देश की सुरक्षा को प्रभावित कर रही है बजट की कमी

Friday, Feb 16, 2018 - 01:37 AM (IST)

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने जम्मू-कश्मीर के सुंजवां आर्मी कैम्प पर हुए आतंकी हमले के बाद वहां पहुंच कर स्थिति का जायजा लिया और जांच-पड़ताल के बाद कहा कि हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ होने के प्रमाण मिले हैं। उन्होंने यह भी कहा कि शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा तथा उचित समय आने पर पाकिस्तान को इसका करारा जवाब मिलेगा। 

हकीकत यह है कि जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा चलाया जा रहा छद्म युद्ध दिन-ब-दिन तेज होता जा रहा है। इसके साथ ही लगभग 740 किलोमीटर लम्बी सीमा रेखा पर गोलीबारी के उल्लंघन तथा घुसपैठ की घटनाओं में वृद्धि हो रही है जिससे अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे इलाके भी प्रभावित हो रहे हैं। सीमांत पट्टी के स्कूल बंद पड़े हैं और हजारों की संख्या में इलाके के लोग सुरक्षित स्थलों की ओर पलायन करते जा रहे हैं क्योंकि उनके गांवों पर भी पाकिस्तान की ओर से गोले दागे जा रहे हैं। कश्मीर वादी से सटे जम्मू इलाके में वर्ष 2014 से 2017 तक हुई घटनाओं मेें 251 सैनिक शहीद हुए हैं और कई घायल हुए, जबकि 77 सिविलियन मारे गए और कुछेक घायल हुए। 

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद उम्मीद की जा रही थी कि पाकिस्तान अपनी घिनौनी चालों से बाज आएगा लेकिन ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा। सवाल पैदा होता है कि कब तक हमारे बहादुर जवान शहीद होते रहेंगे? देश की सुरक्षा में कहां पर कमजोरी है और क्यों है? क्या हमारी सरकार ने पठानकोट एरयबेस तथा अन्य सैनिक शिविरों पर हुए हमलों के बाद भी कोई सबक नहीं सीखा? तो फिर इन समस्याओं का समाधान क्या है? 2 जनवरी 2016 को पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों ने जब पठानकोट एयरबेस पर फिदायीन हमला किया तो केन्द्र सरकार ने सैन्य शिविरों की सुरक्षा का पुख्ता प्रबंध करवाने के उद्देश्य से वाइस चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लै. जनरल फिलिप कैम्पोज के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया। जिसकी रिपोर्ट तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर को मई 2016 में सौंपी गई थी। 

रिपोर्ट में जोरदार वकालत की गई थी कि इन फौजी ठिकानों को सुरक्षित बनाने के लिए आधुनिक हथियार तथा अंधेरे में देखने वाले यंत्र, सी.सी.टी.वी. कैमरे उपलब्ध करवाने के साथ-साथ सीमा पर लगी बाड़ का विद्युतीकरण किया जाए। इसके साथ ही गत वर्ष थल सेना, नौसेना और वायु सेना ने संयुक्त रूप से 8 हजार के करीब सैन्य स्थलों की पहचान की थी जिनमें से लगभग 600 अति संवेदनशील होने के कारण सरकार से इनके लिए काफी बजट की मांग की गई थी। सैन्य शिविरों पर लगातार जारी आतंकी हमलों के बाद विशेष तौर पर रक्षा मंत्री ने जम्मू पहुंच कर हमले बारे छानबीन की और 1487 करोड़ रुपए के बजट की स्वीकृति इन कार्यों के लिए दी। सवाल पैदा होता है कि देश की सुरक्षा से जुड़ी समस्याओं को क्या बजट में वरीयता नहीं दी जानी चाहिए थी? 2 साल तक लाल फीताशाही ने पठानकोट हमले बारे समिति की रिपोर्ट को लटकाए क्यों रखा? अब अफसरशाही को कौन पूछे? 

जरूरतें अधिक और बजट कम: केन्द्र सरकार ने 2018-19 के लिए 2,95,511.41 करोड़ रुपए की राशि बजट के तौर पर निर्धारित की, जो वित्तीय वर्ष 2017-18 के 2,74,114.12 करोड़ के मुकाबले लगभग 7.81 प्रतिशत की मामूली वृद्धि है। यह सकल घरेलू उत्पादन (जी.डी.पी.) का लगभग 1.58 प्रतिशत हिस्सा ही बनता है। इस रक्षा बजट में से 99563.86 करोड़ रुपए की राशि सेना के आधुनिकीकरण और नए हथियारों की खरीदारी के लिए पूंजीगत प्रावधान के रूप में और 1,95,947.55 करोड़ रुपए की राशि वेतन, पैंशनों तथा अन्य अनेक प्रकार के चालू खर्चों के लिए रखी गई है। यहां यह बताना उचित होगा कि रक्षा के मामलों से संबंधित संसदीय समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए रक्षा बजट का आकार जी.डी.पी. के 2.25 प्रतिशत से 3 प्रतिशत के बीच होना चाहिए। ऐसा करने से ही हम देश के दुश्मनों को प्रभावी ढंग से नुक्सान पहुंचा सकते हैं। अब देखना यह है कि सुश्री निर्मला सीतारमण किस शैली में पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब देती हैं?-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों 

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