अतीत से विराम की जरूरत है बिहार को
punjabkesari.in Friday, Oct 17, 2025 - 04:13 AM (IST)

देश के तीसरे सबसे अधिक आबादी वाले राज्य बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों के नतीजों पर सबकी नजरें टिकी हैं, जहां प्रतिद्वंद्वी पार्टियां या तो मुफ्त चीजें बांट रही हैं या ऐसे वादे कर रही हैं जिन्हें पूरा करना उनके लिए लगभग नामुमकिन होगा। ऐसा ही एक ताजा वादा मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव ने किया है जो राष्ट्रीय जनता दल और राज्य में महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने एक बड़ा वादा किया है कि अगर वह मुख्यमंत्री चुने जाते हैं तो राज्य के हर परिवार को कम से कम एक सरकारी नौकरी सुनिश्चित करने के लिए एक कानून लाएंगे। हालांकि उनकी शैक्षणिक योग्यताएं उनके पिता की तरह ही मामूली हैं लेकिन अगर संयोग से वह मुख्यमंत्री बनते तो अपने कुछ सहयोगियों से इसके निहितार्थों के बारे में पूछ सकते थे।
राज्य सरकार द्वारा 2 साल पहले किए गए जाति सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य में 2.76 करोड़ परिवार हैं। वर्तमान में बिहार के केवल 20 लाख निवासियों के पास सरकारी नौकरियां हैं, जिनमें केंद्र सरकार की नौकरियां भी शामिल हैं। इस प्रकार अगर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनने के लिए कतार में हैं, तो उन्हें 2.5 करोड़ से ज्यादा नई सरकारी नौकरियां पैदा करनी होंगी! यह देखते हुए कि चालू वित्त वर्ष में वेतन पर बिहार का बजट खर्च 54,697 करोड़ रुपए आंका गया है, अगर यादव अपने वादे पर अमल करते हैं तो यह खर्च बढ़कर 7,00,000 करोड़ रुपए हो जाएगा। यह राशि इस वर्ष बिहार के कुल बजटीय खर्च जो लगभग 3,17,000 करोड़ रुपए है, से दोगुनी है। केवल यादव के भक्त ही अपने नेता के वादों पर विश्वास करेंगे।
इस दावे का एक और पहलू भी है जो राज्य के मौजूदा हालात को दर्शाता है। अगर यादव छोटी-मोटी सरकारी नौकरियों की बात नहीं करते तो उन्हें पर्याप्त योग्य या कुशल कर्मचारी ढूंढने में मुश्किल होगी। एक आधिकारिक सर्वेक्षण के अनुसार, नौकरियों के लिए पंजीकृत 18-35 आयु वर्ग के स्नातकों का हिस्सा मात्र 13 प्रतिशत है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग में यह प्रतिशत और भी कम है। कामकाजी उम्र की आधी से भी कम आबादी सक्रिय रूप से नौकरियों की तलाश में है। इसलिए राज्य के पास इस अजीबो-गरीब वादे के लिए न तो पैसा है और न ही कुशल बल। लेकिन निश्चित रूप से, आने वाले दिनों में बिहार के मतदाताओं से ऐसे और भी वादे किए जाएंगे। विभिन्न राजनीतिक दल अपनी सीटों के बंटवारे के फार्मूले तय करने के बाद, मतदाताओं को लुभाने के लिए वादे करने में जुट जाएंगे।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 25 लाख महिलाओं को छोटे व्यवसाय शुरू करने के लिए 10,000 रुपए देकर इस दिशा में पहल की है। इससे राज्य के खजाने पर 2500 करोड़ रुपए का बोझ पड़ा है। नीतीश कुमार ने सत्ता में वापसी पर सफल उद्यमियों को 2 लाख रुपए अतिरिक्त देने का वादा किया है। लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के 15 साल के शासन के बाद, जिनका कार्यकाल चारा घोटाला जैसे घोटालों से भरा रहा, नीतीश कुमार पिछले 20 सालों से अपनी राजनीतिक कलाबाजियों के साथ सत्ता की बागडोर संभाले हुए हैं। साढ़े तीन दशकों से उनका संयुक्त शासन राज्य और उसके अधिकांश लोगों को गरीबी और खराब जीवन स्थितियों से बाहर निकालने में विफल रहा है।
बिहार को सबसे अधिक प्रवासन दर वाला राज्य होने का संदिग्ध गौरव प्राप्त है,जिसके लाखों युवा औद्योगिक और कृषि मजदूर, सुरक्षा गार्ड, डिलीवरी ब्वॉय और ऐसी ही अन्य नौकरियां करके देश के अन्य हिस्सों में भाग्य तलाश रहे हैं।
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि राज्य में विनिर्माण क्षेत्र ने कभी गति नहीं पकड़ी है। कारखानों के नवीनतम वाॢषक सर्वेक्षण में राज्य में केवल 3386 कारखानों की सूची दी गई है जो देश के सभी कारखानों का मुश्किल से 1.3 प्रतिशत है। बिहार के कारखानों में कार्यरत कुल श्रमिकों में बिहार का हिस्सा मात्र 0.75 प्रतिशत है।
नीति आयोग के आंकड़ों के अनुसार, देश में बहुआयामी रूप से गरीब लोगों का अनुपात बिहार में सबसे ज्यादा है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं भी दयनीय हैं। पिछले वित्तीय वर्ष में इसका सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जी.एस.डी.पी.) देश के सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 5 प्रतिशत था। बिहार की इस दयनीय स्थिति के लिए दशकों से राज्य पर शासन करने वाले राजनेताओं को भी जिम्मेदारी लेनी होगी। अब समय आ गया है कि लोग जात-पात के आधार पर नहीं बल्कि विकास के लिए वोट करें। यह देखना बाकी है कि प्रशांत किशोर, जिनकी जन सुराज पार्टी विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है, द्वारा 2 साल से की जा रही जमीनी मेहनत रंग ला पाती है या नहीं। बिहार को अतीत से एक विराम की जरूरत है।-विपिन पब्बी