बृजभूषण शरण सिंह : एक विवादास्पद ‘बाहुबली’

Tuesday, Jun 06, 2023 - 05:19 AM (IST)

19 मई को उत्तर प्रदेश के कैसरगंज से भाजपा सांसद और भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यू.एफ.आई.) प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह ने 5 जून में अयोध्या के रामकथा पार्क में एक ‘जनचेतना महारैली’ का आयोजन करने की अपनी योजना की घोषणा की थी। कुछ ही घंटों में गोंडा, बहराइच, बलरामपुर, श्रावस्ती तथा अयोध्या और बाराबंकी के अन्य पड़ोसी जिलों में सिंह के बड़े-बड़े पोस्टर दिखाई दिए। शरण पर 2 एफ.आई.आर. दर्ज हैं जिनमें से एक पोक्सो एक्ट  के अंतर्गत दर्ज है। उन पर आरोप है कि उन्होंने महिला पहलवानों का कथित तौर पर यौन उत्पीडऩ किया। 

लगाए गए पोस्टरों में शरण के सभी समर्थकों को रैली में शामिल होने का न्यौता दिया गया है। पोस्टरों में उन्होंने कुछ पार्टियों द्वारा प्रोत्साहित संकीर्णवाद, क्षेत्रवाद तथा जातीय संघर्षों   के दुष्चक्रों को तोडऩे का आह्वान किया है। बृजभूषण ने अपने लोगों से समर्थन जुटाने के लिए यात्राएं कीं। उन्होंने हैलीकाप्टर के माध्यम से अपने समर्थकों की 30 बैठकों में भाग लिया और उनसे कहा कि वह बेकसूर हैं। इन बैठकों में बड़ी मात्रा में उनके समर्थक जुटे जिससे यह प्रतीत हुआ कि लोगों में उनकी कितनी पैठ है। 

8 जनवरी 1957 को गोंडा के एक गांव में एक समृद्ध राजपूत परिवार में बृजभूषण का जन्म हुआ। बृजभूषण सिंह के दादा कांग्रेस के विधायक थे। बृजभूषण ने अयोध्या के साकेत पी.जी. कालेज से अपनी शिक्षा पूरी की। यहां पर उन्होंने छात्र राजनीति में बढ़-चढ़कर भाग लिया और उसके बाद 1970 के दशक में कांग्रेस के युवा विंग में शामिल हुए। बृजभूषण उत्तर प्रदेश के राजनीतिक माहौल से भली-भांति परिचित थे। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा और 1980 के दशक के अंत में हिन्दी भाषायी क्षेत्रों में एक प्रभावशाली नेता बने। अयोध्या में अपने छात्र जीवन के दौरान बृजभूषण ने राम मंदिर आंदोलन में भाग लिया और  भगवा पार्टी का एक स्थानीय चेहरा बनकर उभरे। 1991 में गोंडा से भाजपा के टिकट पर लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए और उसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 

घटनापूर्ण दशक : 1990 का दशक देश और बृजभूषण शरण सिंह के लिए घटनापूर्ण रहा। बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में बृजभूषण आरोपी बने तथा टाडा के अंतर्गत उन पर आरोप लगे जिसके चलते 1996 में गोंडा से लोकसभा चुनाव के लिए उनकी पत्नी केतकी देवी सिंह को चुनाव लडऩा पड़ा। 1993 में राजपूत बाहुबली नेता बृजभूषण शरण सिंह पर यू.पी. के एक पूर्व मंत्री तथा एक अन्य ताकतवर व्यक्ति पर हमला करने का आरोप लगा। इसके बाद ज्यादातर इन मामलों में शरण बरी हो गए। 2004 के लोकसभा चुनावों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का किसी समय निर्वाचन क्षेत्र रहे बलरामपुर से शरण निर्वाचित हुए। एक पारिवारिक त्रासदी में शरण सिंह के बड़े बेटे शक्ति शरण ने अपने पिता की लाइसैंसी रिवाल्वर से आत्महत्या कर ली। उसने अपने पीछे एक पत्र छोड़ा जिसमें लिखा था कि ‘‘आपने खुद को एक बेहतर पिता साबित नहीं किया। आपने हमारी अच्छी तरह से देखभाल नहीं की।’’ 

इस घटना ने सांसद बृजभूषण का जीवन बदल दिया। उनसे जुड़े लोगों का कहना है कि बृजभूषण तब से अपनी छवि को बदलने की कोशिश करते रहे और शायद ही उन्होंने किसी को  परेशान किया। 2009 में बृजभूषण ने समाजवादी पार्टी में शामिल होना तय किया और भाजपा पर आरोप लगाया कि पार्टी ने उनका तिरस्कार किया है। समाजवादी पार्टी के लिए बृजभूषण एक पुरस्कार की तरह साबित हुए और उन्होंने उसी वर्ष कैसरगंज सीट जीत ली। 2014 के चुनावों से पूर्व बृजभूषण फिर से भाजपा में लौट आए और कसम खाई कि वह कभी भी भाजपा को नहीं छोड़ेंगे। इस वर्ष जनवरी में जब से  सिंह के खिलाफ पहलवानों और खाप पंचायतों तथा हरियाणा के भीतरी इलाकों से संबंधित किसानों ने प्रदर्शन शुरू किए तब से बाहुबली नेता दबाव में हैं। मगर विभिन्न राजपूत समुदायों से संबंधित संगठनों ने उनका समर्थन किया है और पहलवानों के प्रदर्शन को अनैतिक करार दिया है। 

केवल उत्तर प्रदेश के राजपूत ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों के राजपूत संगठन भी सिंह के समर्थन में आगे आए हैं और बैठकें की हैं जिनमें उन्होंने 6 बार के सांसद बृजभूषण के साथ सहानुभूति जताई है। आरोपों और प्रदर्शनों के बावजूद बृजभूषण सिंह अडिग दिखाई दे रहे हैं। 29 मई को बाराबंकी की एक सार्वजनिक बैठक में उन्होंने कहा, ‘‘यदि एक भी आरोप मेरे खिलाफ साबित हुआ  तो मैं अपने आप को फांसी लगा लूंगा।’’-मयंक कुमार

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