किसान व सरकार दोनों अहं त्याग मध्यवर्ती मार्ग अपनाएं

Wednesday, Oct 06, 2021 - 04:03 AM (IST)

हिंसा से कभी किसी का भला नहीं होता। यह बात सत्य है किंतु जब हमारे नेतागणों की बात आती है तो सच्ची नहीं होती क्योंकि जब हिंसा होती है तो वे आनंदित होते हैं और सरकार को घेरने के लिए बड़ा तमाशा करते हैं। उल्टा-पुल्टा उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष के आरंभ में चुनाव होने हैं तो लखीमपुर खीरी में किसानों के आंदोलन में 4 किसान और 4 अन्य लोग हिंसा में मारे गए क्योंकि कथित रूप से एक मंत्री का काफिला वहां से गुजर रहा था जो टकराव का कारण बना। 

विपक्ष को भाजपा की योगी सरकार को घेरने का यह एक अच्छा अवसर मिला ताकि वे आग में घी डालने का काम कर सकें। नेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। विभिन्न दलों के नेताओं में तू-तू, मैं-मैं देखने को मिल रही है और किसानों, नागरिकों के गुस्से और भावनाओं को भुनाने का प्रयास कर रहे हैं तथा ये सब कुछ इस आशा से किया जा रहा है जिससे लोगों का उनकी ओर ध्यान जाएगा और उन्हें वोट मिलेंगे। इन आरोपों को एक राजनीतिक दिखावा बताते हुए योगी प्रशासन ने मृतक किसानों के परिवारों को 45 लाख रुपए का मुआवजा तथा रोजगार देने तथा घायलों को 10 लाख रुपए देने का वायदा किया। मंत्री के पुत्र के विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई। उच्चतम न्यायालय ने भी किसान संगठनों की ङ्क्षखचाई की कि उन्होंने दिल्ली का गला घोंट रखा है और वे कृषि कानूनों के विरुद्ध  चल रहे आंदोलन में राजमार्गों को बाधित कर रहे हैं। 

न्यायालय ने कहा अब यह मामला न्याय निर्णयाधीन है और कानून के लागू होने पर रोक लगा दी गई है। सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह उन्हें लागू नहीं करेगी, फिर यह आंदोलन किस बात के लिए। आंदोलन में हिंसा फैलने और उसके कारण मौत तथा संपत्ति का नुक्सान होने पर दुख जताते हुए न्यायालय ने कहा कि कोई भी इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता। न्यायालय ने इस बात पर निर्णय करने का फैसला किया कि क्या विरोध प्रद्रर्शन का अधिकार एक परम अधिकार है? इसके अलावा क्या किसान संगठन तीन कृषि कानूनों की वैधता के बारे में विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं, जब यह मामला पहले ही न्याय निर्णयाधीन है। हमारे नेताओं से ऐसी अपेक्षा भी क्यों की जाए जिन्हें जिम्मेदारी न लेने तथा दोषारोपण करने में महारत हासिल है। विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, ‘‘लखीमपुर खीरी की घटना को कुछ दिनों में लोग भूल जाएंगे। फिर कोई नया मुद्दा उठाया जाएगा।’’ यह इस बात का प्रमाण है कि हमारे नेतागणों के लिए आम आदमी केवल एक संख्या है। 

नैतिक पतन के इस दौर में अब वह समय नहीं रह गया जब शास्त्री जी ने एक रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। आज इसके विपरीत देखने को मिलता है। नेता लोग कहते हैं-मैं एक मंत्री हूं, इसका तात्पर्य यह नहीं कि मैं छोटी-मोटी घटनाओं या दुर्घटना को लेकर त्यागपत्र दे दूूं। इसके अलावा जिस नेता पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया जाता है वह कहता है संविधान में नागरिकों के लिए ऐसा कहां लिखा है कि वे केवल सच बोलें। क्या इसका तात्पर्य यह है कि हम झूठ बोलते हैं? चोर-चोर मौसेरे भाई के इस राजनीतिक वातावरण में नेतागण एक-दूसरे की मदद करते हैं और हर कोई शासन, सांप्रदायिक सौहार्द, जातीय भाईचारा की अपनी परिभाषा देता है। क्या विपक्ष वास्तव में चाहता है कि कृषि कानूनों को रद्द किया जाए? ऐसा नहीं लगता, वह केवल दिखावा कर रहा है। 

किसानों ने मोदी सरकार के समक्ष 8 मांगें रखी थीं। उच्चतम न्यायालय ने जनवरी में कृषि कानूनों के कार्यान्वयन को रोक दिया था, जिसके बाद सरकार ने 18 महीने के लिए इन कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी। किसानों की कुछ मांगों को पहले ही पूरा कर दिया गया है। फिर किसान इन कानूनों का विरोध क्यों कर रहे हैं और इस मुद्दे का वार्ता द्वारा समाधान से पीछे क्यों हट रहे हैं? साथ ही सरकार आंदोलनकारियों को आंदोलन जारी रखने की अनुमति क्यों दे रही है और इन कानूनों को रद्द क्यों नहीं कर रही? 

स्थिति में सुधार के लिए अभी विलंब नहीं हुआ है। किसानों और सरकार दोनों को इसे अहं का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए और सभी पक्षों में सद्भावना पैदा करने के लिए मध्यवर्ती मार्ग अपनाना चाहिए। किसानों की शिकायतें वास्तविक हो सकती हैं किंतु सरकार से बातें मनवाने का यह तरीका नहीं हो सकता। अडिय़ल रुख अपनाने से स्पष्ट है कि वे सरकार को धूल चटाना चाहते हैं न कि अपनी समस्याओं का कोई समाधान ढूंढना। स्पष्ट है कि कोई भी सरकार ब्लैकमेलिंग को नहीं सहेगी और न ही माई-वे या हाईवे की नीति अपनाएगी क्योंकि इससे अनेक लॉबी और निकाय सरकार की शक्ति को चुनौती देते हुए उसे ब्लैकमेल कर सकते हैं। विपक्ष मौके का फायदा उठाना चाहता है, किंतु सरकार को भी आत्मावलोकन करना चाहिए। समय आ गया है कि सत्ता की लालसा के लिए इस राजनीतिक नौटंकी को समाप्त किया जाए। सच्चाई छिपनी नहीं चाहिए। बहुत हो चुका है।-पूनम आई. कौशिश 
 

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