राष्ट्रीय चुनावों में भाजपा का प्रभुत्व मगर राज्यों में नहीं

punjabkesari.in Friday, Jan 13, 2023 - 04:44 AM (IST)

2018 और 2022 के बीच 5 साल की अवधि में देश के 30 राज्यों में चुनाव हुए। यानी हर भारतीय राज्य में चुनाव हुआ (हम यहां दिल्ली और पुड्डुचेरी को राज्यों के रूप में गिन रहे हैं क्योंकि उनके पास मुख्यमंत्री हैं)। हर चुनाव में भाजपा एक महत्वाकांक्षी ‘मिशन’ नंबर लेकर आती है। यदि राज्य विधानसभा में 100 सीटें हैं तो भाजपा चुनाव अभियान ‘मिशन 65+’ या कुछ ऐसी ही संख्या की घोषणा करती है जो यह संकेत देती है कि चुनाव में वह सभी का सूपड़ा साफ कर देगी। 

भारतीय राजनीति में भाजपा के प्रभुत्व को देखते हुए आपको क्या लगता है कि इन 30 चुनावों में से कितने चुनाव भाजपा ने पूर्व या बाद के सहयोगियों के बिना अपने स्वयं के स्पष्ट बहुमत या बलबूते पर जीते? इनमें से कितने राज्यों में यह महत्वाकांक्षी ‘मिशन’ सफल हुए? 25? 20? या कम से कम 50 प्रतिशत यानी 15 ठीक हैं या कम से कम 10? 

पांच वर्षों में भाजपा ने अपने दम पर केवल 7 राज्य जीते जिसमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, मणिपुर, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और गोवा शामिल हैं। ध्यान दें कि इन 7 में से केवल 2 बड़े राज्य हैं जिनके पास संसद के निचले सदन लोकसभा में पर्याप्त सीटें हैं। हम गोवा को शामिल करने में उदार दिख रहे हैं जहां भाजपा  वास्तव में बहुमत से एक सीट कम थी। 

एकतरफा सड़क नहीं : जहां भाजपा गठबंधन के साथ जीती या चुनाव के तुरन्त बाद गठबंधन बनाया वह एक बड़ी संख्या होनी चाहिए। केवल 9 अन्य राज्य हैं और उनमें से अधिकांश छोटे उत्तर पूर्वी राज्य हैं। उत्तर-पूर्व को वैसे भी केंद्र के साथ चलने की आदत है। ये 9 राज्य हैं हरियाणा, असम, सिक्किम, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पुड्डुचेरी (यह वास्तव में विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश है, राज्य नहीं है) बिहार और महाराष्ट्र। बिहार में भाजपा की सहयोगी पार्टी जद (यू) ने उन्हें छोड़ दिया है और महाराष्ट्र में उनकी सहयोगी शिवसेना ने चुनाव के बाद उन्हें छोड़ दिया है। 

इसके विपरीत विपक्ष ने ओडिशा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, पंजाब, झारखंड, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, दिल्ली और हाल ही में हिमाचल प्रदेश जीता। इन 13 राज्यों में एक स्वच्छ, सरल और एकदलीय बहुमत है जिनमें से अधिकांश बड़े राज्य हैं। कर्नाटक में एक त्रिशंकु विधानसभा ने भी शुरू में विपक्ष की गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया था। जहां विधायकों का अवैध शिकार (आप्रेशन लोट्स) कर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की तरह ही सरकार गिरा दी गई। 

अगर हम यह देखें कि वास्तव में क्या मायने रखता है-मुख्यमंत्री का पद तो भाजपा के पास कितने मुख्यमंत्री हैं? यहां 11 सी.एम. के साथ चीजें थोड़ी बेहतर नजर आ रही हैं। भाजपा के एन.डी.ए. सहयोगियों के पास अन्य 6 हैं जिनमें से अधिकांश छोटे पूर्वोत्तर राज्यों में हैं। विपक्ष में 13 मुख्यमंत्री हैं उनमें से कई ङ्क्षहदी भाषी राज्यों में हैं जहां भाजपा ने लोकसभा चुनावों में लगभग हरेक सीट पर जीत दर्ज की है। 

राज्यों का भारत : राज्यों के माध्यम से भारतीय राजनीति को देखते हुए भाजपा प्रभुत्व का सुझाव नहीं देती है। राज्य की राजनीति निश्चित रूप से यह सुझाव नहीं देती है कि हम एक दलीय राज्य  बनाने के कगार पर हैं। भारतीय विपक्षी दल अनावश्यक रूप से हतोत्साहित दिख रहे हैं। 

आखिर भाजपा का प्रभुत्व इतना भारी क्यों लगता है। इसका कारण यह है कि केंद्र में उसके पास स्पष्ट बहुमत है और वह इस स्पष्ट बहुमत का उपयोग राज्यों में भी स्थापित करने में सक्षम है। यह कई भारतीयों के लिए नई बात लगती है क्योंकि या तो वे पैदा नहीं हुए थे या फिर यह देखने के लिए बहुत छोटे थे कि राजीव गांधी के 405/516 सीटें जीतने पर भी कांग्रेस का कितना दबदबा था। जब आपके पास एक मजबूत केंद्र होता है तो भारतीय संघवाद में शक्ति संतुलन स्वाभाविक रूप से राज्यों की राजधानियों से हट जाता है। 

भाजपा इसलिए भी मजबूत दिख रही है क्योंकि विपक्ष बंटा हुआ है और एक भी पार्टी एकजुट होने की बात नहीं करती। लेकिन यहां सबक लेने वाली यह बात है कि विपक्षी मुख्यमंत्रियों को और अधिक एकजुट होने और नीतिगत मुद्दों पर दबाव डालने से रोकने की जरूरत है। कई मायनों में केंद्र और राज्यों के बीच तनाव भारतीय संघवाद के लिए सही है। 

संघीय अवसर : जब पी.एम. मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने इस तनाव का इस्तेमाल खुद को गुजराती लोगों के नेता के रूप में उभरने के लिए किया था। अक्सर यह सुझाव दिया कि दिल्ली उनके साथ अन्याय कर रही है। संघवाद क्षेत्रीय दलों को जो स्थान देता है वह संभावनाओं से भरा है। केंद्र के प्रभुत्व का अक्सर मतलब यह होता है कि हम ‘आप्रेशन लोटस’ को देखते हैं जिसके साथ भाजपा राज्य का चुनाव हारने के बाद भी सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है। फिर भी यह स्थान 3 विपक्षी दलों के गठबंधन को 3 साल तक महाराष्ट्र में शासन करने की अनुमति देता है और यह तेजस्वी यादव को बिहार में सत्ता पक्ष में लौटने की अनुमति भी देता है। 

गुजरात और यू.पी. के बाहर राज्यों के चुनावों को एकतरफा मुकाबले बनाने में भाजपा की अक्षमता भी सवाल उठाती है। हम केंद्र के बारे में राज्य की राजनीति से क्या सीख सकते हैं? इसका उत्तर नेतृत्व है। यह राज्यों में मजबूत नेतृत्व की बदौलत ही है कि वे अक्सर एक सर्वशक्तिशाली भाजपा के खिलाफ जीतने में सक्षम होते हैं मगर राष्ट्रीय स्तर पर यही कमी है।-शिवम विज 
 


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