रक्तदान करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपयोगी, जरूरी एवं लाभकारी

punjabkesari.in Friday, Jun 14, 2024 - 05:29 AM (IST)

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) ने 1997 में 100 प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान की नीति बनाई और यह लक्ष्य निर्धारित किया था कि विश्व के प्रमुख 124 देशों में स्वैच्छिक रक्तदान को समर्थन और बढ़ावा दिया जाएगा। तब से ही लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करने एवं रक्तदाताआें के प्रति आभार प्रकट करने के लिए दुनिया भर में प्रति वर्ष 14 जून को ‘विश्व रक्तदाता दिवस’ मनाया जाता है। स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देने के पीछे डब्ल्यू.एच.ओ. का उद्देश्य यह था कि आपात स्थितियों में जरूरतमंद व्यक्तियों को बिना भुगतान किए तथा आसानी से रक्त की आपूर्ति करना संभव हो सके, ताकि खून की कमी के कारण किसी व्यक्ति की जान न जाए।

देखा जाए तो मानवीय दृष्टिकोण से विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह कदम बेहद सराहनीय था, किंतु दुर्भाग्य से इस पवित्र अभियान के साथ आज तक लगभग 49 देश ही जुड़ पाए हैं। बहरहाल, खुशी की बात यह है कि नेपाल एवं तंजानिया जैसे छोटे एवं सीमित संसाधनों वाले देशों में कुल जरूरत का लगभग 90 एवं 80 प्रतिशत रक्त स्वैच्छिक रक्तदान से ही पूरा होता है। वहीं, थाईलैंड एवं इंडोनेशिया जैसे छोटे से देशों में क्रमश: 95 फीसदी एवं 77 फीसदी रक्त की व्यवस्था स्वैच्छिक रक्तदान के द्वारा की जाती है। 

इनके अलावा श्रीलंका में 60 प्रतिशत तथा निरंकुश शासन के लिए चॢचत म्यांमार में भी कुल जरूरत का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा स्वैच्छिक रक्तदान से ही पूरा होता है। आस्ट्रेलिया, ब्राजील तथा कुछ अन्य देशों में भी लगभग यही स्थिति है, जबकि डब्ल्यू.एच.ओ. के मानक के अनुरूप भारत में साल भर के लिए आवश्यक एक करोड़ यूनिट रक्त स्वैच्छिक रक्तदान के द्वारा हम नहीं जुटा पाते हैं। आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग 25 लाख यूनिट रक्त के अभाव में प्रत्येक वर्ष हजारों लोग अपनी जान गंवा देते हैं।

राजधानी दिल्ली में ही हर साल 350 लाख रक्त यूनिट की आवश्यकता पड़ती है, जबकि स्वैच्छिक रक्तदान के द्वारा इसका महज 32 प्रतिशत हिस्सा ही जुट पाता है। बता दें कि दिल्ली में लगभग 53 ब्लड बैंक होने के बावजूद वहां 1 लाख यूनिट रक्त की कमी है। जरा सोचिए कि जब देश की राजधानी दिल्ली का यह हाल है तो शेष भारत विशेष कर छोटे शहरों और गांवों की स्थिति क्या होगी। बहरहाल, देश भर के रक्त कोषों (ब्लड बैंकों) में रक्त के अभाव का यह मामला बेहद चिंताजनक है और इसका प्रमुख कारण रक्तदान के प्रति जन-जागरूकता का अभाव है।

अन्यथा कोई कारण नहीं है कि लगभग एक अरब 40 करोड़ की जनसंख्या वाले हमारे देश में रक्तदाताओं का आंकड़ा आज तक कुल आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं हो पाया है। देखा जाए तो भारत में लगभग 6 वर्ष पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने रक्तदान से संबंधित कुछ नियम और शर्तें निर्धारित की थीं, जिनमें पहली बार रक्तदान के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 17 से बढ़ाकर 18 वर्ष एवं अधिकतम आयु सीमा 65 वर्ष तय की गई थी। नए नियमों के अंतर्गत जेल में बंद व्यक्ति अब रक्तदान नहीं कर सकेगा। वहीं, पुरुषों के लिए 90 दिन बाद दोबारा रक्तदान करने का नियम बनाया गया है, जबकि पहले यह अवधि 4 महीने यानी 120 दिन की थी। नए नियम के अनुसार जिस व्यक्ति का हीमोग्लोबिन 12$ 5 से ज्यादा होगा, वही रक्तदान कर सकेगा। 

साथ ही ट्रांसजैंडर, होमोसैक्सुअल एवं फीमेल सैक्स वर्कर्स आदि बिना पूर्व चिकित्सकीय जांच के अब रक्तदान नहीं कर सकेंगे। इसी प्रकार रक्तदान करने की इच्छुक महिलाओं के लिए भी व्यापक नियम एवं शर्तें निर्धारित की गई हैं यथा-गर्भावस्था, माहवारी एवं स्तनपान के समय रक्तदान करने के नियम स्पष्ट किए गए हैं। इनके अतिरिक्त कोई भी विदेशी नागरिक भारत में केवल तभी रक्तदान कर सकता है, जब अन्य मापदंडों पर खरे उतरने के साथ-साथ वह 3 साल से यहां रह रहा हो। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रत्येक वर्ष दुनिया भर में 11,74,000,00 यूनिट रक्त दान के जरिए एकत्र किया जाता है। जाहिर है कि रक्तदान करना अत्यंत जरूरी है। इनके अलावा रक्तदान करने के लाभ भी बहुत हैं यथा-रक्तदान करने से पूर्व चिकित्सकों द्वारा रक्तदाताओं के शरीर के वजन, रक्तचाप, हीमोग्लोबिन, मलेरिया, एच.बी.एस.ए.जी., एच.सी.वी., वी.डी.आर.एल. आदि जैसी प्रमुख जांचें नि:शुल्क की जाती हैं। -चेतनादित्य आलोक


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