भाजपा ने दक्षिण में एक और महत्वपूर्ण सहयोगी खो दिया
punjabkesari.in Monday, Oct 02, 2023 - 04:26 AM (IST)

भाजपा की दक्षिण दिशा की यात्रा में रुकावट आ रही है जिसे मई 2023 में कर्नाटक के लोगों ने रोक दिया था और तमिलनाडु में उसके प्रमुख सहयोगी अन्नाद्रमुक द्वारा संबंध तोडऩे से 2024 के संसदीय चुनाव में अधिकतम सीटों पर कब्जा करने के बारे में उच्च आशावाद बनाए रखने की संभावना कम हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि द्रविड़ राजनीति में अन्नाद्रमुक का सिकुड़ता आधार और भाजपा के साथ जुड़ाव के कारण अल्पसंख्यक वोटों का नुक्सान वर्तमान संकट में योगदान दे सकता है। हालांकि प्रकट किए गए अन्य कारणों में पार्टी की अलोकप्रियता और राज्य भाजपा प्रमुख के. अन्नामलाई का द्रमुक संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री अन्नादुरई पर सीधे हमले के बाद गठबंधन की गतिशीलता में तीखे मतभेद उपजे हैं।
भाजपा को 2024 में दक्षिण भारत में गठबंधन सहयोगियों की बेरुखी का सामना करना पड़ सकता है। यह एक स्थापित तथ्य है कि भाजपा के लिए केवल हिंदी पट्टी पर भरोसा करना बेहद मुश्किल होगा क्योंकि दक्षिण भारत में लोकसभा की कुल 543 सीटों में से 130 सीटें हैं। वर्तमान स्थिति के अनुसार दक्षिण राज्यों के विभाजन में कर्नाटक की 28 सीटें, आंध्रप्रदेश की 25, तेलंगाना की 17, तमिलनाडु की 39, केरल की 20 और केंद्र शासित प्रदेश पुड्डचेरी की एक सीट शामिल है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 130 के इस पूल में से 21 सीटें जीतीं और 2019 के चुनावों में अपनी संख्या बढ़ाकर 29 कर ली। भाजपा को इनमें से अधिकांश जीतें कर्नाटक से मिलीं। पार्टी को 2004 में 18, 2009 में 19, 2014 में17 और 2019 में 25 सीटें मिलीं। लेकिन इस महत्वपूर्ण राज्य को कांग्रेस पार्टी ने छीन लिया है जो विधानसभा चुनावों की जीत का फायदा लोकसभा चुनावों में उठाने की कोशिश भी करेगी।
द्रमुक की भविष्य की रणनीति को लेकर विशलेषकों का मानना है कि कर्नाटक में असफल प्रयोग के बाद द्रमुक भाजपा के हिंदुत्व के खिलाफ अपना हमला जारी रख सकती है और यह भाजपा का एक मजबूत हथियार है जिसे अतीत में देखा गया है। जब ओ.पी.एस. को भगवा पार्टी के अभिन्न अंग के रूप में पेश किया गया था। द्रमुक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ई.पी.एस. की लगातार मुलाकातों का भी फायदा उठाया और उन्हें करीबी सहयोगी करार दिया। द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा विरोधी बयानों पर भरोसा कर सकती है। कई भाजपा विरोधी क्षेत्रीय दल भगवा पार्टी पर अपने लिए जगह बनाने के लिए गठबंधन सहयोगियों को खा जाने का आरोप लगाते रहे हैं। ट्रैक रिकार्ड्स से पता चलता है कि द्रमुक और अन्नाद्रमुक दोनों ने अलग-अलग मौकों पर भाजपा को पैर जमाने में मदद की लेकिन 2001 के बाद से द्रमुक ने भाजपा से मुंह मोड़ लिया है जबकि अन्नाद्रमुक ने अब ऐसा किया है जिससे उसकी महत्वाकांक्षा को झटका लगा है। हालांकि केंद्रीय नेता अभी भी गठबंधन को पुन:जीवित करने के लिए अन्नाद्रमुक को मनाने की कोशिश कर सकते हैं।
आंध्र, तेलंगाना, कर्नाटक और केरल में भाजपा की रणनीति : आंध्र प्रदेश में 25 लोकसभा सीटें हैं और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा एक भी सीट जीतने में विफल रही थी। हालांकि 2014 में आंध्र प्रदेश में भाजपा ने 2 सीटों पर जीत हासिल की थी। अब वह जगन मोहन रैड्डी की वाई.एस.आर. कांग्रेस के विकल्प के तौर पर पेश करने की योजना पर काम कर रही है। भाजपा को उम्मीद है कि समान विचारधारा वाली पार्टियां गठबंधन के साथ हाथ मिलाएंगी और वाई.एस.आर.सी.पी. सरकार पर आरोप लगाती है कि केंद्रीय निधियों का दुरुपयोग किया गया है। तेलंगाना में भाजपा को फिलहाल को बड़ी चुनावी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वर्तमान में के.सी.आर. के नेतृत्व वाली बी.आर.एस. के पास विधानसभा की कुल 119 सीटों में से 101 विधायकों के साथ बहुमत है जबकि भाजपा के पास मात्र 3 विधायक और 4 सांसद हैं। के.सी.आर. को केंद्र ने किनारे कर दिया है और रिश्तों में खटास आ गई है। तेलंगाना में 17 लोकसभा सीटें हैं और भाजपा ने 2019 में केवल 4 सीटें जीतीं, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टी.आर.एस.) ने 9 सीटें, कांग्रेस ने 3 सीटें और ए.आई.एम.आई.एम. को एक सीट मिली।
कर्नाटक में भाजपा-जद एस गठबंधन को औपचारिक रूप दे दिया गया है लेकिन कांग्रेस विधानसभा चुनावों में अपनी जीत के बाद उत्साहित है जो सीटों का बंटवारा होने पर ढ्ढ.हृ.ष्ठ.ढ्ढ.्र. को लाभ पहुंचाएगा। भाजपा को अधिकांश जीतें कर्नाटक से मिलीं जिसमें 2004 में 18, 2009 में 19, 2014 में 17 और 2019 में 25 जीतें शामिल हैं। केरल में भी ऐसी ही कुछ कहानी है जो कर्नाटक के साथ सीमा सांझा करता है। जबकि भाजपा ने ईसाई समुदाय को आकॢषत करने के उद्देश्य से राज्य में महत्वपूर्ण संसाधनों का निवेश किया है। अंतिम मूल्यांकन में विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा ने संसद में बिना किसी सांसद वाले 10 दलों सहित 36 दलों को एक साथ लाकर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया था जिसका उद्देश्य ढ्ढ.हृ.ष्ठ.ढ्ढ.्र. के नेताओं के साथ-साथ लोगों के दिमाग पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा करना था।-के.एस. तोमर