बजट 2022-23 : न काम, न कल्याण, केवल धन

punjabkesari.in Sunday, Feb 06, 2022 - 06:01 AM (IST)

जब से मैं समाजवाद के काल्पनिक सपने से बाहर आया हूं, मेरा मानना है कि एक प्रगतिशील, समृद्ध तथा एक बहुलतावादी राष्ट्र के निर्माण के लिए तीन चीजें चाहिएं : कार्य, कल्याण तथा धन। तीनों में से कोई भी अन्य दो के मुकाबले कम अथवा अधिक महत्वपूर्ण नहीं है। 

हालांकि निश्चित तौर पर इनके संदर्भ अलग हैं। गत 30 वर्षों में हमने 1991 (लगभग अभाव), 1997 (वैश्वीकरण), 2002-03 (सूखा), 2005-08 (वैश्विक सुधार), 2008 (अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संकट), 2012-13 (टेपर टैंट्रम), 2016-17 (नोटबंदी, सूखा) तथा 2020-22 (महामारी, मंदी) में हमने नाटकीय रूप से भिन्न आर्थिक संदर्भ देखे हैं। प्रत्येक संदर्भ के लिए एक अलग तथा सूक्ष्म प्रतिक्रिया की जरूरत है, विशेषकर बजट पेश करते हुए, लेकिन कार्य, कल्याण तथा धन को प्रोत्साहित करने के आधारभूत दर्शन में किसी बदलाव बारे नहीं सोचा गया। 

कार्य क्यों : हमारे पूर्वज होमो सैपियन्स को अब महज शिकारी तथा भोजन एकत्र करने वालों के तौर पर नहीं माना जाता। जैसे-जैसे उनकी आकांक्षाएं तथा जरूरतें बढ़ती गईं उन्होंने कार्य संस्कृति को अपनाया। आधुनिक काल में कार्य जीवन का एक अभिन्न अंग है। एक विकासशील अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण संकेतक 15 वर्ष तथा अधिक उम्र के व्यक्तियों की सं या है जो कार्यबल का निर्माण करते हैं। कार्यबल में एल.एफ.पी.आर. जनसं या का एक हिस्सा है जो वर्तमान में नौकरी पर है अथवा नौकरी की तलाश में है। भारत में वर्तमान सं याएं हैं, कार्यबल : 94 करोड़, एल.एफ.पी.आर. : 37.5 प्रतिशत, जो 52 करोड़ के बराबर बनता है। 

भारत जिस गंभीर आर्थिक चुनौती का सामना कर रहा है, एक युवा राष्ट्र जहां मध्यम आयु 28.43 वर्ष है, बेरोजगारी है। नरेन्द्र मोदी ने जब सत्ता के लिए दाव लगाया वह इसे समझते थे लेकिन वर्षों के दौरान ऐसा लगता है कि उनका दर्शन बदल गया है। एक वर्ष में 2 करोड़ नौकरियां पैदा करने के उनके वायदे ने युवाओं में एक जान फूंक दी थी। बाद में उन्होंने कहा कि पकौड़े बेचना भी एक नौकरी है। गत 7 वर्षों में बेरोजगारी बढ़ी है। महामारी तथा लॉकडाऊन की मार के चलते अधिक बेरोजगारी पैदा हुई है। 60 लाख एम.एस.एम.ईज बंद हो गए।  लाखों लोगों ने अपनी नौकरियां गंवा दीं जिनमें वेतनभोगी नौकरियां तथा गैर-नियमित नौकरियां शामिल थीं। स्व-रोजगार वाले लोगों (जैसे कि दर्जी, इलैक्ट्रीशियन, पल बर आदि) ने अपने काम खो दिए। इनमें से बहुत-सी नौकरियां बहाल नहीं हुई हैं। बेरोजगारी की वर्तमान दरें हैं, शहरी : 8 प्रतिशत, ग्रामीण 6 प्रतिशत। 

इसके अतिरिक्त जो लोग काम पर वापस लौटे हैं उनके वेतनों में कटौती की गई है।  गत 2 वर्षों में 84 प्रतिशत घरों को आय में कमी का सामना करना पड़ा है। इस पृष्ठभूमि में बजट में वायदा किया गया है कि अगले 5 वर्षों में 60 लाख नौकरियां पैदा की जाएंगी। प्रतिवर्ष 12 लाख नई नौकरियों के मुकाबले प्रतिवर्ष कार्यबल में शामिल होने वाले लोगों की सं या 47.5 लाख है। मेरा निष्कर्ष यह है कि बेरोजगारी बढ़ेगी, विशेषकर कम पढ़े-लिखे लोगों में। 

कल्याण क्यों : कल्याण एक व्यापक दृष्टांत है जिसमें कई पहलू शामिल हैं जैसे कि आजीविका, नौकरी, भोजन, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, आराम तथा मनोरंजन आदि। कल्याणकारी उपायों का उद्देश्य इन चुनौतियों का समाधान करना है। उदाहरण के लिए मनरेगा का उद्देश्य आजीविका की चुनौती का समाधान करना है, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून का उद्देश्य भोजन की चुनौती का समाधान, नि:शुल्क जन स्वास्थ्य सुविधाएं तथा स्वास्थ्य बीमा का स्वास्थ्य सेवा की चुनौतियों के समाधान के लिए, शिक्षा के अधिकार का कानून शिक्षा की चुनौती के समाधान के लिए आदि। बजट ने क्या किया है? आबंटनों पर जरा नजर डालें :

सबसिडी/आबंटन               2021-22                         2022-23
(करोड़ रुपयों में)
पैट्रोलियम                             6,517                          5,813
उर्वरक                          1,40,000                         1,05,000
भोजन                          2,86,219                           2,06,481
मिड-डे मील योजना           11,500                             10,233
फसल बीमा                     15,989                             15,500
मनरेगा                           98,000                             73,300
स्वास्थ्य                           85,915                              86,606
कुल सबसिडी बिल में विशालकाय 27 प्रतिशत की कटौती की गई है! 

बजट के संदेश हैं कि अत्यंत गरीब लोगों को नकद हस्तांतरण अथवा मुफ्त राशन नहीं, सामाजिक सुरक्षा पैंशनों में वृद्धि नहीं, कुपोषण, बौनेपन तथा थकान  से लडऩे के लिए कोई दखल नहीं, गत 2 वर्षों में स्कूली बच्चों को हुए जबरदस्त ‘शिक्षा के नुक्सान’ से पार पाने के लिए कोई दखलअंदाजी नहीं, मध्यम वर्ग को कोई कर राहत नहीं तथा उपभोक्ताओं को जी.एस.टी. से राहत नहीं। मेरा निष्कर्ष यह है कि कल्याण को दरकिनार कर दिया गया है। 

धन क्यों?
मैं धन बनाने का समर्थन करता हूं। धन नई पूंजी का स्रोत है तथा इसके साथ ही नए निवेश का भी। करों के बाद आय के बढऩे का परिणाम धन एकत्र होने के रूप में निकलेगा। आय तथा धन दोनों ही निवेश, जोखिम उठाने, इनोवेशन, शोध एवं विकास कार्य, चैरिटी तथा अन्य कार्यों को प्रोत्साहित करने वाले हैं। मेरा विरोध धन पैदा करने के लिए नहीं है लेकिन धन जमा करने से है जो समाज में असमानताएं और भी चौड़ी करता है। कुछ अध्ययनों के अनुसार भारत विश्व में सर्वाधिक असमानता वाले देशों में से एक है। एक ऐसा बजट जो पूंजी-सघन निवेश, उन्नत विज्ञान तथा तकनीक, डिजिटलीकरण तथा परिष्कृत ईको सिस्टम्स, तकनीक व मजदूरी जिसकी जरूरत लाखों गरीब लोगों के जीवन तथा आजीविका को बनाए रखने के लिए जरूरी है, के लिए बनाया गया है, गरीबों के लिए एक मजाक है। 

यदि गरीबों की मदद के लिए अधिक स्रोतों की जरूरत है तो सही दृष्टिकोण अमीरों के धन को नियंत्रित करना होगा। भारत में 142 लोग बहुत-बहुत अमीर हैं जिनके पास 53,00,000 करोड़ रुपए धन है तथा गरीबों की मदद के लिए स्रोतों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मेरा निष्कर्ष यह है कि यह बजट एक पूंजीवादी बजट है जिसने गरीबों को नजरअंदाज किया है। मीडिया तथा संसद के बीच जारी वाद-विवाद ने साधन स पन्न वर्गों तथा वंचित वर्गों के बीच गहरी खाई का खुलासा किया है। पूंजी बाजार संभवत: बजट को सलाम करे लेकिन गरीब तथा मध्यम वर्ग इस बजट को बनाने वालों को माफ नहीं करेंगे।-पी. चिदंबरम 
 


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