‘लेकिन मोदी यह नहीं बताते कि यह सब कैसे होगा’

Monday, Dec 28, 2020 - 03:39 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चाहते हैं कि किसान अपनी आय दोगुनी करे, लेेकिन सरकार ऐसा नहीं करना चाहती। उनका मानना है कि कार्पोरेटों के पक्ष में उनके कानून किसानों के लिए बाजार का विस्तार करेंगे। लेकिन यह नहीं बताते कि यह सब कैसे होगा? कार्पोरेट्स भारतीयों को पहले से ज्यादा खाना नहीं देना चाहते। भारत पहले से ही अनाज और दूध का अधिशेष उत्पादक है। 

समस्या यह है कि हम पर्याप्त उपभोग नहीं करते हैं, क्योंकि अधिकांश भारतीय गरीब हैं और अधिक बेहतर भोजन नहीं दे सकते। केंद्र सरकार को ऐसा करना चाहिए लेकिन नरेन्द्र मोदी ने गरीबों को खाद्य सबसिडी के रूप में मिलने वाली राशि में कटौती की है। 2020  के बजट में इसे 1.15 लाख करोड़ से कम कर 1.8 लाख करोड़ कर दिया। यदि भारत के गरीबों को इतना मिलता है तो यह प्रतिमाह 150 रुपए से भी कम है। अगर सरकार अधिक उपज खरीद कर हमारे गरीबों को नहीं खिलाएगी तो किसानों की आय दुगनी कैसे होगी। 

कार्पोरेट्स के पास इस बात का चार्ज नहीं कि भारत अपनी कृषि तथा डेयरी का कितना निर्यात कर सकता है। यह सरकार है जो अन्य राष्ट्रों को हमारे किसानों के लिए अपने बाजार खोलने के लिए उन्हें बाध्य कर रही है। मगर मोदी सरकार के अंतर्गत भारत का कृषि निर्यात वास्तव में गिरा है। सभी राष्ट्र अपने कृषक समुदायों की रक्षा करना चाहते हैं। इसी कारण कृषि निर्यात व्यापार वार्ता में सबसे मुश्किल काम है लेकिन एक रास्ता भी है। वियतनाम ने मूल्यवर्धित वस्तुओं के अपने निर्यात में लगातार वृद्धि करके इसे दिखाया है। भारत मोदी के अंतर्गत असफल हुआ है। 

मोदी से पहले 2013 में कृषि निर्यात 43 बिलियन अमरीकी डालर से गिर कर पिछले साल 38 बिलियन डालर हो गया था। 2016-17 में कृषि वस्तुओं का आयात 15 बिलियन डालर से बढ़ कर 25 बिलियन डालर हो गया। दुनिया भर में कुल कृषि व्यापार 2000 बिलियन डालर से अधिक है जिसका मतलब यह है कि भारत के पास न केवल बाजार का एक छोटा हिस्सा है बल्कि एक तुच्छ भी है। बदले में इसका मतलब यह है कि भारत के पास विकास के लिए बहुत अच्छा अवसर है। हालांकि भारत विशेष रूप से मोदी के नेतृत्व में पिछले 7 वर्षों में अपने कृषि सामानों के लिए एक बाजार बनाने में विफल रहा है। भारत के पास कोई मुक्त व्यापार समझौते नहीं हैं, जिसके तहत हमारे किसान उत्पादन भेज सकते हैं। जैसे कि कोरिया और जापान अपने बाजार का विस्तार करने में उन्हें मदद नहीं करते। 

जहां तक लागू करने की बात है मोदी अच्छा नहीं करते। कानूनों और नीतियों के माध्यम से विचार करने के लिए वे अच्छे नहीं हैं। उनके लॉकडाऊन ने अफरा-तफरी और दुखों को उत्पन्न किया और वे कोविड पर अंकुश नहीं लगा सके। उनकी जी.एस.टी. ने हजारों कम्पनियों को समाप्त कर दिया तथा सरकार के लिए टैक्स की राशि को इतना कम कर दिया। वह राज्य सरकारों को कोई भुगतान नहीं कर सकती। सरकार के अपने आंकड़ों के अनुसार विमुद्रीकरण ने काले धन, भ्रष्टाचार या आतंकवाद को समाप्त नहीं किया बल्कि इसने अर्थव्यवस्था को इस कदर घायल कर दिया कि भारतीय लोग जितना 2013 में खा रहे थे उसके विपरीत 2018 में वह कम खाने लग पड़े और चीजों का कम उपभोग करने लग पड़े। 

यह हमारे उम्दा नेता का एक रिकार्ड है। अब वह चाहते हैं कि किसान यह विश्वास करे कि उनकी प्रतिभा उनके लिए पर्याप्त है कि वे अपनी आजीविका चलाएं और मोदी पर विश्वास करें। लाखों भारतीयों को उस चरम आघात में डालने के लिए उन्होंने न कोई स्पष्टीकरण दिया और न ही माफी की पेशकश की। वह किस आधार पर यह मान लेते हैं कि किसान समझते हैं कि मोदी उनसे ज्यादा कृषि के बारे में जानकारी रखते हैं? 

वे जानते हैं कि न तो स्थानीय मार्कीट में उनकी उपज के लिए कुछ है और न ही विदेशी मार्कीट के लिए, क्योंकि वे तो पीढिय़ों दर पीढिय़ों से  इसका उत्पादन कर रहे हैं। भारत के लिए गरीबों के लिए एकमात्र तरीका सरकार द्वारा सभी फसलों के लिए कानूनी रूप से एम.एस.पी. की गारंटी देना है। जो अधिशेष है उसे उसकी वसूली करना और उन्हें गरीबों में बांट देना चाहिए। यह देखना मुश्किल है कि मोदी के कानून बिना किसी बचाव या निरसन के इससे बाहर कैसे आएंगे? उनके पास यह कहने के अलावा कोई बचाव नहीं है कि किसानों को गुमराह किया जा रहा है। 

किसानों की मांगों पर एक सरसरी नजर डालना और मीडिया द्वारा साक्षात्कार किए जा रहे किसानों में से किसी को सुनने से क्या आपको यह लगता है कि यह ऐसा मामला नहीं है। ये वे लोग हैं जो जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं और यह भी जानते हैं कि उन्हें क्या चाहिए? वे यह भी जानते हैं कि जो मामला वे नहीं निभा रहे वह क्या है? वे यह भी जानते हैं। यही कारण है किसानों का आंदोलन या तो दूर होता जा रहा है या जल्द ही समाप्त होगा।-आकार पटेल

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