सिखों का विश्वास जीतने के लिए भाजपा को बहुत कुछ करना होगा
punjabkesari.in Friday, Dec 01, 2023 - 05:06 AM (IST)

भारत की आजादी के 75 वर्षों में दो ही प्रमुख पार्टियों कांग्रेस तथा भाजपा ने ही अधिकतर समय केंद्र में शासन किया है। मगर कई कारणों से सिख भाईचारा दोनों ही प्रमुख पार्टियों की सरकारों की सिखों के प्रति कारगुजारी से खुश नहीं है। यदि कांग्रेस की बात करें तो उसके द्वारा देश के आजाद होने के बाद लिए गए फैसलों ने सिखों में भारी नाराजगी पैदा की, जिस कारण सिखों के प्रतिनिधि सियासी पार्टी अकाली दल को कई बार कांग्रेस सरकार के खिलाफ मोर्चे लगाने पड़े। दरबार साहिब पर सैन्य कारवाई तथा इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली तथा अन्य स्थानों पर सिखों के कत्लेआम के कारण सिखों की एक बड़ी गिनती ने खुद को कांग्रेस से बहुत दूर कर लिया था। दूसरी ओर भाजपा ने कांग्रेस की तरह सिखों के साथ कोई ज्यादती नहीं की। मगर कभी-कभार पार्टी के कुछ नेताओं की बयानबाजी तथा केंद्र सरकार द्वारा किए गए फैसले सिखों में भाजपा के प्रति नाराजगी पैदा कर रहे हैं।
भाजपा ने सिख भाईचारे को अपने साथ जोडऩे के लिए उनके हक में कई फैसले किए, जिनमें श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर बनाना, छोटे साहिबजादों की याद में सरकारी तौर पर वीर बाल दिवस मनाने की शुरूआत करना, श्री गुरु तेग बहादुर जी का प्रकाश पर्व लाल किले पर मनाना, 312 सिखों की काली सूची खत्म करना, दरबार साहिब अमृतसर के लंगर पर जी.एस.टी. खत्म करना तथा अफगानिस्तान से श्री गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूप आदर-सत्कार से भारत वापस लेकर आना आदि शामिल हैं। मगर हैरानी वाली बात है कि सिखों के लिए ऐसे सकारात्मक फैसलों के बावजूद सिखों की एक बड़ी संख्या भाजपा को सिख विरोधी ही मान रही है।
भाजपा की सिखों में ऐसी छवि बनने के जरूर कुछ कारण हैं जिनमें भाजपा नेताओं की बयानबाजी सबसे अधिक असर करती है, बेशक यह पार्टी की नीतियों से मेल नहीं खाती। इसके अतिरिक्त सिखों के हक में किए जाने वाले फैसले लेते समय उनके धार्मिक, राजनीतिक तथा सामाजिक नेताओं के साथ चर्चा की कमी भी एक कारण बनती है, जिसका उदाहरण वीर बाल दिवस है। यह एक बहुत बड़ा फैसला था और सभी सिखों की मांग थी मगर चर्चा की कमी के कारण केवल नाम की सहमति न होने के कारण इस निर्णय का अधिक प्रभाव नहीं पड़ सका। अभी-अभी सुप्रीम कोर्ट द्वारा भेजे गए नामों में से हाईकोर्ट में 2 सिख जजों की नियुक्ति को स्वीकृति न देने से भी सिखों में भाजपा के लिए संदेह बढ़ा है। प्रधानमंत्री द्वारा सिखों की मांगें जानने के लिए कई बार सिख नेताओं के साथ बैठकें भी की गईं परन्तु उनका भी कोई खास लाभ नहीं मिल सका क्योंकि इन बैठकों में सही प्रतिनिधियों को शामिल नहीं किया गया और न ही उनके द्वारा सिखों की असल मांगें प्रधानमंत्री के सामने रखी गईं।
धार्मिक झगड़े निपटाने के लिए पंजाब पुलिस को विशेष ट्रेङ्क्षनग की जरूरत : कपूरथला जिले में सुल्तानपुर लोधी के एक गुरुद्वारा श्री अकाल बुंगा पर कब्जे के लिए निहंग सिखों के ग्रुपों में चल रहे झगड़े के बीच पुलिस कार्रवाई के दौरान एक होमगार्ड की मौत की खबर ने पंजाब पुलिस की कारगुजारी के तरीकों पर एक प्रश्रचिन्ह लगा दिया। इस घटना के बाद यह प्रश्र भी उठ रहा है कि पुलिस को धार्मिक झगड़ों से निपटने के लिए किसी विशेष किस्म की ट्रेनिंग की जरूरत है। पुलिस के पास मंगलवार से इस घटना की जानकारी थी तथा बुधवार की रात को पुलिस ने इस स्थान पर घेराबंदी कर ली थी। यह समझ से बाहर है कि वीरवार तड़के ऐसा क्या हुआ कि पुलिस को अचानक यह स्थान निहंग सिखों के एक ग्रुप से खाली करवाने की कार्रवाई करनी पड़ी और नौबत आंसू गैस से लेकर गोलियां चलने तक पहुंच गई। इससे पहले भी पुलिस अमृतपाल सिंह की गिरफ्तारी के मौके सही फैसला नहीं ले सकी थी।जब अमृतपाल सिंह अपने घर में था तो पुलिस ने उसे घर से गिरफ्तार करने की बजाय दिन-दिहाड़े सड़क पर गिरफ्तार करने के लिए नाकेबंदी की। मगर वह पुलिस के सामने ही गायब हो गया था। इस सबसे सबक सीखने की बजाय पंजाब पुलिस एक बार फिर सही निर्णय लेने में नाकाम रही।
होमगार्ड जवान को एक करोड़ तो बेलदार को झुनझुना क्यों : गत दिवस निहंग सिखों व पुलिस में गोलीबारी के दौरान होमगार्ड की मौत पर दुख जताते पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने उसके परिवार को पंजाब सरकार की ओर से एक करोड़ रुपए की सहायता देने की घोषणा की। उसी दिन एक अन्य दर्दनाक घटना में पंजाब सरकार के खनन विभाग में बेलदार के तौर पर तैनात सुखदेव सिंह उर्फ दर्शन सिंह की अपनी ड्यूटी निभाते हुए खनन माफिया के हाथों जान चली गई थी। मगर सरकार द्वारा उसके लिए किसी सहायता राशि की घोषणा नहीं की गई। सरकार को बेलदार सुखदेव सिंह की बहादुरी को किसी भी तरह पंजाब पुलिस के होमगार्ड से कम नहीं समझना चाहिए। बेलदार को भी सहायता राशि देनी चाहिए, ताकि खनन विभाग के कर्मचारी रेत माफिया के विरुद्ध डटकर जंग लड़ सकें। चाहे इसके लिए सरकार को नियमों में बदलाव ही क्यों न करना पड़े।-इकबाल सिंह चन्नी