कारोबारी लोग अपनी ‘चहेती पार्टी’ की सरकार से निराश

Sunday, Jun 25, 2017 - 12:02 AM (IST)

किसी ने इस बात का संज्ञान लिया हो या न लेकिन मोदी सरकार अपने मुख्य वोट बैंक के प्रति दयालु नहीं है। ब्राह्मण चाहे कुछ भी महसूस करते हों लेकिन बनिया समुदाय के लिए गत 3 वर्षों दौरान स्थितियां लगातार असुखद होती जा रही हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि बनिया समुदाय बहुत अधिक अप्रसन्न है। आज बनिया लोग यह शिकायत करते हैं कि किसी भी सरकार ने उनके लिए जीवन इतना दूभर नहीं किया जितना भाजपा सरकार ने किया। छोटे कारोबारियों से लेकर बड़े-बड़े कार्पोरेट दिग्गजों तक हर कोई अपने दुखों की राम कहानी सुना रहा है  कि किस प्रकार उनकी चहेती पार्टी ने सत्ता में आते ही उनके साथ दुव्र्यवहार किया है। 

परम्परागत रूप में भाजपा का वफादार वोट बैंक चला आ रहा पूरा कारोबारी वर्ग आज जी.एस.टी. के हौवे से भयभीत है। बेशक सूक्ष्म और छोटे कारोबारियों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है तो भी धन ऐंठने वाले टैक्स अधिकारियों का उन्हें हर समय डर बना रहता है। अनेक तरह के फार्म भरने पड़ते हैं और हर कुछ सप्ताह बाद डैड लाइन की जटिलता में से गुजरना पड़ता है जिससे इन कारोबारियों का काम और कागजी कार्रवाई का बोझ बहुत अधिक बढ़ गया और वह ऐसे समय में हो रहा है जब कारोबार बहुत ही मंद गति से आगे बढ़ रहे हैं। नोटबंदी के सदमे के बाद जी.एस.टी. व्यवस्था का अनुपालन कारोबारी वर्ग की नींद हराम किए हुए है। 

वैसे इसका अर्थ यह नहीं कि जी.एस.टी. आगे की ओर कदम नहीं है तथा अधिक पारदर्शी और समतापूर्ण नहीं है। कालांतर में यह बेहतर टैक्स अनुपालन का मार्ग प्रशस्त करेगा और इससे जी.डी.पी. में टैक्स का अनुपात भी बढ़ेगा, लेकिन जिस तरीके से इस मुद्दे पर राष्ट्रीय आम सहमति बनाते हुए ढेर सारे अपवादों और छूटों की गुंजाइश रखी गई है और लगभग आधा दर्जन टैक्स स्लैब बनाए गए हैं उससे ‘एक राष्ट्र एक टैक्स’ का दावा गलत सिद्ध होता है। ऐसी अव्यवस्था में टैक्स नौकरशाही को निश्चय ही फलने-फूलने का मौका मिलेगा और जी.एस.टी. की जटिलता के चलते अनेक तरह के विवाद पैदा होंगे। इन्हें हल करने में जहां वित्तीय लागत आएगी वहीं ढेर सारा समय भी बर्बाद होगा। 

वित्त मंत्रालय ने हर बात को सरल रखने के लिए लगातार प्रयास किए हैं लेकिन जब 1 जुलाई को जी.एस.टी. अंतिम रूप में सामने आएगा तो निश्चय ही समस्याएं पैदा होंगी। उम्मीद करनी चाहिए कि आपसी समझदारी और अनुभव के बूते जी.एस.टी. नौकरशाही इसके घोषित लक्ष्यों के प्रति वफादार रहेगी। इस नौकरशाही को कारोबारियों और उत्पादकों दोनों की चिंताओं को एक जैसे सहयोगपूर्ण ढंग से हल करना होगा न कि जुर्मानों की धमकी देकर। लेकिन कारोबारी समुदाय की शिकायतों में जी.एस.टी. का हौवा केवल नवीनतम वृद्धि ही है। बेशक विपक्ष द्वारा जोर-शोर से यह तोहमत लगाई जा रही है कि मोदी सरकार अंबानी और अडानी की मु_ी में है तो भी सच्चाई यह है कि प्रधानमंत्री ने बहुत ही सचेत रूप में गरीब और वंचित लोगों का दिल जीतने के लिए भी यह कवायद की है। 

यह सच है कि कांग्रेस के प्रधानमंत्री भी कुर्सी पर बैठने के बाद गरीबों के पक्ष में बहुत कुछ बोलते रहे लेकिन व्यावहारिक रूप में वह केवल बड़े-बड़े व्यवसायियों और धनाढ्य लोगों के साथ ही मित्र भाव रखते रहे। यहां तक कि भाजपा की प्रथम सरकार ने भी मुश्किल से ही जनसमूह के मुद्दों को संबोधित किया था। हालांकि, उसने ‘इंडिया शाइनिंग’ जैसे प्रयासों से मध्य और उच्च वर्गों की ङ्क्षचताओं का ध्यान रखा था। लेकिन मोदी सरकार ने अतीत से हट कर नया रास्ता अपनाया और काले धन के सृजन पर कड़े प्रतिबंध लगाते हुए इसके स्वामियों पर शिकंजा कसा है। यह बेशक संयोग की बात हो लेकिन तथ्य यह है कि सबसे कड़े सुधार इसी सरकार द्वारा लागू किए जा रहे हैं। 

पूर्व सरकारों ने रियल एस्टेट क्षेत्र की मनमानियों को नियंत्रित करने और बट्टे खाते के ऋणों की भारी समस्या से निपटने के बारे में सिवाय बातें करने के और कुछ नहीं किया था। पहले तो उन्होंने खुद ही यह समस्या पैदा की थी और उन्हीं के बनाए हुए कानूनों के कारण काले धन वालों ने खुली लूट मचाई थी लेकिन वास्तव में यदि उत्साहपूर्वक ढंग से ऐसे लोगों के विरुद्ध ऐसी कार्रवाई की गई है तो उसका श्रेय केवल मोदी सरकार को जाता है। मोदी सरकार ने जितने भी प्रयास किए हैं उन सबका लक्ष्य कारोबार और उद्योगों में फैले हुए दुव्र्यव्यवहारों पर अंकुश लगाना है। 

यू.पी.ए. सरकार के शासन दौरान जिन लोगों ने विशाल कारोबारी साम्राज्य खड़े कर लिए और जिनकी बैंक की तिजोरियों पर खुली पहुंच थी वही अब जेल में लम्बे समय तक सडऩे के डर से सस्ते दामों पर अपनी सम्पत्तियां बेच रहे हैं। बड़े कारोबारों और राजनीति के बीच पिछले 70 साल से जो मनहूस गठजोड़ काम कर रहा था उसे मोदी सरकार ने तोडऩे का गंभीर प्रयास किया है। स्वतंत्र भारत में शायद यही एकमात्र सरकार है जो बिकाऊ नहीं है। जरा याद करें कि बड़े-बड़े उद्योगपति किस प्रकार बैंकों से डाकुओं की तरह कर्ज लेते रहे हैं क्योंकि उन्हें यह विश्वास था कि उनके सहायक मंत्री इस ऋण को या इसके बड़े हिस्से को माफ करवाने की व्यवस्था करेंगे, लेकिन मोदी सरकार की पारदर्शिता लाने की कोशिशों से ऐसा कोई भी व्यवसायी और काला धंधा करने वाला बच नहीं सका है। 

अब सेठ लोगों को हर समय बड़े-बड़े ऋण लेने की सुविधा उपलब्ध नहीं हो रही, जबकि छोटी-छोटी राशन की दुकानों के माध्यम से हेराफेरी करने वालों को भी अब कुकिंग गैस और खाद्यान्न सबसिडी के सीधे बैंक खातों में भुगतान का सामना करना पड़ रहा है। मोदी सरकार की गंभीर पहुंच से धीरे-धीरे सभी कारोबारियों को पूरी तरह खुद को कानून के अनुसार ढालना होगा। नोटबंदी के बाद करदाताओं की संख्या में भारी वृद्धि सरकार के गंभीर प्रयासों का ही परिणाम है। भ्रष्ट लोगों को अपने तौर-तरीके बदलने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है और यह उनके लिए निश्चय ही पीड़ादायक भी होगा, फिर भी अंततोगत्वा यह कदम सरकार और कारोबारियों दोनों के लिए ही लाभकारी सिद्ध होगा। 

सरकारी धन की हर प्रकार की चोरी करने वाले लोगों के विरुद्ध कानून तैयार किए गए हैं और अब टैक्स चोरों पर जेल की सजा की तलवार लटकती है। टैक्स चोरी को अपराध करार दिए जाने से पूरा कारोबारी वर्ग दुहाई दे रहा है लेकिन मोदी को इस बात की शाबाशी मिलनी चाहिए कि वह इससे विचलित नहीं हो रहे क्योंकि वह कल्याणकारी सबसिडियों के सीधे भुगतान जैसे कदमों से गरीबों का दिल जीतने का प्रयास कर रहे हैं और साथ ही साथ कारोबार और उद्योग जगत में लम्बे समय से फैली हुई गंदगी को भी साफ कर रहे हैं। इसका  मोदी को बहुत अधिक चुनावी लाभ मिलने वाला है। 

जहां तक भाजपा के परम्परागत समर्थक चले आ रहे व्यापारी वर्गों का सवाल है उनका आक्रोश खास तौर पर निजी स्वार्थों पर आधारित है इसलिए वे उस पार्टी का दामन कदापि नहीं छोड़ेंगे जिसका वे लम्बे समय से समर्थन कर रहे हैं। मोदी भी यह भली-भांति जानते हैं और यू.पी. के चुनावी परिणाम इसका स्पष्ट प्रमाण है। लेकिन इन सब बातों के साथ-साथ यह भी सावधानी बरतनी होगी कि यदि राष्ट्रहितों के राग पर कथित स्वछंद हिंदुत्ववादियों का वर्चस्व बन जाता है तो आर्थिक मोर्चे पर जितने भी अच्छे काम किए गए हैं वे सब मिट्टी में मिल जाएंगे। गौमांस या लव जेहाद के नाम पर लोगों की जान लेने की जो घटनाएं हो रही हैं वे निश्चय ही देश की बदनामी का कारण बनेंगी और विदेशी निवेश बुरी तरह प्रभावित होगा। 
 

Advertising