आई.टी. नियमों पर बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत

punjabkesari.in Thursday, Sep 26, 2024 - 05:30 AM (IST)

लोकतंत्र के लिए दुखद होता है जब सरकार न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद की भूमिका निभाने की कोशिश करती है। इलैक्ट्रॉनिक्स और आई.टी. मंत्रालय (MEITY) ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2023 (आई.टी. नियम, 2023) बनाते समय यही करने की कोशिश की थी। संशोधित नियमों ने केंद्र सरकार की एक तथ्य जांच इकाई (एफ.सी.यू.) को ‘केंद्र सरकार के किसी भी व्यवसाय’ के संबंध में ‘नकली या झूठी या भ्रामक जानकारी’ की पहचान करने के लिए अधिकृत किया। इकाई को सरकारी अधिकारियों और मंत्रालयों के बारे में किसी भी ऑनलाइन टिप्पणी, समाचार रिपोर्ट या राय की जांच करने और फिर सैंसरशिप के लिए ऑनलाइन मध्यस्थों को सूचित करने के लिए अधिकृत किया गया था। 

संशोधन ने तथ्य जांच इकाई को ‘केंद्र सरकार के किसी भी व्यवसाय’ से संबंधित किसी भी ऑनलाइन सामग्री को वर्गीकृत करने और हटाने का अधिकार दिया, जिसे ‘नकली, गलत या भ्रामक’ माना जाता है। संशोधित नियमों के अनुसार, ‘एक्स’ (जिसे पहले ट्विटर कहा जाता था), ‘इंस्टाग्राम’ और ‘फेसबुक’ जैसे सोशल मीडिया बिचौलियों को या तो कंटैंट हटाना होगा या सरकार के एफ.सी.यू. द्वारा उनके प्लेटफॉर्म पर कंटैंट की पहचान करने के बाद डिस्क्लेमर जोडऩा होगा। नियमों में यह परिभाषित नहीं किया गया कि ‘फर्जी या झूठी या भ्रामक’ जानकारी क्या होती है, न ही उन्होंने ‘तथ्य जांच इकाई’ के लिए योग्यता या सुनवाई प्रक्रियाओं को निर्दिष्ट किया। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि नए नियमों को शुरू में 2 जनवरी, 2023 को एक मसौदे के रूप में जारी किया गया था और इसमें केवल ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों को विनियमित करने के प्रावधान थे। हालांकि, परामर्श की समय सीमा से कुछ घंटे पहले, मंत्रालय ने एक नया मसौदा प्रकाशित किया जिसमें सोशल मीडिया सामग्री तक विस्तारित तथ्य-जांच शक्तियां शामिल थीं। संशोधित नियमों को चुनौती दी गई और एडिटर्स गिल्ड जैसे कई संगठनों ने इसे वापस लेने का आग्रह करते हुए एक बयान जारी किया। 

गिल्ड ने कहा कि मंत्रालय ने बिना किसी सार्थक परामर्श के, जिसका उसने वायदा किया था संशोधन को अधिसूचित कर दिया था। इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी ने बताया कि संशोधन सरकार को अपने कार्यों की किसी भी आलोचना को प्रतिबंधित करने की अनुमति देगा। हास्य कलाकार कुणाल कामरा, जिन्होंने मूल रूप से संशोधित नियमों के खिलाफ याचिका दायर की थी, ने कहा था कि वह एक राजनीतिक व्यंग्यकार हैं जो अपनी सामग्री सांझा करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर निर्भर हैं और नियम ‘उनकी सामग्री पर मनमाने ढंग से सैंसरशिप’ की ओर ले जा सकते हैं क्योंकि इसे ब्लॉक किया जा सकता है, हटाया जा सकता है या उनके सोशल मीडिया अकाऊंट को निलंबित या निष्क्रिय किया जा सकता है। 

बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस अतुल एस चंदुरकर ने अब संशोधित आई.टी. नियमों को ‘असंवैधानिक’ करार दिया है। उनका फैसला इस साल जनवरी में 2 जजों की खंडपीठ द्वारा संशोधित नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विभाजित फैसले के बाद आया है। संशोधित नियमों को खारिज करते हुए, न्यायमूॢत चंदुरकर ने कहा कि ‘नकली, झूठी या भ्रामक’  अभिव्यक्तियां ‘अस्पष्ट और अति व्यापक’ थीं, और  ‘आनुपातिकता का परीक्षण’ संतुष्ट नहीं था। 

उन्होंने कहा कि यह भी ‘राज्य की जिम्मेदारी नहीं है कि वह सुनिश्चित करे कि नागरिक केवल ‘सूचना’ के हकदार हैं जो एफ.सी.यू. द्वारा पहचानी गई नकली, झूठी या भ्रामक नहीं है। न्यायाधीश ने कहा कि आरोपित नियम  अनुच्छेद 19 (1) (ए) (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) के तहत मौलिक अधिकार को प्रतिबंधित करने का प्रयास करता है, जो अनुच्छेद 19 (2) के तहत दिए गए उचित प्रतिबंधों के अनुसार नहीं हैं। 

न्यायमूर्ति चंदुरकर द्वारा उठाया गया एक अन्य महत्वपूर्ण बिंदू यह था कि यह निर्धारित करने के लिए ‘कोई आधार या तर्क’ नहीं था कि केंद्र सरकार के व्यवसाय से संबंधित जानकारी डिजिटल रूप में होने पर नकली या झूठी है, जबकि समान जानकारी पिं्रट होने पर समान अभ्यास नहीं किया जाता है। न्यायमूर्ति चंदुरकर ने फैसला सुनाया कि केंद्र का दावा है कि एफ.सी.यू. द्वारा दिए गए निर्णयों को संवैधानिक न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जा सकती है ‘इसे पर्याप्त सुरक्षा के रूप में नहीं माना जा सकता’। 

न्यायाधीश ने कहा कि ‘आक्षेपित नियम को कम करके या इसके संचालन को सीमित करने की कोई रियायत देकर बचाया नहीं जा सकता’। नियमों में सैंसरशिप की बू आती है और सरकारी कर्मचारियों को यह तय करने के लिए सामग्री की जांच करने का अधिकार दिया गया है कि यह गलत है या नहीं और यह सरकार के खिलाफ है या नहीं। कोई भी सरकार अपनी आलोचना पसंद नहीं करती है और भारत में तो और भी ज्यादा, जहां सरकार का एक वर्ग सोचता है कि सरकार की कोई भी आलोचना राष्ट्र की आलोचना के बराबर है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक बार फिर न्यायपालिका को सलाम।-विपिन पब्बी


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