उपचुनाव परिणाम : मामूली अन्तर लेकिन गहरे मायने
punjabkesari.in Tuesday, Nov 09, 2021 - 04:09 AM (IST)

कुछ ही महीनों बाद 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले हुए इन आखिरी उपचुनावों ने बेहद दिलचस्प राजनीतिक तस्वीर पेश की है। सरसरी तौर पर मिले-जुले से दिखने वाले परिणामों के बहुत ही गहरे मायने हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि फर्श से अर्श पर बिठाने वाली जनता ने सत्ता के सिंहासन पर आसीनों को अपनी ताकत का एहसास करा दिया हो? दरअसल इन नतीजों के मायने कुछ भी लगाए जाएं लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि इनके लोकसभा और विधानसभा दोनों के लिए अलग-अलग संकेत हैं। राजनीतिज्ञ ही समझें कि जनता को भाग्य विधाता मानने का ढिंढोरा पीटने वाले कब तक लोकहितों को नजरअंदाज करेंगे?
तीन लोकसभा उपचुनावों में भाजपा को केवल एक में सफलता मिलना पार्टी के लिए मायूसी और निराशा का सबब तो है ही लेकिन विधानसभा के नतीजे भी आशातीत नहीं कहे जा सकते। भले ही भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों को 15 विधानसभा और 1 लोकसभा सीट पर जीत मिली हो लेकिन 14 विधानसभा और 2 लोकसभा सीटों का राजनीतिक विरोधियों के खाते में चले जाना किसी खतरे की घंटी जैसा ही है।
तीनों लोकसभा उपचुनाव के नतीजों ने सीधे-सीधे महंगाई और उसमें भी खासकर पैट्रोल, डीजल और रसोई गैस के बेलगाम बढ़ते दामों पर नाखुशी के साफ संकेत दिए हैं तो विधानसभा के नतीजों को राज्य सरकारों के प्रति जनता का अविश्वास कह सकते हैं। निश्चित रूप से जहां हिमाचल में भाजपा की साख गिरी तो वहीं असम में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। मध्य प्रदेश, उत्तर-पूर्व और तेलंगाना में भाजपा पर भरोसा तो दादर-नागर हवेली लोकसभा सीट पर शिवसेना की महाराष्ट्र से बाहर हुई धमाकेदार जीत के कुल मिलाकर मिले-जुले नतीजों से कोई भी दल ईमानदारी और साफ दावे के साथ कुछ भी कह पाने की स्थिति में नहीं है लेकिन जनता का स्पष्ट इशारा जरूर है।
हिमाचल प्रदेश की 1 लोकसभा और 3 विधानसभा सीटों पर भाजपा की हार न केवल चौंकाने वाली है बल्कि बहुत बड़े मंथन का विषय जरूर है। मंडी लोकसभा सीट मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का इलाका है तो तीनों विधानसभा सीटों पर भाजपा की हार बड़ी चुनौती है क्योंकि यह राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का गृह राज्य है। कर्नाटक में 2 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने एक सीट जीती जबकि दूसरी कांग्रेस ने हथिया ली। हाल ही में यहां मुख्यमंत्री बदले गए थे और बी.एस. येद्दियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई लाए गए। लेकिन वह अपने जिले की हंगल विधानसभा सीट तक नहीं बचा पाए। कर्नाटक की राजनीति को जानने वाले इसे मुख्यमंत्री को लेकर हुए उलटफेर से जोड़कर देखते हैं। मध्य प्रदेश में खंडवा लोकसभा और 3 विधानसभा सीटों पर भी उपचुनाव हुए।
जोबट और पृथ्वीपुर में भाजपा को जीत मिली, जबकि रैगांव सीट जो 30 वर्षों से भाजपा का मजबूत किला थी, कांग्रेस ने छीन ली। बसपा के मैदान में न होने से कांग्रेस को फायदा हुआ और उसका रैगांव से वनवास टूटा। वहीं महाराष्ट्र में 1 सीट पर उपचुनाव में कांग्रेस ने लाज बचाई। मेघालय में भाजपा और सहयोगी दलों का जलवा बरकरार रहा। मिजोरम की एक सीट पर सत्ताधारी पार्टी मिजो नैशनल फ्रंट का उम्मीदवार जीता। राजस्थान में जरूर सत्तारूढ़ कांग्रेस का जलवा दिखा। भाजपा ने तेलंगाना में जीत हासिल की। यहां हुजूराबाद विधानसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी जीती, जबकि 2018 में यहां टी.आर.एस. जीती थी। पश्चिम बंगाल में ममता का प्रदर्शन बीते विधानसभा चुनावों से भी दमदार रहा और सभी चार विधानसभा सीटें तृणमूल कांग्रेस के खाते में गईं।
सत्ता का सैमीफाइनल कहे जा रहे बेहद महत्वपूर्ण और देश भर में बेसब्री से इंतजार किए जा रहे उपचुनावों के नतीजों ने एक बार फिर कम से कम इतने संकेत तो दे ही दिए कि भारत के लोकतंत्र को दुनिया का सबसे सजग और सुधारवादी क्यों कहा जाता है! कई मायनों में आम चुनाव करीब होते हुए भी उपचुनाव कराना आम लोगों के लिए भले ही धन का फिजूल खर्च हो लेकिन राजनीतिज्ञों के लिए यह वह थर्मामीटर है जो वक्त की नजाकत और राजनीतिक सेहत को जांचता है। 14 राज्यों में 3 लोकसभा तथा 29 विधानसभा सीटों पर ये उपचुनाव पूरे देश का रुझान भांपने जैसे ही रहे। कुछ भी हो 28 राज्यों और 8 केन्द्र शासित प्रदेशों वाले देश की नब्ज जरूर इनसे पता चलती है। बस चन्द हफ्तों के बाद 2022 की शुरूआत में पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, मणिपुर में विधानसभा चुनाव होंगे तो साल के आखिर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी विधानसभा चुनाव हैं।
भाजपा खेमे में नतीजों के बाद आगामी चुनावों के मद्देनजर मंथन का जबरदस्त दौर चल रहा है तो कांग्रेस पंजाब, गोवा और उत्तर प्रदेश पर ज्यादा केन्द्रित दिख रही है। वहीं आम आदमी पार्टी ने भी पंजाब, उत्तराखंड, गोवा में बेहद उम्मीदें पाल रखी हैं। वहीं पहले से मजबूत हुई टी.एम.सी. मणिपुर और गोवा में भी अपने विस्तार के लिए तानाबाना बुन रही है। विधानसभा चुनावों का सिलसिला 2023 में भी पूर्वोत्तर के तीन राज्यों मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा से शुरू होगा जहां मार्च में मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होगा। ठीक दो महीने बाद मई में कर्नाटक तो दिसम्बर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना जैसे बड़े राज्यों के चुनाव होंगे।
निश्चित रूप से कमरतोड़ महंगाई के बीच सत्ता के सैमीफाइनल कहलाने वाले इन नतीजों ने सभी राजनीतिक दलों को उनकी खामियां और खूबियां तो खूब गिनाईं ही लेकिन हवा का रुख और उम्मीदों की बंधी पोटली भी सत्तासीनों को पकड़ा दी। पोटली में कमरतोड़ महंगाई का दंश, बेतहाशा बढ़ती कीमतों पर नाखुशी की मोहर, शिक्षित बेरोजगारों की हर रोज बढ़ती फौज का दर्द, काम के घटते अवसरों की पीड़ा, महामारी के बाद हर किसी का अपने परिजन या नजदीकी को खोने का जख्म, स्वास्थ्य सुविधाओं की कागजी व जमीनी हकीकत, घटती आय-बढ़ते खर्च के असंतुलन का रुक्का है।
काश नतीजों की सीख से ही कुछ भला हो पाता? हां राजनीति की बिरादरी को यह तो समझना होगा कि 4जी से 5जी की ओर छलांग लगाने वाली तकनीक के इस दौर में हर हाथ में मोबाइल से हर किसी को सच और झूठ का अन्तर तो समझ आने लगा है-चाहे वह कच्चे तेल की मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय कीमत हो या उज्ज्वला सिलैण्डर न भरा पाने का दर्द, योजनाएं दिखाने और फोटो ङ्क्षखचवाने का धर्म हो या भारत के आम नागरिकों की हैसियत और जरूरत को समझने का मर्म। कहते हैं कि इस बार युवा मतदाताओं ने कई चौंकाने वाले नतीजे दिए। अब राजनीति में व्यवसाय या व्यवसाय में राजनीति के अन्तर की गहराई को हुक्मरान समझें या न समझें लेकिन न भूलें कि ‘यह पब्लिक है सब जानती है’, जो बहुत मामूली वोट प्रतिशत के अन्तर से बड़े-बड़े कारनामे कर दिखाती है।-ऋतुपर्ण दवे