भाजपा का ‘मोदी का परिवार’ अभियान

Wednesday, Mar 06, 2024 - 04:33 AM (IST)

सोशल मीडिया को जानने वालों की मानें तो ‘मोदी का परिवार’ अभी ट्रैंड कर रहा है। ट्रैंड कर रहा है मतलब, सोशल मीडिया की चर्चा में पहले नंबर पर आ गया है। संघ परिवार के समर्थकों की यह स्थापित क्षमता बन गई है कि वे जब जो जरूरी लगे, उसे ट्रैंड करा लेते हैं। संघ परिवार ही क्यों, उनके विरोधी भी कई बार किसी मुद्दे पर अपने नारे या अभियान को ट्रैंड करा लेते हैं। कई चैनलों की हैडलाइन भी ट्रैंड करती है। मगर सोशल मीडिया की इस लड़ाई में मोदी भक्तों का ऊपरी हाथ देखते हुए हैरानी नहीं कि मोदी परिवार का यह अभियान बहुत जल्दी सबसे ऊपर आ गया। केंद्र के मंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री से लेकर भाजपा के शीर्षस्थ पदाधिकारी जब अभियान में लगें तो इसकी सफलता पर कौन शक करेगा। 

जाहिर तौर पर लालू प्रसाद यादव द्वारा पटना की जनविश्वास रैली में की गई टिप्पणियों की प्रतिक्रिया में चला यह अभियान चुनावी लड़ाई का भी हिस्सा है, इसमें भी शक नहीं होना चाहिए। लालू यादव ने भी प्रधानमंत्री और अपने विरोधियों द्वारा बार-बार परिवारवाद का आरोप लगाने के जवाब में नरेंद्र मोदी पर निजी हमले किए और कुछ ऐसी भी बातें कहीं, जो सामान्य शिष्टाचार के हिसाब से उचित नहीं मानी जा सकतीं। 

प्रधानमंत्री ने इन आरोपों को तुरंत मौके की तरह इस्तेमाल किया और तमिलनाडु की अपनी जनसभा में ‘मोदी का परिवार सारा देश और इसके सभी 1.40 अरब लोग’ होना बताया। नरेंद्र मोदी इधर काफी समय से ‘देश ही मेरा परिवार है’ बोलने लगे थे। अपने भाषणों में भी वह लोगों को मेरे परिवारजन कहते थे। चेन्नई की जनसभा में उन्होंने लालू यादव के हमलों का जबाब दिया और यह भी कहा कि उन्होंने बहुत कम उम्र में देश और समाज के लिए परिवार छोड़ दिया था। जाहिर तौर पर प्रधानमंत्री की इस सतर्क प्रतिक्रिया और पूरे भाजपा परिवार द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से एक दिन में ही ‘मोदी का परिवार’ अभियान को चर्चा में ला देना, उनकी तैयारी और चुनाव के प्रति उत्साह को दिखाता है। 

लगभग सभी लोगों को इसमें पिछले चुनाव में मोदी समर्थकों द्वारा चलाया ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान याद आया, जो राहुल गांधी द्वारा ‘चौकीदार चोर है’ का नारा बुलंद करने के जबाब में आया था। प्रधानमंत्री द्वारा अपने पर हुए हमलों को पलटकर जवाबी राजनीतिक लाभ लेने का यह पहला या दूसरा मामला नहीं है, इससे पहले भी सोनिया गांधी द्वारा ‘मौत के सौदागर’ और मणिशंकर अय्यर द्वारा ‘चाय वाला’ या ‘नीच आदमी’ कहे जाने का उन्होंने किस तरह राजनीतिक जवाब दिया और उसका क्या लाभ मिला, यह भी सबने देखा है। 

व्यक्तिगत हमले लालू यादव पर भी कम नहीं हुए। बड़ा परिवार से लेकर भाई-भतीजा, साला-सलहज और अब बेटा, बेटी, दामाद, बहू, समधियों समेत रिश्तेदारों की फौज की करतूतों के चलते वह परिवारवाद का सबसे बड़ा उदाहरण बने हुए हैं और भ्रष्टाचार के मामले में अपराधी भी हैं। लेकिन एक बेटे के लायक उत्तराधिकारी बनने और पार्टी के फिर से ताकतवर बन जाने से उनको भी हौसला आ गया है कि परिवारवाद पर बोलें। निजी हमले वाली सामान्य बात छोड़ दें तो उन्होंने बहुत गलत भी नहीं कहा और स्वयं मोदी जी ने उन पर या सोनिया, राहुल समेत अपने विरोधियों पर कम निजी और घटिया हमले नहीं किए हैं। दूसरे, परिवार को लेकर उनके अंदर भी अपराधबोध रहा है, तभी तो किसी चुनावी घोषणा में खुद को विवाहित तो खुद को अकेला बताते रहे हैं। लालू-राबड़ी अपने ब्राह्मणवादी कर्मकांड के चक्कर में पिछड़ावाद का काफी नुकसान कर चुके हैं।

पर इस ट्रैंड करने वाली या अचानक सामने आई मोदी परिवार वाली परिघटना के आधार पर यह नतीजा निकालना मुश्किल है कि यह अभियान आगामी लोकसभा चुनाव तक जाएगा या उसी तरह चुनाव को प्रभावित करेगा जैसा मोदी जी ने अपने पिछले जवाबों से प्रभाव बना लिया था। मौत के सौदागर वाले हमले पर उन्होंने न सिर्फ ङ्क्षहदू हृदय सम्राट वाली छवि बनाई, बल्कि चाय वाला या ‘नीच’ वाले चार्ज को उन्होंने चाय पर चर्चा और निचली जाति पर हमला बना लिया था। लालू जी जैसे चालाक नेता ने यह गलती कैसे कर दी, यह अंदाजा लगाना मुश्किल है, वरना अब कोई भी मोदी पर निजी हमले करने से बचता है। 

दस साल से प्रधानमंत्री पद को सुशोभित कर रहे नरेंद्र मोदी और उनके समर्थक जब ऐसे हमलों को राष्ट्र के अपमान के साथ जोड़ते हैं, तब उनका तर्क ज्यादातर लोगों को सही लगता है। निजी मर्यादा का मसला भी बहुत छोटा नहीं है, पर संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का मामला और भी उलझा हुआ हो जाता है। बल्कि जगदीप धनखड़ जैसे चालाक नेता ने तो अपनी नकल उतारने को ही संवैधानिक मर्यादा का हनन बनाने का प्रयास किया। मोदी जी या भाजपा को फिलहाल मुद्दों की भी कमी नहीं है, जिनको वे आगे करके चुनाव में उतरेंगे। राम मंदिर निर्माण, काशी कारीडोर से लेकर धारा 370 की समाप्ति, तीन तलाक का खात्मा, मुफ्त राशन, किसान कल्याण निधि, दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना जैसे न जाने कितने मुद्दे हैं, जिनका वजन अभी इससे ज्यादा लगता है।

लेकिन चुनाव में कब क्या मुद्दा काम कर जाए, इसका कोई भरोसा नहीं है। अत: कई सारे और कई तरह के मुद्दे उठाकर उनका परीक्षण चलता रहता है। पार्टी और नेता को किससे फायदा होगा, इसका अंदाजा लगाना भी साथ चलता है। कोई भी मामला ‘क्लिक’ कर सकता है। और यह भी होता है कि सारी तैयारी एक तरफ रह जाती है, चुनाव के समय लोग किसी नई चीज की तरफ झुकते दिखते हैं।

पिछले उत्तर प्रदेश चुनाव में राम मंदिर का शिलान्यास मुद्दा नहीं बना और योगी राज में औरतों की सुरक्षा (जिसका भ्रम आरोपियों को बड़ी संख्या में पैरों में गोली मारने या उनके मकान पर बुलडोजर चलाने से बना था) का सवाल सबसे ऊपर आ गया। इससे सपा की जीत से अपराधियों को संरक्षण मिलने का बनावटी डर भी शामिल था। बिहार में तो दो दौर में राजद की तरफ जाता विधानसभा चुनाव जंगल राज या अहीर राज की वापसी के खतरे को आगे करके पलट दिया गया। इसलिए अभी इस मोदी परिवार योजना को एक सामान्य परिघटना ही मानें, चुनाव में चलाने से पहले अभी काफी और चीजें भी होंगी।-अरविन्द मोहन 
 

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