दिसम्बर में नीतीश से नाता तोड़ सकती है भाजपा

Sunday, Oct 07, 2018 - 04:41 AM (IST)

सियासत का दस्तूर भी निराला है, जो दिखता है वह होता नहीं और जो होने वाला है वह सियासी नेपथ्य की अठखेलियां हैं। जैसे इन दिनों भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पीठ थपथपाने में लगा है, पर सूत्र बताते हैं कि भगवा इरादे कुछ और हैं।

दिसम्बर आते-आते भाजपा बिहार की नीतीश सरकार से अपना समर्थन वापस ले सकती है और वह चाहती है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ ही बिहार विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो जाएं।मुमकिन है कि ऐसे में राज्य में राष्ट्रपति शासन के हालात पैदा हो जाएं। भाजपा 2019 के चुनाव में अपने पुराने साथियों मसलन रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा के साथ ही चुनावी मैदान में जाना चाहती है क्योंकि नीतीश के साथ उसका सीटों के गठबंधन का पेंचोखम सुलझने का नाम नहीं ले रहा। 

सूत्रों की मानें तो पिछले दिनों जब कुशवाहा भाजपाध्यक्ष अमित शाह से मिले तो उन्हें धैर्य बनाए रखने को कहा गया, साथ ही यह नसीहत भी दी गई कि वह लालू के साथ जाने का उतावलापन न दिखाएं। दरअसल उपेंद्र कुशवाहा की असली परेशानी नीतीश को लेकर है क्योंकि नीतीश खुद को कुर्मी, कोयरी व धानुक जाति का एकछत्र नेता प्रोजैक्ट करने में जुटे हैं। हालिया दिनों में नीतीश कुशवाहा नेताओं को साधने में जुटे हैं। यही बात उपेन्द्र कुशवाहा को बेहद नागवार गुजर रही है। 

लालू व राहुल से मिले पी.के.
ऐसा नहीं है कि नीतीश को भगवा इरादों की भनक नहीं है। 2019 के आम चुनाव को लेकर वह अभी से अपनी नई रणनीति बुनने में जुट गए हैं। पटना के सियासी गलियारों से ऐसी फुसफुसाहट सुनने को मिल रही है कि नीतीश प्रशांत किशोर में अपने उत्तराधिकारी का अक्स देख रहे हैं। शायद यही वजह है कि ब्राह्मण जाति से ताल्लुक रखने वाले पी.के. अपना सब काम-धाम छोड़कर नीतीश के साथ लग गए हैं। सूत्र बताते हैं कि पी.के. ने सबसे पहले लालू यादव से मुलाकात की और उनसे नीतीश सरकार के लिए समर्थन मांगा, यह कहते हुए कि अगले बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश मुख्यमंत्री पद के लिए तेजस्वी का समर्थन कर सकते हैं। 

लालू को भी अब लगने लगा है कि काठ की सियासी हांडी को महत्वाकांक्षाओं की आंच पर बार-बार परखना ठीक नहीं रहेगा, सो उन्होंने घुमा-फिरा कर एक तरह से पी.के. को मना कर दिया, यह कहते हुए कि अब उनकी पार्टी राजद में सभी अहम निर्णय तेजस्वी ही लेते हैं और उनके पुत्र किसी कीमत पर नीतीश को दोबारा समर्थन नहीं दे सकते, सो बात आई-गई हो गई। पर पी.के. भी हार मानने वालों में से नहीं हैं। जब उन्होंने देखा कि लालू नीतीश सरकार को बाहर से भी समर्थन देने को राजी नहीं हैं तो उन्होंने अपने पुराने रिश्तों का वास्ता देकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने का समय ले लिया। 

सूत्र बताते हैं कि पी.के. ने राहुल के समक्ष एक नया सियासी फार्मूला उछाला और उनसे कहा कि नीतीश अपनी पार्टी जद (यू) का विलय कांग्रेस में करने को तैयार हैं बशर्ते राहुल इस बात का आश्वासन दें कि बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश ही महागठबंधन के सी.एम. फेस होंगे। कहा जाता है कि पी.के. ने राहुल से यह भी कहा कि अगर जद (यू) का कांग्रेस में विलय हो जाता है तो इतने वर्षों बाद बिहार में कांग्रेस विधायकों की संख्या 100 के पार चली जाएगी। पी.के. की बातों से आश्वस्त राहुल ने फौरन तेजस्वी को फोन मिलाया और पी.के. का यह फार्मूला सुझाया, पर तेजस्वी ने एक झटके में ‘न’ कह दिया। अब राहुल की तरह नीतीश भी अपने सियासी भविष्य को लेकर बेहद सशंकित हैं। 

बदल सकता है जावड़ेकर के मंत्रालय का नाम
नई दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय उच्च शिक्षण संस्थान का एक बेहद अहम कार्यक्रम आहूत था, जिसमें देश भर से आए शिक्षाविद्, वाइस चांसलर आदि का जुटाव था, कार्यक्रम की अध्यक्षता का जिम्मा ङ्क्षहदी के एक बड़े पत्रकार जो लिखे शब्दों को भगवा रंग में रंगने में सिद्धहस्त हैं, राम बहादुर राय को सौंपा गया था। राय भगवा शासन की असीम अनुकम्पा की वजह से इन दिनों इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष पद पर सुशोभित हो रहे हैं। राय ने अपने उद्बोधन में मोदी सरकार के नए इरादों को धार देते हुए कहा, किसी ने राजीव गांधी को सलाह देकर इस मंत्रालय का नाम मानव संसाधन विकास मंत्रालय करवा दिया लेकिन दुर्भाग्य से यह भारतीय परम्परा के शब्द ही नहीं हैं और मनुष्य को मानव संसाधन कहना तो मानवता का अपमान है। 

कार्यक्रम में मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी विराजमान थे, राय ने इस बारे में उनके भी विचार जानने चाहे कि क्यों नहीं इस मंत्रालय को फिर से शिक्षा मंत्रालय का पुराना नाम दे दिया जाए। जावड़ेकर ने भी इस प्रस्ताव पर सहमति की मुहर लगाते हुए कहा कि वह स्वयं को अभी भी शिक्षा मंत्री ही कहलवाना पसंद करते हैं। पर ऐसे में जबकि चुनाव सिर पर हैं, संघ की नाम बदल महत्वाकांक्षाओं को शिरोधार्य कर पाना क्या वास्तव में इतना आसान होगा, यह तो वक्त ही बताएगा। 

काक को आंच क्या
दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले एक वक्त के चॢचत सीरियल ‘सुरभि’ की यादें सबके जेहन में कहीं न कहीं जरूर होंगी। इस सीरियल से एंकरिंग का नया मुकाम हासिल करने वाली रेणुका शहाणे आज भाजपा की बेहद करीबियों में शुमार होती हैं। इस सीरियल को बनाने वाले सिद्धार्थ काक पर भाजपा सरकार मेहरबानियों की नई सौगात बरसाने वाली है। सूत्र बताते हैं कि केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने काक को कोई 5 करोड़ रुपए दिए हैं और इन पैसों से वह मंत्रालय के प्रस्तावित चौबीसों घंटे वाले साइंस चैनल के लिए कार्यक्रम बनाने वाले हैं। यह और बात है कि अपने लम्बे करियर में डा. काक ने शायद ही कोई विज्ञान के कार्यक्रम बनाए हैं। 

मोदी का भरोसा
चाहे दुनिया कुछ भी कहे, भारत के प्रधानमंत्री मोदी को 2019 में अपने पुन: चुनकर आने का पक्का भरोसा है। उन्हें और उनके लोगों को यकीनी तौर पर ऐसा लगता है कि 2019 का चुनाव तो उनके लिए एक औपचारिकता मात्र है। शायद यही वजह है कि जब पिछले दिनों प्रधानमंत्री वीडियो कांफ्रैंसिंग के जरिए मंत्रालय के सचिवों और राज्यों के मुख्य सचिवों की एक बैठक ले रहे थे तो कुछ सचिवों ने पी.एम. के सवालों के जवाब टालू अंदाज में देने शुरू कर दिए। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था, मोदी के नेतृत्व में उनकी एक पकड़ और धमक का आगाज हमेशा दिखाई देता रहा है, सचिवों की बदली भाव-भंगिमाओं को देखकर मोदी माजरा भांप गए और उन्होंने उन्हें लगभग डपटने वाले अंदाज में कहा-‘2019 में हमारे चुनाव जीतकर आने के बाद भी आप ऐसे ही जवाब देंगे या खुद को बदलेंगे या बदले जाने को तैयार रहेंगे’। हर तरफ सन्नाटा पसर गया था और उस सन्नाटे में पी.एम. का अति आत्मविश्वास सिर चढ़ कर बोल रहा था। 

मुख्तार का सिनेमा प्रेम
केन्द्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का सिल्वर स्क्रीन प्रेम किसी से छुपा नहीं। वह बॉलीवुड की कई फिल्मों के स्क्रिप्ट व गीत लिख चुके हैं। नकवी पिछले काफी समय से आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले ऐसे 100 अनसंग यानी अनाम हीरोज की दास्तां को पटकथा की शक्ल में पिरो रहे हैं। नकवी अपनी कहानी में यह कहने और दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि कैसे इन अनाम नायकों के नायकत्व को इतिहास के पन्नों ने निगल लिया, इन्हें जो शाबासी व वाहवाही मिलनी थी वह इन्हें नहीं मिल पाई। नकवी इन नायकों के नायकत्व की वीरगाथा को सिनेमा के नए सूत्र में पिरोना चाहते हैं और देशवासियों को बताना चाहते हैं कि आजादी की लड़ाई में इन अनाम नायकों के बलिदान को कम करके नहीं आंका जा सकता है। 

डोभाल की निर्मला से क्यों है ठनी
भारत ने रूस से 5.43 बिलियन अमरीकी डॉलर कीमत के एस-400 एयर डिफैंस मिसाइल सिस्टम के लिए करार क्या किए, एक सियासी कोहराम मच गया। इस डील को लेकर केन्द्रीय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बीच की तनातनी भी सामने आ गई। दरअसल, निर्मला सीतारमण शुरू से एस-400 की खरीद की पक्षधर बताई जाती रही हैं, जबकि वहीं डोभाल को साफ तौर पर ऐसा लगता रहा है कि इस खरीद से भारत व अमरीका के संबंधों के बीच तल्खी आ सकती है और रूस के साथ भारत की इस डील से बेचैन होकर अमरीका भारत पर कई नए प्रतिबंध लगा सकता है।

डोभाल अभी मध्य सितम्बर में ही अमरीका गए थे जहां ट्रम्प प्रशासन के कई सीनियर अधिकारियों से उनकी सारगॢभत मुलाकात हुई थी, जिनमें यू.एस.ए. के सैक्रेटरी ऑफ स्टेट माइक पोम्पियो, रक्षा सचिव जेम्स मैटिस और वहां के सुरक्षा सलाहकार जौन बॉल्टन के साथ डोभाल ने काफी विस्तार से बातें की थीं। इन अधिकारियों ने डोभाल के साथ अपनी बातचीत में साफ कर दिया था कि अगर भारत रूस से एस-400 खरीदता है तो ‘काट्सा’ के तहत भारत पर नए प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। जब पुतिन इस बार भारत के दौरे पर आए तो मीडिया से बातचीत में मोदी व पुतिन दोनों ने इस बात की भनक भी नहीं लगने दी कि दोनों देशों के बीच ऐसा कोई बड़ा रक्षा सौदा होने जा रहा है, न ही भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा जारी ‘लिस्ट ऑफ डॉक्यूमैंट साइन्ड’ में ही इसका कोई जिक्र था।-मिर्च-मसाला त्रिदीब रमण

Pardeep

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