बिग ब्रदर ट्रम्प की धौंस का करना चाहिए विरोध
punjabkesari.in Friday, Sep 05, 2025 - 05:40 AM (IST)

महाराष्ट्र सरकार के सामने राजनीतिक अर्थों वाली सभी पहेलियों में से, मेरी प्राथमिकता क्रम के अनुसार, पहली पहेली यह है कि इस वर्ष गणेश उत्सव ने क्या हासिल किया है। मुंबई में, इसने दो चचेरे भाइयों को एक साथ ला दिया है जिनके बीच लगभग 2 दशकों से बातचीत नहीं हुई थी! यू.बी.टी. सेना के वर्तमान प्रमुख उद्धव ठाकरे गणेश जी का स्वागत करने के लिए अपने चचेरे भाई राज के घर गए। वे आगामी नगर निगम चुनावों में नए एकजुट भाइयों को जिताने के लिए शिवसैनिकों को एकजुट करने के लिए उत्साहित करना चाहते हैं।
मुझे यकीन नहीं है कि परिणाम उनकी इस आकांक्षा को साकार करेंगे। सेना का शिंदे गुट खेल बिगाड़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो सेना (यू.बी.टी. गुट-सह -मनसे) को अस्तित्व के संकट का सामना करना पड़ेगा। दशकों से यह नगर निगम से धन प्राप्त करने वाली पार्टी के रूप में काम करती रही है, जैसे सत्ता में अन्य दल सरकारी ठेकों से करते हैं। शहर की पीड़ित आबादी की यही आम धारणा है।
जिस दिन ठाकरे परिवार के बड़े चचेरे भाई की राज के घर जाते हुए तस्वीर सामने आई, उसी दिन अखबारों में खबर आई कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत से अमरीका को निर्यात होने वाली कई वस्तुओं पर 50 प्रतिशत का दंडात्मक कर लगा दिया है। हमारे प्रधानमंत्री ट्रम्प की धौंस के आगे न झुकने पर अड़े हैं। कृषि क्षेत्र में आत्मसमर्पण हमारे छोटे किसानों के लिए विनाशकारी साबित होगा। लोगों को खासकर शुरुआत में कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है लेकिन हम सभी को अपने प्रधानमंत्री के साथ मिलकर बिग ब्रदर ट्रम्प की इस असंवेदनशील धौंस का विरोध करना चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए कि हम भी एक गौरवशाली राष्ट्र हैं जो धौंस नहीं सहता। उसी तारीख, 27 अगस्त, 2025 को प्रकाशित एक तीसरी खबर, जैसा कि ऊपर चर्चा की गई पहली दो खबरों में है, यह थी कि सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों के 56 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने सार्वजनिक रूप से उन 18 अन्य सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की निंदा की, जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रैड्डी की उम्मीदवारी का खुलकर समर्थन किया था, जिन्हें संयुक्त विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया है। 56 न्यायाधीशों ने 18 न्यायाधीशों से अनुरोध किया कि वे पक्षपातपूर्ण बयानों में अपना नाम न डालें।
व्यक्तिगत रूप से, मैं 56वें अनुच्छेद से सहमत हूं कि न्यायाधीशों को पद छोडऩे के बाद भी राजनीति में शामिल नहीं होना चाहिए। हालांकि, इस देश के एक नागरिक के रूप में, मैं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की इस बात से और भी ज्यादा असहमत हूं जब उन्होंने न्यायमूर्ति सुदर्शन रैड्डी पर उस खंडपीठ के सदस्य होने के लिए निशाना साधा, जिसने ‘सलवा जुडूम’ को एक अवैध संस्था घोषित किया था, जोकि वास्तव में थी। तत्कालीन छत्तीसगढ़ सरकार ने ‘सलवा जुडूम’ का गठन किया था और इसके सदस्यों को आदिवासियों के एक समूह के रूप में सशस्त्र किया था, जिनसे छत्तीसगढ़ के जंगलों और गांवों में माओवादियों से लडऩे की उम्मीद की गई थी। मेरे बाद पंजाब पुलिस प्रमुख के रूप में के.पी.एस. गिल ने भी पंजाब में ऐसा ही एक प्रयोग शुरू किया था जो उस समय खालिस्तानी आतंकवादियों से लड़ रहे थे। बिना कानूनी अधिकार के नागरिकों को हथियार देने में एक अंतर्निहित खतरा है। यहां तक कि पुलिस की मदद करने के संदिग्ध बहाने पर गौरक्षकों को छोडऩा, जैसा कि कुछ ङ्क्षहदी भाषी राज्यों में सक्रिय गौरक्षक वर्तमान में कर रहे हैं, एक गैर-कानूनी और बेहद खतरनाक कदम है। अपने कार्यों के प्रति जिम्मेदारी का अभाव उन्हें अपराध के क्षेत्र में ले जाता है।
न्यायमूर्ति सुदर्शन रैड्डी का फैसला एक अच्छा फैसला था और एक जिम्मेदार न्यायिक अधिकारी द्वारा सुनाया जा सकने वाला एकमात्र फैसला था। केंद्रीय गृह मंत्री का यह विलाप कि अगर न्यायमूॢत रैड्डी की पीठ ने ‘सलवा जुडूम’ को गैरकानूनी घोषित नहीं किया होता तो छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद या माओवादी गतिविधियां कई साल पहले ही बंद हो गई होतीं, पूरी तरह से एक भ्रामक धारणा है। 27 अगस्त के अखबारों में एक और खबर जिसने मेरा ध्यान खींचा, वह यह थी कि सरकारी ठेकेदारों को कई महीनों से भुगतान नहीं किया गया है। बदले में ठेकेदारों को चल रही परियोजनाओं को आगे बढ़ाने में मुश्किल हो रही है। मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। चुनाव जीतने का मुख्य लक्ष्य गरीबों को कम से कम तब तक खाना खिलाना होता है जब तक वे सत्ता में बैठे लोगों को वोट नहीं देते। महाराष्ट्र में पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जल्दबाजी में शुरू की गई ‘लाडकी बहन’ योजना ने राज्य की वित्तीय स्थिति को चौपट कर दिया है। सरकार अभी भी इस गड़बड़ी को ठीक करने की कोशिश में लगी है, लेकिन अगर वह अभी से उदारता दिखाना बंद कर देती है तो उसे 2024 में जीत दिलाने वाले अपने समर्थन को खोने का खतरा है।
27 अगस्त के समाचार पत्रों में जिन मुद्दों को प्रमुखता से उठाया गया, वे तो ङ्क्षचताजनक थे लेकिन एक चिरस्थायी राजनीतिक समस्या उस समय फिर से उभर आई, जब पुलिस महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के जालना जिले के मूल निवासी, कट्टर मराठा नेता, मनोज जरांगे पाटिल द्वारा आयोजित गणपति उत्सव में व्यस्त थी। जरांगे पाटिल की मांग है कि मराठा समुदाय को कुनबी में बदल दिया जाए जो एक ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ है जबकि वर्तमान में इसे एक उन्नत वर्ग का दर्जा प्राप्त है। कुनबी और मराठा के बीच का अंतर अस्पष्ट है। उत्तर भारत के जाटों की तरह कुनबी भी कृषक हैं।
मराठा समुदाय शैक्षिक रूप से काफी पिछड़ा रहा है और इसलिए जब वे सफेदपोश नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा करते थे तो उन्हें नुकसान होता था। मनोज जरांगे पाटिल की मांग कम आय वर्ग के लिए उपलब्ध नौकरियों की कमी से उत्पन्न हुई है।
जरांगे के समर्थकों ने 28 अगस्त से पूरे 5 दिनों तक शहर में सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त रखा। सरकार शक्तिहीन हो गई। चुनावों पर नजर रखते हुए, उसने कुछ नहीं करना बेहतर समझा और कार्यकारी निर्णय उच्च न्यायालय पर छोड़ दिया। न्यायाधीशों ने उनकी बात मान ली। दक्षिण मुंबई के निवासियों को पता चल गया है कि जिम्मेदारी कहां है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)