बजट 2021 : ‘न आशाएं’-‘न निराशाएं’

Sunday, Jan 31, 2021 - 05:06 AM (IST)

सरकार के लिए कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा। किसान आक्रोश में हैं और आंदोलन देश के अन्य भागों में फैल गया है। पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के किसान केंद्र सरकार तथा भाजपा से निराश हैं और वह इससे बुरी तरह से चोटिल हुए हैं।

चीन ने भी अपनी एड़ी ऊंची कर रखी है और भारतीय क्षेत्र को खाली करने से इंकार कर दिया है जिस पर उसके सुरक्षाबलों ने कब्जा कर रखा है। बजट को कम राजस्व और उच्च मांगों के साथ अत्यंत तनावपूर्ण परिस्थितियों में प्रस्तुत किया जा रहा है। राजग को उसके एक सहयोगी ने छोड़ दिया है जबकि वाई.एस.आर.सी.पी., टी.आर.एस., बीजद तथा बसपा ने विवादास्पद मुद्दों पर खुद को दूर कर रखा है। ट्रेजरी बैंच और विपक्ष के बीच अलगाव पूरा हो गया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के भाषण में कोई नया या कल्पनाशील एजैंडा नहीं दिखा। भाषण से पता चला कि सरकार पिछले शीशे को देख कर देश के भविष्य की तरफ देख रही थी। अगला अवसर 2021-22 का बजट है। 

आपदा से तबाही
मुझे उम्मीद है कि बजट पिछले बजट (2020-21 के लिए) के भाग्य को साझा नहीं करता है। वह बजट अपनी प्रस्तुति के कुछ हफ्तों बाद ही शुरू हुआ। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने खुद की गई कई घोषणाओं को अस्वीकार कर दिया।महामारी के बिना भी अर्थव्यवस्था 2018-19 की पहली तिमाही में नीचे की ओर बढ़ गई थी और 31 मार्च 2020 की समाप्ति तक 8 निरंतर तिमाहियों तक जारी थी। महामारी ने अर्थव्यवस्था को रसातल में धकेल दिया जो 2020-21 की पहली तिमाही में 23.9 प्रतिशत तथा दूसरी तिमाही में 7.5 प्रतिशत थी। वित्त मंत्री सीतारमण को 40 वर्षों में पहली मंदी की अध्यक्षता करने का गौरव प्राप्त है। अब यह मान लिया गया है कि वर्ष 2020-21 की समाप्ति नकारात्मक वृद्धि के साथ होगी। 

राजस्व लक्ष्य एक बड़े अंतर से छूट जाएगा। पूंजी निवेश प्रभावित होगा और राजस्व घाटा 5 प्रतिशत के निकट रहेगा। वास्तविक राजकोषीय घाटा 7 प्रतिशत को पार कर जाएगा। 2020-21 के बजट की शुरूआत में एक आपदा थी और वित्तीय वर्ष के अंत में एक तबाही होगी। वास्तविकता यह है कि अर्थव्यवस्था मंदी में है। वर्तमान बेरोजगारी दर उच्चतम स्तर पर है (ग्रामीण 9.2 प्रतिशत तथा शहरी 8.9 प्रतिशत),  किसान विरोधी कानूनों तथा प्रतिगामी आयात/निर्यात नीतियों ने कृषि विकास में बाधा उत्पन्न की है। 

‘के’ आकार की रिकवरी
देश में कोई भी ‘वी’ आकार की रिकवरी नहीं है। एक की खोज करना व्यर्थ होगा और एक की भविष्यवाणी करना घमंड होगा। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख अर्थशास्त्री डा. गीता गोपीनाथ ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2025 में कोविड पूर्व स्तरों पर पहुंच जाएगी। यदि किसी प्रकार की रिकवरी होती है तो यह अंग्रेजी के अक्षर ‘के’ से मिलती-जुलती होगी। कुछ अपनी आय तथा दौलत में वृद्धि देखेंगे जबकि ज्यादातर लोग दर्द को महसूस करेंगे तथा आर्थिक नुक्सान उठाएंगे। ऑक्सफैम के ‘असमानता वायरस’ शीर्षक के तहत एक अध्ययन में सामने आया है कि वास्तव में महामारी प्रभावित वर्ष (2020-21) में ऐसा ही हुआ था। 

मैं बजट से आशा नहीं करना चाहता। स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में निवेश में वृद्धि तथा रक्षा व्यय में वृद्धि के लिए एक सार्वभौमिक मांग है और मैं उस मांग का समर्थन करता हूं। वित्त मंत्री 2 बातों के तहत अधिक धन प्रदान कर सकती हैं। अन्यथा मुझे इस सरकार से कोई उम्मीद नहीं है और न ही इससे निराश हूं। पूर्व में वे अच्छी सलाह के लिए असाधारण रूप से आज्ञाकारी और अभेद्य रही हैं। मैंने उनके दृष्टिकोण या व्यवहार में कोई बदलाव नहीं देखा। मैं अपनी इच्छा सूची को इस ज्ञान में सुरक्षित करूंगा कि उन्हें सरकार द्वारा अनदेखा कर दिया जाएगा। कुछ सुझावों को स्वीकार न किए जाने की स्थिति में मेरी बातों को निश्चित रूप से स्वीकार नहीं किया जाएगा। 

मेरी इच्छा सूची
यह मेरी सूची है और मैंने इसे जानबूझ कर 10 तक सीमित कर दिया है। 
1. अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा राजकोषीय प्रोत्साहन लागू करें भले ही यह बेलगाम हो। 
2. 6 महीनों की अवधि के लिए अर्थव्यवस्था के निचले भाग में 30 प्रतिशत परिवारों को सीधे नकद हस्तांतरण करें और बाद में स्थिति की समीक्षा करें। 
3. मंदी से पूर्व की स्थिति पर पहुंचने और खोई हुई नौकरियों को वापस लाने के लिए एम.एस.एम.ईज. के लिए एक बचाव योजना तैयार करें।
4. पैट्रोल और डीजल पर कर की दरों विशेष रूप से जी.एस.टी. दरों और अपंग करों को कम करें। 

5. सरकार के पूंजीगत व्यय में वृद्धि की जाए। वर्तमान वर्ष में केंद्र और राज्य सरकारों का पूंजीगत व्यय बजटीय राशियों के मुकाबले बहुत कम हो रहा है। 
6. उधार बढ़ाना होगा इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को तत्काल पुन: पूंजीकृत किया जाए और उन्हें इस डर के बिना ऋण देने के लिए प्रोत्साहित करें कि हर ऋण की जांच एजैंसियों द्वारा की जाएगी। 
7. संरक्षणवाद पुराना और गलत है। संरक्षणवाद ने भारतीय उद्योग को चोट पहुंचाई है। विकासशील देशों में एक वर्तमान खाता अधिशेष उत्सव मनाने का विषय नहीं है। आयात के खिलाफ पक्षपात त्याग दो। विश्व से फिर जुड़ जाओ तथा द्विपक्षीय व्यापार समझौते में प्रवेश किया जाए। 

8. संचार, ऊर्जा, निर्माण, खनन, उड्डयन तथा पर्यटन यात्रा एवं हॉस्पिटैलिटी जैसे क्षेत्रों के लिए विशेष पुनर्निर्माण पैकेज दिए जाएं।
9. कर कानूनों की समीक्षा तथा संशोधन किया जाए जिन्हें विशेष तौर पर टैक्स टैरारिज्म के रूप में देखा जाता है। 
10. विभिन्न नियामक इकाईयों द्वारा नियमों की समीक्षा की जाए तथा नियमों पर प्रभावों को सही किया जाए। क्योंकि मुझे कोई आशाएं नहीं हैं इसलिए मैं एक फरवरी को निराश होने के लिए तैयार हूं।-पी. चिदम्बरम

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