लोगों के लिए मुसीबतों के पहाड़ खड़े करने के लिए प्रशासन ही जि मेदार है। पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह आज विपक्ष में बैठ कर भी मोदी सरकार की मूल आर्थिक नीतियों में संशोधन के बारे में कोई नुक्ताचीनी करने से गुरेज करते हैं। 

मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार तथा भाजपा-कांग्रेस की राज्य सरकारें उन्हीं आर्थिक नीतियों को तेजी से आगे बढ़ा रही हैं जो नरसि हाराव-मनमोहन सिंह की जोड़ी ने शुरू की थी। वैश्वीकरण, उदारीकरण तथा निजीकरण के शब्दों को इस तरह प्रचारित किया गया जिससे नवयुवक विशेषकर शिक्षित नई पीढ़ी के मनों के अंदर सुनहरे भविष्य के जुगनूं टिमटिमाने लग पड़े। इस दौर में जो भी आर्थिक उन्नति की गई उसमें से आम आदमी के हित पूरी तरह से नकारे गए। क्या आज उन नव उदारवादी आर्थिक नीतियों के लागू होने से निकले तबाहकून नतीजों की रोशनी में मनमोहन सिंह तथा नरेन्द्र मोदी देश केलोगों से माफी मांगेंगे? सरकार तथा विरोधी पार्टियों के नेताओं की शीर्ष पदों तथा सत्ता प्राप्ति के लिए प्रत्येक दिन एक-दूसरे के विरुद्ध शाब्दिक जंग छिड़ी हुई है। 

दल बदलने के लिए न किसी को कोई शर्म महसूस होती है और न ही ऐसे नेता अपनी लाख कमजोरियों के बावजूद अपने मुंह से अपना ही गुणगान करने से गुरेज करते हैं। जब सारा समय सत्ता से चिपके रहने तथा अमीर बनने की दौड़ में ही खर्च कर दिया जाए तब आम लोगों की दुख-तकलीफों को दूर करने का उन्हें वक्त कहां मिलता है? करोड़ों लोगों की गंभीर समस्याओं के हल होने का सपना भी नहीं लिया जा सकता। स्पष्ट है कि जिस स्थिति में आज देश फंसा हुआ है उसके समाधान के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। आजादी के बाद देश की सत्ता पर विराजमान विभिन्न राजसी रंगों की सरकारों के पास राजनीतिक इच्छा शक्ति दिखाई नहीं दी। 

लंबे समय तक अपनी सत्ता को सुदृढ़ करने के लिए लोगों को असल मुद्दों से हटा कर उन्हें सा प्रदायिक, जात-पात तथा बांटने वाले मुद्दों में उलझा दिया जाता है मगर आम लोगों ने अपने अनुभव के आधार पर तथा देश के अंदर विभिन्न वर्गों की ओर से चलाए जा रहे आंदोलनों तथा विशेषकर पिछले कई महीनों से चल रहे देशव्यापी किसान आंदोलन के गर्भ से एक नई चेतना पैदा हुई है। राजनीतिक नेतृत्व किसी विशेष परिवार या समुदाय में पैदा हुए नेताओं की पुश्तैनी जागीर नहीं है।-मंगत राम पासला

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