‘बिरहा दा सुल्तान’ शिव कुमार बटालवी

punjabkesari.in Friday, May 06, 2022 - 04:56 AM (IST)

‘जोबन रुत्ते’ मरने की भविष्यवाणी कर हकीकत में ऐसी मौत मरने वाले पंजाबी के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त धार्मिक एवं औद्योगिक नगरी बटाला (पंजाब) के शायर शिव कुमार बटालवी 36 वर्ष की अल्पायु में ही इस संसार को हमेशा के लिए अलविदा कह गए और अपने पीछे लिख कर छोड़ गए अनेकों पंजाबी गीत, जिनके कारण वह हमारे दिलों पर राज कर रहे हैं। 20वीं सदी का वारिस शाह कहलाने वाले पंजाबी के मशहूर शायर शिव कुमार बटालवी ने छोटी उम्र में ही दिल के दर्द को इस प्रकार लिखा कि आज भी सभी उसे ‘बिरहा का कवि’ के रूप में याद करते हैं। 

8 अक्तूबर, 1937 (कई स्थानों पर जन्म 23 जुलाई, 1936 लिखा है) को गुरदासपुर जिले की बंटवारे के समय पाकिस्तान में चली गई शकरगढ़ तहसील के गांव बड़ा लुटिया में कृष्ण गोपाल के घर मां शांति की कोख से शिव का जन्म हुआ। बंटवारे के समय 10 वर्ष की आयु में परिवार के साथ आकर बटाला बस गए और अपने नाम के साथ बटालवी लगाकर पूरी दुनिया में नगर का नाम रोशन किया। उनका बचपन और किशोरावस्था यहीं गुजरी। बटालवी ने इन दिनों गांव की मिट्टी, खेतों की फसलों, त्यौहारों और मेलों को भरपूर जिया, जो बाद में उनकी कविताओं में खुशबू बन कर महके। यहां से मैट्रिक करने के बाद वह हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ के एक स्कूल में सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लेने के लिए दाखिल हुए, मगर उन्होंने इसे भी बीच में ही छोड़ दिया। फिर रिपुदमन सरकारी कालेज नाभा में पढऩे गए परन्तु यहां भी पढ़ाई छोड़ वापस आ गए और पिता जी के कहने पर पटवारी का काम करने लगे। 

युवावस्था में हिमाचल के बैजनाथ के मेले में मिली मीना नामक सुंदरता की परी ने शिव को अंदर तक हिला कर रख दिया और उसके दिलो-दिमाग पर उसकी खूबसूरती का राज हो गया। अब शिव का दिमाग हमेशा उससे मिलने को मचलने लगा जिस कारण मीना के भाई को दोस्त बना कर उससे मिलने के लिए रास्ता निकाला। धीरे-धीरे बढ़ती मुलाकातों से मीना को भी शिव से प्यार हो गया और दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया, परंतु अचानक एक दिन टाइफायड बुखार के कारण मीना को मौत ने अपनी आगोश में ले लिया। इससे शिव को बिछोड़े का ऐसा बुखार चढ़ा कि पूरी उम्र नहीं उतर सका। इसी दौरान पटवारी का काम करते समय शिव के गीतों की आशिक एक लड़की को शिव के दर्द को दूर करने के लिए प्यार हो गया। उसने शिव के टूटे दिल को संभाला परंतु वह भी एक दिन उसे अकेला छोड़ विदेश चली गई, जिससे शिव के दिल को बिछड़ने का गम इस कदर लगा कि वह अंदर से पूरी तरह से खोखला हो गया। शिव ने इस बेवफा पर लिखा :

माए नी माए मैं इक शिकरा यार बनाया, ओहदे सिर ते कलगी ते पैरीं झांजर ओह चोंग चुनींदा आया,चूरी कुट्टां ते ओह खाओंदा नाहीं, वे असां दिल दा मांस खवाया, इक उडारी ओस ऐसी मारी, मुड़ वतनीं न आया। जिस कवि ने इस कदर विरह झेली हो, भला उसने प्यार भी कैसा किया होगा? ऐसे में प्रेम को ऊंचाई देती उसकी काव्य पंक्तियां : 

मैंनू तेरा शबाब लै बैठा, रंग गोरा गुलाब लै बैठा, किन्नी पीती ते किन्नी बाकी ए, मैंनूं एहो हिसाब लै बैठा। 

प्यार के इस धोखे ने शिव के अंदर दर्द का समंदर भर दिया जो उनकी कविताओं के रूप में बह निकला। शिव ने अपनी अलग-अलग रचनाओं लाजवंती, मैं ते मैं, पीड़ां दा परागा, बिरहा दा सुल्तान, आटे दीयां चिडिय़ां, मैनूं विदा करो और लूणा द्वारा अपने नगर, राज्य और देश ही नहीं पूरे संसार के शायरी पसंद एवं अन्य लोगों के मनों पर राज किया और आज भी उनके लिखे गीत गा-गाकर कई गायक अपने आप में गौरव अनुभव करते हैं।
शिव ने अपनी प्रीत की असफलता को सफलता कहते हुए यारी (दोस्ती) की परिभाषा करते हुए लिखा : 

सौ यारां दी यारी नालों,  इक हंजू दी यारी चंगी,  
प्यार दी बाजी जित्तण नालों, प्यार दी बाजी हारी चंगी।
उसने नारी और मर्द की तुलना में अपने शब्दों में लिखा :
नारी तां है नर दा गहणा, नर नंू उसने मोह लैणा,  
जे नर नंू ओह मोह नहीं सकदी, तां ओह नारी हो नहीं सकदी।
नारी की महानता के विषय में लिखा :
नारी आपे नारायण है, हर मत्थे दी तीजी अख है, 
जो कुज किसे महान है रचिया, उस विच नारी दा हथ है। 

सिर्फ 24 साल की उम्र में उनकी कविताओं का पहला संकलन ‘पीड़ां दा परागा’ प्रकाशित हुआ, जो उन दिनों काफी चॢचत रहा। शिव 1967 में साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के साहित्यकार बने। साहित्य अकादमी ने यह सम्मान पूरण भगत की प्राचीन कथा पर आधारित उनके महाकाव्य नाटिका लूणा (1965) के लिए दिया, जिसे आधुनिक पंजाबी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है।
शिव की रचनाओं में निराशा व मृत्यु की इच्छा प्रबल रूप से दिखाई पड़ती है :

एह मेरा गीत किसे ना गाणा,
एह मेरा गीत मैं आपे गा के भलके ही मर जाणा।
आखिरकार वर्ष 1967 में शिव ने अपने परिवार के कहने पर अरुणा नाम की एक लड़की से शादी कर ली। शिव शादी के बाद  चंडीगढ़ चले गए, जहां वह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में कार्यरत रहे। अंतिम कुछ वर्षों में वह खराब स्वास्थ्य से त्रस्त रहे, हालांकि उन्होंने बेहतर लेखन जारी रखा। 6 मई, 1973 को सिर्फ 36 साल की उम्र में शराब की दुसाध्य लत के कारण हुए लिवर सिरोसिस की वजह से पठानकोट के किरी मांग्याल में अपने ससुर के घर पर शिव सदा के लिए मृत्यु की गोद में सो गए। अब बस उनकी कविताएं दुनिया में इस अंदाज में मौजूद हैं : 

की पुछदे ओ हाल फकीरां दा, 
साडा नदियों विछड़े नीरां दा,
साडा हंज दी जूने आयां दा, 
साडा दिल जलेया दिलगीरां दा।
आज इस महान कवि की पुण्यतिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए सरकार और शिव प्रेमियों से अपील है कि शिव की याद में बने ऑडिटोरियम को विश्व स्तरीय बनवाएं, ताकि दुनिया भर के उसके दीवाने यहां आकर उसको पढ़ें और समझ सकें।-सुरेश कुमार गोयल 
 


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