बिंदी और साड़ी नया फैशन स्टेटमेंट

Sunday, Jul 21, 2019 - 01:23 AM (IST)

तीन -चार साल पहले मैं एयरपोर्ट पर बैठी हुई थी। एक नजर वहां आने-जाने वाली महिलाओं पर डालने लगी। वहां हर उम्र की स्त्रियां मौजूद थीं लेकिन किसी ने भी साड़ी नहीं पहन रखी थी। पिछले 30-40 साल में ग्लोबलाइजेशन से पहले, जैसे-जैसे महिलाएं घर से बाहर काम करने निकलीं, उनका साड़ी पहनना कम होता गया। कई साल पहले चांदनी चौक के एक बड़े साड़ी व्यापारी ने लेखिका से कहा था कि महिलाओं का लगातार साड़ी पहनना कम होता जा रहा है इसलिए वह कोई और काम करने की सोच रहे हैं। पहले शादी-ब्याह के अवसर पर नाते-रिश्तेदारों को उपहार में साडिय़ां दी जाती थीं मगर अब वह भी कम होती जा रही हैं। 

शायद यही वजह है कि लेखिका सुनीता बुद्धिराजा साड़ी के पक्ष में एक मुहिम वर्षों से चला रही हैं। इसमें महिलाएं अपने साड़ी पहने चित्र पोस्ट करती हैं। यंू तो बनारसी साड़ी को विश्व धरोहरों में शामिल किया जा चुका है। नवम्बर 2017 में न्यूयार्क टाइम्स में असगर कादरी ने लिखा कि मोदी के सत्ता संभालते ही साड़ी को प्रमोट किया जा रहा है। साड़ी हिन्दू औरतों का पहनावा है। पहनावे को फैशन से नहीं, राष्ट्रवाद से जोड़ा जा रहा है।

इस लेख की तवलीन सिंह, प्रियंका चतुर्वेदी तथा बहुत-सी अन्य महिलाओं ने कड़ी आलोचना की थी। सबका कहना था कि साड़ी तो न जाने कब से पहनी जा रही है। लेखक ने बिना रिसर्च के यह लेख लिख दिया। इस लेखिका को भी यह लेख बहुत पक्षपातपूर्ण लगा था। एक तरफ तो भारत में साड़ी पहनने वाली महिलाएं बहुत कम होती जा रही हैं, दूसरी तरफ सुंदर पहनावे को किसी पार्टी या धर्म से जोडऩा कहां तक जायज है। साड़ी सिर्फ हिन्दू महिलाएं ही नहीं, सभी धर्मों की स्त्रियां पहनती हैं। बनारसी साड़ी को बनाने वाले भी आमतौर पर मुसलमान ही हैं। 

भारत में वैसे भी हजारों तरह की साडिय़ां बनती हैं- बंगाल की तांत,छत्तीसगढ़ की कोसा, मध्य प्रदेश की चंदेरी, इनके अलावा साडिय़ों के न जाने कितने प्रकार और डिजाइन हैं तथा उन्हें पहनने के तरीके भी अलग-अलग हैं। फिर सूती, रेशमी तथा ऐसी ही न जानें कितने तरह के कपड़ों की साडिय़ां। मुम्बई में एक महिला तीन सौ प्रकार से साडिय़ां पहना सकती है। इसकी मदद नीता अम्बानी से लेकर तमाम बड़ी अभिनेत्रियां और सैलीब्रिटीज भी लेती हैं। एक समय में साड़ी पहनने की प्रतियोगिताएं भी होती थीं-कौन कितनी जल्दी साड़ी पहन सकता है। इसके अलावा स्कूल- कालेज में उन अध्यापिकाओं की भारी शोहरत होती थी जो अच्छी तरह से साड़ी बांधती थीं। 

अभिनेत्रियों के नाम से बिकती साडिय़ां
अब आजकल यह हो गया है कि तमाम अभिनेत्रियों के नाम से बिकने वाली साडिय़ां बड़े शहरों से लेकर गांव तक जा पहुंची हैं। दीपिका और अनुष्का ने अपनी शादी के वक्त जो साडिय़ां पहनी थीं, उनकी भारी सेल हुई थी। होने वाली दुल्हनें वे ही साडिय़ां पहनना चाहती थीं जो इन अभिनेत्रियों ने पहनी थीं। हालांकि यह भी सच है कि पहले जहां साड़ी आमतौर पर महिलाओं का पहनावा हुआ करती थी अब बस वे किसी उत्सव या पार्टी के वक्त ही पहनी जाती हैं। यही हाल बिंदी का भी है। लड़कियों-महिलाओं के पहनावे में जब से जींस, टी-शर्ट, स्कर्ट, कैप्री आदि का चलन बढ़ा है तब से माथे से बिंदी भी गायब हो गई है। बिंदी को आऊट आफ फैशन माना जाने लगा है। हालांकि विदेश में अगर आप बिंदी लगाए हैं तो लोग आपको दूर से ही इंडियन-इंडियन पुकारते हैं। भारतीय होने की पहचान जैसे बिंदी है। मशहूर रंगकर्मी विभा रानी बड़ी बिंदी नाम से एक मुहिम चला रही हैं। इसमें हर रोज नई-नई महिलाएं जुड़ रही हैं। 

पुराने जमाने से लेकर 70-80 के दशक तक आमतौर पर फिल्मों में अभिनेत्रियां साड़ी पहनती थीं। बिंदी, चूड़ी, सिंदूर, गजरे, मंगलसूत्र में भी दिखाई देती थीं। लेकिन जैसे-जैसे देश में इस बात ने जोर पकड़ा कि ये चीजें कोई अच्छी औरत की पहचान नहीं हैं। इन्हें पहने बिना भी अच्छी औरत हो सकती है। इसके अलावा जैसे-जैसे समाज में नौकरीपेशा औरतें बढ़ीं, शिक्षा बढ़ी तो महिलाओं ने अपनी वेशभूषा का चुनाव किसी के कहने या परम्परा से नहीं, बल्कि अपनी सुविधा के लिए करना शुरू किया। कुछ दिन पहले टी.वी. के पर्दे पर दिखाई देने वाली कोई भी लड़की शायद ही ङ्क्षबदी लगाए दिखती थी मगर अब ङ्क्षबदी की वापसी हो गई है। लड़कियां बिंदी लगाए दिखने लगी हैं। ङ्क्षबदी जैसे नया फैशन स्टेटमैंट है। हालांकि फिल्मी अभिनेत्रियों के चेहरे पर बिंदी अभी भी नहीं दिखाई देती।-क्षमा शर्मा

Advertising