बिहार का चुनावी चक्रव्यूह : कौन उभरेगा चाणक्य बनकर?
punjabkesari.in Wednesday, Oct 08, 2025 - 05:22 AM (IST)

बिहार विधानसभा चुनावों की उलटी गिनती शुरू हो गई है। इन चुनावों में राज्य के 7.4 करोड़ मतदाता यह निर्णय करेंगे कि 243 विधायकों में से 14 नवम्बर को राज्य के राजसिंहासन पर कौन बैठेगा। जहां भाजपा नीत राजग जद (यू) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में पुन: सत्ता में आने के लिए चुनाव लड़ रहा है, तो राजद-कांग्रेस का महागठबंधन सत्तारूढ़ गठबंधन को सत्ताच्युत करने का प्रयास कर रहा है। क्या प्रशान्त किशोर की नई जन सुराज पार्टी रंग में भंग डालने का कार्य करेगी?
जद (यू) के एक वरिष्ठ नेता ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि विकास के लिए वोट कम से कम बिहार में कुछ भी नहीं है। कल तक यह माना जा रहा था कि 74 वर्षीय नीतीश कुमार 5वीं बार मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे, किंतु आज लगता है उन्हें अपनी सत्ता बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है और भाग्य उनके साथ रहा तो वह शायद अपनी सत्ता बचाने में सफल रहेंगे। दो दशकों तक सत्ता में रहने के बाद अब उनमें आरंभिक वर्षों की ताजगी नहीं दिखाई देती। उन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं। पार्टी में दूसरी पंक्ति के नेता नहीं हैं।
राज्य में ‘जेन नैक्स्ट’ एक नई कहानी लिखने के लिए तैयार है। राज्य के मतदाता यह भूल गए हैं कि जद (यू) ने राज्य में कानून-व्यवस्था स्थापित की, अनेक कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं, महिलाओं और महा दलितों को अधिकार सम्पन्न बनाया, सड़कों का निर्माण किया, ग्रामीण क्षेत्रों में नि:शुल्क बिजली और पेयजल उपलब्ध कराया, रोजगार के अवसरों का वायदा किया। नीतीश इन मुद्दों का लाभ पहले ही चार चुनावों में उठा चुके हैं। राज्य में अनुसूचित जातियों और पिछड़ी जातियों में असंतोष है और उन्हें लगता है कि उन्हें पर्याप्त शक्तियां नहीं दी गईं। राज्य में बदलाव की मांग हो रही है और कुछ लोग यह मानते हैं कि नीतीश अब निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं। किंतु अभी सब कुछ समाप्त नहीं हुआ। राज्य में अभी भी उनका कोई विकल्प नहीं है। नीतीश के साथ जो लोग इस समय दिखाई दे रहे हैं उनमें अधिकतर उच्च जाति के लोग हैं जिनकी निष्ठा मोदी के साथ है। यह सच है कि भाजपा को आशा है कि वह इस रिक्ति को भरेगी किंतु राह इतनी आसान नहीं है। यह राज्य में मुख्यत: उच्च जातियों की पार्टी बनी हुई है और पार्टी 10 प्रतिशत मतों पर निर्भर है।
विडम्बना देखिए कि कांग्रेस की हाईकमान की संस्कृति अब भाजपा में भी आने लगी है जो सत्ता और सत्ता के लाभों की अभ्यस्त हो गई है। इसके अलावा अनेक दल-बदलुओं को पार्टी में शामिल करने से लगता है पार्टी का वातावरण प्रदूषित हो रहा है और हिन्दुत्व का मुद्दा भी समस्याएं पैदा कर रहा है। पसमांदा सहित मुस्लिम लोग पार्टी से दूर हो रहे हैं, जबकि भाजपा का सहयोगी बने रहने के बावजूद नीतीश उनका विश्वास जीतने में सफल हुए। चुनावी पंडितों का कहना है कि जद (यू) मुख्यमंत्री की रेटिंग 35 से 40 प्रतिशत है और भगवा ब्रिगेड के लिए यह उचित समय है कि वह आगे बढ़े और अपना भविष्य तलाशे। लगभग 30 वर्षों पहलेे, जब मंडल राजनीति में छाया हुआ था, तो भाजपा ने मंडल इको सिस्टम में वैधता प्राप्त करने के लिए नीतीश का उपयोग किया किंतु मोदी और शाह महसूस करते हैं कि हिन्दुत्व बिग्रेड के लिए उनकी उपयोगिता नहीं रह गई और इसीलिए भाजपा लोजपा के चिराग पासवान की पिछलग्गू बनी हुई है और उनका उपयोग जद (यू) नेताओं को निशाना बनाने के लिए करती है। नि:संदेह भाजपा निरंतर कह रही है कि नीतीश राजग की मुख्यमंत्री की पसंद हैं, किंतु प्रधानमंत्री मोदी चौंकाने वाले कारनामे करते रहते हैं और इसीलिए शायद नीतीश कुछ घबराए हुए हैं और रैलियों में अपना धैर्य खो रहे हैं।
तेजस्वी द्वारा उठाए गए मुद्दे बहस का एजैंडा तय कर रहे हैं। तेजस्वी यादव ने अपने पिता लालू से कुछ राजनीतिक युक्तियां भी सीखी हैं और नीतीश का मुकाबला कर रहे हैं। कांग्रेस बिहार में कुछ जनाधार प्राप्त करने की प्रतिष्ठा के लिए लड़ रही है। महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर टकराव अलग स्तर तक पहुंच गया है। पार्टी 2020 के फार्मूले के विरुद्ध अपना रुख कड़ा कर रही है, जिसके चलते कांग्रेस को 70 सीटें मिली थीं, किंतु वह केवल 19 सीटें जीत पाई थी, जिसमें से भी 2 विधायकों ने दल-बदल कर दिया था। लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान लगता है अपने दम पर आगे बढ़ रहे हैं और दलित, जिनकी संख्या राज्य में 17 प्रतिशत से अधिक है, उनके आधार पर विपक्ष को पराजित करने का प्रयास कर रहे हैं और वे राज्य में एक गेम चेंजर साबित हो सकते हैं। तथापि राज्य में मूल मुद्दा जातिवादी राजनीति है जिसके आधार पर पार्टियां मतदाताओं की पसंद के अनुसार कार्य कराएंगी। नि:संदेह बिहार चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर भी बदलाव ला सकता है। देश की आधी से अधिक जनसंख्या 18 से 35 आयु वर्ग की है और एक युवा लोकतंत्र में उनकी आकांक्षाएं बढ़ी हैं। अब वे पुरानी बातों से प्रभावित नहीं होते।
आज की 24&7 डिजिटल दुनिया में नई राजनीतिक संभावनाएं हैं। नई पीढ़ी केवल उस परिदृश्य से संतुष्ट नहीं रहेगी, जहां पर नया मुख्यमंत्री केवल रोजगार के या ग्रामीण अवसरों का सृजन करे। वे चाहते हैं कि जमीनी स्तर पर बदलाव आए। बिहार चुनावों ने एक नई चिंगारी जला दी है और नई संभावनाएं पैदा की हैं। समय आ गया है कि हमारे नेतागण इस नई राजनीतिक शब्दावली को समझें: विकास करो, शासन करो, अन्यथा हम आपको सत्ता से बाहर कर देंगे।-पूनम आई. कौशिश