सी.ए.ए. गलत दिशा में एक खतरनाक ‘मोड़’

Saturday, Feb 29, 2020 - 01:34 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की छत्रछाया में भारत अपने आपको विश्व में सबसे ऊपर देख रहा था। यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोई एक देश के मामलों को किस प्रकार देखता है। पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह का राष्ट्रवाद के प्रति अपना ही नजरिया था। आर.एस.एस. प्रमुख मोहन भागवत ने अफसोस जाहिर किया है कि आजकल विश्व के बड़े हिस्सों में राष्ट्रवाद के मुद्दे का एक नकारात्मक अर्थ निकाला जा रहा है क्योंकि इसको हिटलर, नाजीवाद तथा फासीवाद के साथ जोड़ कर देखा जाता है। आर.एस.एस. प्रमुख ने हालांकि दोहराया कि भारत को मूल सिद्धांतों तथा पर्यावरण बदलावों की चुनौतियों से निपटने के लिए एक महान राष्ट्र बनने की जरूरत है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान देश ने राष्ट्रवाद के नए चिन्हों को देखा है जोकि पुरानी अवधारणाओं तथा विचारों से भिन्न हैं। भाजपा-आर.एस.एस. नेतृत्व भी ऐसा ही देखते हैं। 

लाखों भारतीय कलाम में परमाणु इंडिया का एक नया मसीहा देखते थे
देश के दिवंगत राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की मिसाल लें तो पता चलता है कि उन्होंने भारत के एक नए राष्ट्रीय चरित्र का प्रतिनिधित्व किया जोकि मिसाइल पावर पर आधारित था। इसकी कौन परवाह करता है कि वह तमिलनाडु के एक मुस्लिम समुदाय से संबंध रखते थे। लाखों भारतीय कलाम में परमाणु इंडिया का एक नया मसीहा देखते थे। वास्तव में डा. अब्दुल कलाम ने देश के नए धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद जोकि जाति, समुदाय तथा धर्म से ऊपर था, का नेतृत्व किया। उन्होंने देश के नए समाज का प्रतिनिधित्व किया। इसके साथ-साथ उन्होंने आत्मनिर्भरता तथा स्वदेशी शक्ति की नई भावना का प्रतिनिधित्व किया है। मेरे लिए भारतीय भावना एकता महसूस करना है, जो आज गम्भीर उकसावे में है। 

भारतीय भावना अदृश्य तथा न दबने वाली है, इसका मकसद आधी संस्कृति और आधा धर्म होना है। इसके भीतर मानवता का सहज ज्ञान है। इसका अदृश्य चरित्र वर्तमान तथा भूतकाल से जुड़ा हुआ है। इसी ने एक राष्ट्र को गति प्रदान की है। राष्ट्रवाद के अनेकों चिन्हों ने देश की एकता को एक धागे में पिरोकर रखा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास संसद में सशक्त बहुमत है। इसी कारण भारत का विवादास्पद नया नागरिकता संशोधन कानून आसानी से पास हो गया, जिसके चलते हिंसा देखी जा रही है। मोदी के विरोधियों तथा आलोचकों द्वारा कई सवाल उठाए जा रहे हैं कि मोदी सरकार की नीतियां देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक करोड़ों मुसलमानों को देश से बाहर निकालने की हैं। उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बनाए जाने की प्रक्रिया है। सरकार हिन्दू राष्ट्रवाद के एजैंडे को आगे बढ़ाना चाहती है। 

सरकारी नीति धार्मिक आधारों पर नहीं हो सकती 
सरकारी नीति धार्मिक आधारों पर नहीं हो सकती क्योंकि हमारा संविधान इसकी अनुमति नहीं देता। यह कहना है जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवॢसटी, नई दिल्ली के रिसर्च स्कॉलर राहुल कपूर का। मुसलमानों में इस कारण भी चिंता है क्योंकि केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया है कि राष्ट्रीय नागरिकता पहचान प्रक्रिया जिसे कि  पूर्वोत्तर असम राज्य में लागू किया गया है, से अवैध प्रवासियों को बाहर निकाला जाएगा। ऐसी प्रक्रिया का मतलब यह है कि सभी भारतीयों को दशकों पीछे जाना पड़ेगा ताकि वे दस्तावेज प्रमाण उपलब्ध करवा सकें कि उनके पूर्वज भारतीय थे या फिर भारत के निवासी थे। गरीब के लिए जन्म तथा भूमि रिकार्ड के दस्तावेज जुटाने की बहुत बड़ी चुनौती होगी। 

देश का संविधान तथा इसके लोकतांत्रिक मूल्य कायम रह सकें
सरकार के नए कदम की घोर आलोचना हो रही है क्योंकि यह राष्ट्र को बांटने वाला एक कदम है। भारतीय संविधान द्वारा धर्मनिरपेक्ष विचारों के धागे के यह बिल्कुल विपरीत है। हालांकि सरकार कड़ा रुख अपनाए हुए है। मगर नया कानून देश की छवि पर वैश्विक तौर पर चोट करेगा। संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकारों के अधिकारियों ने इसे भेदभावपूर्ण बताया है। अमरीकी गृह विभाग ने भारत को निवेदन किया है कि वह देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करे ताकि देश का संविधान तथा इसके लोकतांत्रिक मूल्य कायम रह सकें। अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प की यात्रा के बाद मुझे यकीन नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी इस आलोचना का जवाब देने के लिए तैयार होंगे। यहां तक कि इंटरनैशनल फ्रीडम पर यूनाइटेड स्टेट कमीशन के तथ्य पत्रों ने सी.ए.ए. को भारत की धार्मिक स्वतंत्रता में एक महत्वपूर्ण मोड़ बताया। उसने कहा है कि एन.आर.सी. से केवल मुसलमानों को ही झेलना पड़ेगा तथा गैर-मुस्लिमों की सी.ए.ए. द्वारा सुरक्षा यकीनी बनाई जाएगी।

कमीशन ने आगे कहा कि सी.ए.ए. एक गलत दिशा में एक खतरनाक मोड़ ला रहा है हालांकि भारत सरकार ने कहा है कि एन.आर.सी. पर विचार नहीं हो रहा। सी.ए.ए. धर्मनिरपेक्ष बहुलवाद तथा सबको समानता का अधिकार देने की गारंटी देने वाले संविधान के भी विपरीत है। गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणी जिसमें उन्होंने संसद में कहा था कि सी.ए.ए. से केवल यह मतलब है कि इससे पड़ोसी देशों में धार्मिक प्रताड़ना झेलने वालों को सुरक्षा देना है, का उल्लेख करते हुए कमीशन ने यह भी कहा कि सूचीबद्ध गैर-मुस्लिम धार्मिक समूहों को प्रताडऩा का प्रमाण देना अनिवार्य नहीं। सी.ए.ए. से शिया अहमदिया जोकि अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान में अपने धर्मों के कारण प्रताडऩा झेल रहे हैं, को बाहर रखा गया। 

आधुनिक युग का सत्याग्रह स्थल बना शाहीन बाग 
शाहीन बाग घटनाक्रम मोदी सरकार तथा लोगों विशेषकर मुसलमानों के बीच बढ़ रहे अन्तर के बारे में भी बोल रहा है। सबसे ज्यादा शर्मनाक बात दिल्ली में साम्प्रदायिक हिंसा की है। इन सबके पीछे भाजपा नेताओं के बड़बोले भाषण हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस के व्यवहार पर भी सवालिया चिन्ह लगाया है तथा निर्देश दिया है कि ऐसे लोगों के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज हो जिन्होंने नफरत भरे भाषण दिए। मैं केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह जिनके अधीन दिल्ली पुलिस है तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल दोनों को ही हिंसा के ऐसे शर्मनाक कृत्यों के लिए जिम्मेदार ठहराता हूं। कई दिनों तक लोगों की सम्पत्ति लूटी गई तथा उजाड़ी गई। यहां पर सरकार पूरी तरह नाकाम दिखी। शाहीन बाग आधुनिक युग का सत्याग्रह स्थल बना हुआ है। कई अर्थों से अहिंसा प्रदर्शन चल रहा है। इसने लोगों को प्रेरित किया है।-हरि जयसिंह 
                

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